Tuesday, July 28, 2015

Vyang -- No Politics Please !

गप्पी -- हम गाहे बगाहे ये बात सुनते रहते हैं की कृपया इस मुद्दे पर राजनीती ना करें। कल पंजाब के गुरदासपुर में आतंकवादी हमला हुआ। कई लोग मारे गए। पंजाब के मुख्यमंत्री बादल साहब का बयान आया की आतंकवादी सीमा पार से आये थे इसलिए ये राज्य का मामला नही है। संसद में विपक्ष ने जब इस पर गुप्तचर असफलता का आरोप  लगाया तो वेंकैया नायडू ने कहा की आतंकवाद के मुद्दे पर राजनीती नही की जानी  चाहिए। विपक्ष के लोगों को तो एक बार जैसे सांप सूंघ गया। ये बात उस पार्टी के नेता और खुद वो मंत्री कह रहे हैं जो लगभग सारी राजनीती इसी मुद्दे पर करते रहे हैं। पिछली  UPA सरकार का उन्होंने ये कह कह कर जीना हराम कर दिया था की ये सरकार देश की सुरक्षा के मामले पर असफल है।

                 इससे पहले जब भूमि बिल पर विपक्ष ने विरोध जताया था तब भी सरकार ने कहा था की विपक्ष को देश के विकास के सवाल पर राजनीती नही करनी चाहिए। सरकार बार बार विपक्ष को ये याद दिलाती है की भैया इन मामलों पर राजनीती मत करो। लेकिन विपक्ष है की मानता ही नही है। वह हमेशा गलत चीजों पर राजनीती करता है जैसे आतंकवाद, महंगाई, बेरोजगारी, भूमि बिल इत्यादि। अब अगर विपक्ष इन मामलों पर राजनीती करेगा तो देश का क्या होगा ?

                     इसलिए मेरा सरकार को सुझाव है की वो संसद में एक बिल लेकर आये और उसमे तय कर दिया जाये की किन किन मुद्दों पर राजनीती की जा सकती है। और उन मुद्दों पर राजनीती करने के लिए संसद का एक विशेष सत्र हर साल बुलाया जाये। इसके अलावा बाकि जो भी संसद के सत्र हों उनमे विपक्ष को राजनीती करने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इन सत्रों में विपक्ष का काम केवल हाथ ऊपर करना तय कर दिया जाये वो भी तब जब सरकार कहे।

                     राजनीती करने के लिए जो विशेष सत्र बुलाया जाये उसमे इस तरह का काम रक्खा जाये जैसे राजनीती पर चुटकुले सुनाना, होली खेलना और होली के गीत गाना जिनमे कुछ गालियों की भी छूट दी जा सकती है। संसद से वाकआउट करने और कार्यवाही रोकने जैसे प्रोग्राम भी केवल इसी सत्र में किये जा सकते हैं। कितना अच्छा लगेगा जब संसदीय कार्य मंत्री विपक्ष के किसी नेता पर कोई चुटकुला सुनाएंगे और विपक्ष उसका विरोध करते हुए वाकआउट करेगा। विपक्ष के वाकआऊट की तारीफ करते हुए सत्ता पक्ष के लोग तालियां बजायेंगे और प्रदर्शन की प्रशंसा करेंगे। संसद में एकदम राष्ट्रीय एकता का नजारा होगा।

                       बाकि सत्रों में इस पर रोक का बिल पास होने के बाद जो नियम बनाएं जाएँ उनमे कुछ इस तरह के हो सकते हैं।

        १. सत्र के दौरान विपक्ष के सदस्य मुंह पर कपड़ा लपेट कर आएंगे लेकिन वो काले रंग का नही होना चाहिए।

        २. सरकार किसी बिल पर जब हाथ उठाने के लिए कहेगी तब सभी सदस्यों को पार्टी से ऊपर उठकर हाथ उठाना होगा।

        ३. अचानक कोई घटना घटित होने पर अगर विपक्ष को लगता है की उसे सदन में उठाया जाये तो वो उसे लिखकर संसदीय कार्य मंत्री को देंगे और मंत्री उसकी भाषा कागज पर लिखकर देंगे। उसके अलावा कोई शब्द नही बोला जायेगा।

          ४. किसी मंत्री का कोई घोटाला सामने आता है तो उसे राष्ट्रीय कर्म माना  जायेगा और जब तक सरकार के अंदरुनी मतभेदों के कारण मंत्री को हटाने की नौबत नही आएगी विपक्ष तब तक इंतजार करेगा। ऐसा समय आने पर सरकार विपक्ष को सुचना देगी और विपक्ष उसका इस्तीफा मांग सकता है। इसके अलावा किसी भी मंत्री का इस्तीफा मांगना देशद्रोह माना जायेगा।

           ५.  प्रधानमंत्री से किसी भी मामले पर बयान देने को नही कहा जायेगा और प्रधानमंत्री केवल अपने विदेशी दौरों पर बयान देंगे। और इस पर पूरा देश प्रधानमंत्री के साथ है ये संदेश देने के लिए विपक्ष के सभी सदस्यों द्वारा मेज थपथपाना जरूरी होगा।

            ६. बजट पर विपक्ष के बहस करने पर पाबंदी रहेगी और केवल सत्ता पक्ष के लोग उस पर बोल सकते हैं।

            ७. देश की सभी संवैधानिक संस्थाए मंत्रियों के नीचे और इशारे पर काम करेंगी। संविधान को सरकार के अधीन माना जायेगा। अब तक जो सरकार को संविधान के अधीन माना जाता है वो गलत है और इस भूल का सुधार कर लिया जायेगा। 

            ८. उच्चतम न्यायालय के जजों की नियुक्ति प्रधानमंत्री करेंगे और उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति का अधिकार मुख्यमंत्री का होगा। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अगर चाहें तो अपने परिवार के सदस्यों की राय ले सकते हैं।

            ९. अगर कोई न्यायिक बैंच दो सदस्यों की है तो  अटार्नी जनरल को बैंच का तीसरा सदस्य माना जायेगा।

            १०. न्यायालय के सभी फैसले मंत्रिमंडल की छानबीन और अनुमति के अधीन रहेंगे। 

            ११.  चुनाव की घोषणा के बाद ही विपक्ष सरकार की आलोचना कर सकेगा। शेष समय सरकार की आलोचना पर पाबंदी रहेगी। 

             १२. किसानों और मजदूरों से संबन्धित किसी भी मांग को विकास विरोधी, अल्पसंख्यकों से संबंधित मांगो को तुष्टिकरण और महिलाओं से संबन्धित मांगों को संस्कृति विरोधी माना जायेगा। 

             १३. संविधान संशोधन बिल पर जो दो- तिहाई बहुमत का प्रावधान है उसे सदन की नही बल्कि सत्तापक्ष की सदस्यता का दो-तिहाई माना जायेगा।

             १४.  ये सभी नियम सरकार के स्थाईत्व को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं इसके बावजूद देश के दुर्भाग्य से अगर भाजपा की सरकार चली जाती है तो ये नियम समाप्त मान लिए जायेंगे। 

 

खबरी -- उम्मीद करता हूँ की सरकार तुम्हारे सुझावों को प्रत्यक्ष रूप से भी लागु करेगी।

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