Tuesday, June 30, 2015

गाय के खेत चर जाने को नुकसान नही मानना चाहिए

गप्पी -- ये बात मैं गाँव में भी सुनता था बचपन में। गाय हमारे देश में बहुत ऊँचा स्थान रखती है। हमारे देश में हजार आदमी मर जाएँ कोई फर्क नही पड़ता, लेकिन एक गाय मर जाये तो दंगे हो जाते है। घर जल जाते हैं। कुछ लोग तो बस यही  काम करते हैं।

                      लेकिन ये ऊपर वाली बात की, गाय अगर खेत चर जाये तो पुण्य ही होता है, ये बात बहुत बार कही और सुनी गयी है। लेकिन मुझे याद नही आता ये बात कहने वालों में एक भी आदमी ऐसा था जिसके पास खेत हो। ये बात कहने वाले बहुत से लोगों के पास अलबत्ता गाय जरूर थी। या फिर वो लोग थे जिनका गाय से रिश्ता बस सुबह सुबह रोटी खिलाने तक सिमित था।

                           अब तीन तरह के लोग हो गए। एक वो जिनके पास गाय थी पर खेत नही थे। दूसरे वो जिनके पास खेत थे भले ही गाय हो ना हो। और तीसरे वो जिनके पास ना गाय थी और ना खेत थे। अब जिन लोगों के पास गाय थी और खेत नही थे वो ये बात बड़ी जोर शोर से कहते थे। वो ये भी कहते थे की गाय तो सबकी माता होती है। लेकिन जब दूध निकालने का समय होता था तो गाय केवल उनकी माता रह जाती थी। कोई दूसरा उसके नजदीक भी नही जा सकता था। और लोगों को अपनी ही माता का दूध खरीदना पड़ता था।

                 अब गाय के साथ बछड़े भी होते हैं। और जाहिर है की जब गाय दूसरे का खेत चरती है तो बछड़े भी उसके साथ चरते हैं। अब माँ वाले रिश्ते से बछड़ा हमारा भाई हुआ। बछड़ा बड़ा होकर बैल बनता है और खेत में काम करता है। लेकिन वो उस खेत में काम नही करता जिसे उसने मुफ्त में चरा होता है बल्कि उस खेत में करता है जिसमे गाय का मालिक करने को कहता है। लेकिन कुछ गाय बड़ी भाग्यशाली होती हैं। उनका बछड़ा बड़ा होकर बैल नही बनता बल्कि सांड बनता है।ये रिश्ते वाला भाई नही बल्कि "भाई " होता है। सांड बनने से एक तो उसे सारी जिंदगी के लिए काम ना करने छूट मिल जाती है और दूसरे उसे किसी का भी खेत चरने का लाइसेंस मिल जाता है।

                     आजकल जो गाय और बछड़े हमारा खेत चर रहे हैं वो कहते हैं की उनके पास खेत चरने का लाइसेंस है। वो ये भी कहते हैं की ये लाइसेंस उन्हें हमने दिया है। इसलिए हमे कम से कम पांच साल तो इस खेत चरने पर एतराज नही करना चाहिए। फिर भी अगर कोई एतराज कर ही देता है तो आसपास से जोर की आवाज आती है अरे अरे क्या कर रहे हो ? गोमाता के ऊपर आरोप लगा रहे हो। शास्त्रों का इतना ज्ञान भी नही हैं। थोड़ी शर्म करो अधर्मिओं। तुम्हारे खेत में गौमाता ने मुंह मार लिया तो समझो तुम तो धन्य हो गए।

                       मैं ध्यान से देख रहा हूँ की इनमे से भी किसी के पास खेत नही है केवल गाय हैं। ये अपनी गाय का दूध निकालते वक़्त सारे दरवाजे बंद कर लेते हैं। ये लोग खुद दूध पीते  है और दूसरों को गाय का पेशाब पीने की सलाह देते हैं। ये लोग गाय के पेशाब में जितने गुण बताते हैं उतने तो दूध में भी नही होते। जो लोग अंदर की बात जानते हैं उनका  कहना है की ये गाय अमेरिकन जर्सी गायों से भी ज्यादा दूध देती हैं। खेत वालों से ये बात छिपाई जाती है।

