Saturday, June 13, 2015

Anti-Globalism mood in America and democratic Revolt -- अमेरिका में वैश्वीकरण के खिलाफ वोट और उसका मतलब

खबरी -- क्या तुम बता सकते हो की अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने वैश्वीकरण के खिलाफ वोट क्यों दिया ?


गप्पी -- असल में ये घटना इस तरह है की अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा 11 एशियाई देशों के साथ एक नया व्यापार  समझौता कर रहे थे जिसे सीनेट पहले ही पास कर चुकी है उसे अमेरिका के प्रतिनिधि सदन में भारी  अंतर 126 - 302 से मात खानी पडी। इसमें सबसे खास बात ये है की ये हार बराक ओबामा की अपनी पार्टी, डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों के विरोधी वोटों के कारण हुई। 

             अमेरिका में पिछले बीस सालों  के दौरान जो वैश्विक व्यापार समझौते हुए और जिनको मानने के लिए अमेरिका ने पूरी दुनिआ को मजबूर किया, उनका एक नतीजा ये भी निकला की चीन , जापान और कोरिया जैसे देशों के सस्ते मालों के कारण बहुत सी अमेरिकी कम्पनियां बंद हो गई। पिछले दस सालों में अमेरिकी मजदूरों के वेतन में कोई बढ़ौतरी नही हुई। एक आम अमेरिकी मजदूर और कम्पनियों के सीईओ के वेतन का फर्क 1 /300 हो गया जो बीस साल पहले 1 /10 था। जिससे जीवन के स्तर और आय के अन्दर बहुत बड़ी खाई पैदा हो गयी। इस सब के कारण आज अमेरिका को लग रहा है की वैश्विक व्यापार समझौते उसके हितों के खिलाफ जा रहे हैं। 

                 इस स्थिति को सबसे पहले भुगता यूरोपीय देशों के मजदूरों ने। इस विश्व व्यवस्था ने वहां के मध्यम वर्ग को लगभग भिखारी बना दिया। इसके इलाज और भुगतान के संकट को हल करने के लिए विश्व बैंक और IMF ने नए कर्ज के साथ जो शर्तें लगाई उनके कारण पहले ही भिखमंगे हो चुके मध्यम वर्ग को मिलने वाली पेन्शन और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं भी बंद कर दी गयी। चारों तरफ से मार खाया हुआ मजदूर और मध्यम वर्ग बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरा और सरकारों को चुनौती देने लगा। अब लगभग वही स्थिति अमेरिका का मजदूर महसूस करने लगा है। एपल जैसी कम्पनियों ने तो इस व्यवस्था के कारण खरबों डॉलर कमाए परन्तु आम आदमी के हाथ कुछ नही आया। इसलिए अब अमेरिका में भी इस व्यवस्था का, जिसमे रोजगार खत्म करके काम ऑउटसोर्सिंग और बाहर से सस्ता मॉल मगवा कर उसे जोड़ कर बेचने का विरोध हो रहा है। एक अनुमान के अनुसार 280000 फैक्ट्री बंद हो चुकी हैं और 47 मिलियन रोजगार खत्म हो चुके हैं 

                  वैश्वीकरण के नाम पर कम्पनिओं को खुली छूट और मजदूरों को मिलने वाले सभी अधिकार श्रम सुधारों के नाम पर खत्म किया जाना किसी भी देश के लिए  यही हालात पैदा करेगा। भारत जैसे देश में जहां पहले ही सुविधाओं और सुरक्षा के नाम पर कुछ नही है ये नीतियां भयंकर परिणाम पैदा करेंगी। कॉर्पोरेट के स्कूलों से पढ़े हुए कुछ युवक जो इसकी गंभीरता को नही समझ रहे है कुछ साल बाद यूरोपीय और अमेरिकी मजदूरों की तरह खुद को चौराहे पर खड़ा पाएंगे। ये नीतियां समाज में भारी असमानता पैदा करेंगी और जो थोड़े बहुत लाभ पहले की पीढ़ियों ने लम्बी लड़ाइयों के बाद हासिल किये हैं , सुधर का नाम लेकर छीन लिए जाएंगे।


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