                           अब हमारी सरकार ने हमारे राजनैतिक जीवन में गाय का कितना महत्त्व है ये साबित करने के लिए गौमांस पर प्रतिबन्ध लगा दिआ। सामाजिक जीवन में गाय का महत्त्व तो सबको मालूम ही था सरकार को छोड़ कर। गाय का कत्ल करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। अलबत्ता कोई गौशाला वाला सारा चंदा खुद खा जाये और गाय भूख से मर जाये उस पर प्रतिबन्ध नही है। उस पर प्रतिबन्ध लगाने से वो लोग भी फंस सकते थे जो केवल दूध पीते है। हमारी सरकार दूरदर्शी है सो इस तरह का फैसला कैसे ले सकती थी। हाँ तो हम गौमांस पर प्रतिबन्ध की बात कर रहे थे। कुछ लोगों  ने इस बात पर एतराज किया की सदियों से गौमांस हमारा भोजन है तो उनको कह दिया गया की वो पाकिस्तान चले जाएँ। हमने गाय के मांस के निर्यात पर प्रतिबन्ध नही लगाया है इसलिए आप कृपया पाकिस्तान चले जाइए हम वहां गौमांस भेज देंगे आप खा लीजिये। ये सलाह देने के लिए सरकार ने कुछ लोगों की टीम बनाई हुई है और उन्हें भगवा ड्रेस कोड दिया गया है। लोगों को आइन्दा ध्यान रखना चाहिए की इस भगवा ड्रेस वाले लोग सरकार के आदमी हैं। लोगों की सुविधा के लिए ये व्यवस्था की गयी है। वैसे दो तीन लोग ऐसे भी हैं जो बिना भगवा कपड़े के भी लगातार रट लगाये रहते हैं की हमने कभी गौमांस नही खाया। कोई उनसे पूछता भी नही है फिर भी वो इस बात रट लगाये हुए है। या की वो असली राष्ट्रवादी हैं। मैंने किसी से पूछा की ये लोग ड्रेस में  क्यों नही हैं तो उसने बताया की इनके जिम्मे कुछ ऐसे काम भी हैं जहां भगवा ड्रेस पहनना मना है जैसे इफ्तार पार्टिओं का आयोजन करना। उसने ये भी बताया की चिन्ता मत करो भगवा कपड़े ये भी पहने हुए हैं लेकिन दूसरे कपड़ों के नीचे।

                           कुछ लोगों ने मांग की है की गाय को हमारा राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाये। अभी हमारा राष्ट्रीय पशु शेर है जो वैसे भी हमारे कर्मों के साथ मेल नही खाता। मैं कहता हूँ की गाय और शेर दोनों को राष्ट्रीय पशु रखा जाए तो क्या परेशानी है। वैसे भी सारे कामों में हमारी नीति दोगली ही होती है। दूसरा इससे हमे हमारी सही पहचान मिलेगी। घर में शेर और बाहर गाय। 

                            एक दूसरी तरह की गाय होती है जिसे नीलगाय कहा जाता है। इनके झुण्ड के झुण्ड होते हैं और पूरे खेत के खेत साफ कर देतें हैं। इनका झुण्ड जब खेत में घुसता है तो एक दो आदमी की तो हिम्मत नही होती इन्हे निकालने की। ये उस पर हमला कर देती हैं। तो लोगों ने तय किया की वो इक्क्ठे होकर इन्हे निकालेंगे। अब गाँव के लोग समूह बनाते हैं और इनके झुण्ड  भगा देते हैं। 

                       इसलिए मैं ये पूछना चाहता हूँ की ये जो पहली किस्म की जो गाय हैं उन्हें भी लोग इक्क्ठे हो कर क्यों नही निकाल देते। 

 

खबरी -- लेकिन इसके लिए उन्हें माँ बेटे की रिश्ते से बाहर आना पड़ेगा।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.