Thursday, July 30, 2015

Vyang -- वोट कैसे नही दोगे तुम !

गप्पी -- इस देश के मतदाताओं को बड़ा घमण्ड था। कभी भी और किसी को भी कह देते थे जाओ हम वोट नही देंगे। कई बार तो ऐसा होता था विकास कार्यों की अनदेखी के विरोध में पूरा गांव चुनाव का बहिष्कार कर देता था। ये भी एक लोकतांत्रिक तरीका था अपना विरोध प्रकट करने का। मुहल्ले का छोटा से छोटा आदमी इंकार कर देता था वोट देने से। लोगों को जब सभी पार्टियां और उम्मीदवार किसी काम के नही लगते थे तो वो वोट देने नही जाते थे । जब उसे चुनाव में खड़े लोगों से कोई उम्मीद नजर नही आती थी तो वो वोट देने नही जाता था। एक लोकतान्त्रिक देश के नागरिक होने की हैसियत से हमे ये अधिकार प्राप्त था की हम जिसे चाहें वोट दें और ना चाहें तो किसी को भी वोट ना दें। जब चुनावों में लोगों के वोट डालने की संख्या कम हो जाती है तो अब तक तो उसका विश्लेषण करने वाले कहते थे की राजनितिक पार्टियां लोगों को वोट के लिए आकर्षित करने में विफल रही हैं। यही बात थी जो कुछ पार्टियों को अच्छी नही लगी। इस देश का अदना सा वोटर उसकी गलती निकाल रहा है, उसकी इतनी हिम्मत। सो कानून बना दिया की वोट देना जरूरी है। अगर नही दोगे तो सजा होगी। एक आम वोटर की इतनी हिम्मत की वो वोट देने से इंकार करे। ये नही हो सकता। सरकार ऐसे गैरजिम्मेदार वोटरों को सीधा करेगी। आखिर लोकतंत्र है। 

                        परन्तु मेरे पड़ौसी पूछ रहे थे की जो पार्टियां झूठे वायदे करके वोट ले लेती हैं और बाद में वायदों को जुमला कह देती हैं क्या उनके खिलाफ भी कोई कानून है। वोट देने और चुनाव जीत जाने के बाद लोगों को मालूम पड़ता है की गलत आदमी चुना गया तो क्या उसे वापिस लाने  का कोई कानून है ? जिन लोगों पर अपराधी मामले चल रहे हैं क्या उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने का कोई कानून है ? नही है। हो भी नही सकता। ये सारी मांगे नेताओं और पार्टियों के खिलाफ हैं। और हमारे नेता तो लोकतंत्र के राजा हैं तो भला उनके खिलाफ कोई कानून कैसे बन सकता है। 

                        लेकिन कुछ कानून हैं। चुनाव में पैसा खर्च करने की सीमा तय है। कोई भी उम्मीदवार उससे ज्यादा पैसा खर्च नही कर सकता। परन्तु इस कानून का क्या हुआ ? सभी को मालूम है की उम्मीदवार करोड़ों रुपया खर्च करते हैं। कोई पकड़ा भी जाता है तो उसे पार्टी का खर्च बता दिया जाता है। क्या किसी को याद है की कोई उम्मीदवार ज्यादा खर्च करने के लिए चुनाव के अयोग्य घोषित हुआ हो ? फिर लोकतंत्र के राजाओं के खिलाफ बात की जा रही है। जो कभी नही हो सकता। सरकार पांच साल में एकबार चुनाव सुधारों पर मीटिंग का नाटक करती है और बिना किसी नतीजे के समाप्त कर देती है। क्योंकि सरकार समझती है की इस देश के मतदाता अव्वल दरजे के मुर्ख हैं। 

                        सो इन मुर्ख मतदाताओं को सीधा करने का केवल एक ही रास्ता है और वो है कानून। सो कानून बना दिया है की वोट तो भई डालनी ही पड़ेगी वरना सजा भुगतने को तैयार हो जाओ। एक आदमी कह रहा था की भाई अब तो इस मत का भी बटन है की इनमे से कोई नही, फिर क्या एतराज है। अगर आपको कोई भी उम्मीदवार पसंद नही आता है तो आप वो बटन दबा सकते हैं। मुझे हंसी आई। इस बटन का मतलब है खराब से खराब उम्मीदवार भी ये कहेगा लो, मेरी बात छोडो इन्हे तो कोई भी पसंद नही है। वो कहेगा अरे, लोग ही बेकार हैं। अब भगवान राम तो चुनाव लड़ने आने से रहे। दुबारा चुनाव होगा फिर क्या होगा ? तब कोई बाहर से आएगा चुनाव लड़ने ? फिर सारा कसूर जनता का साबित हो जायेगा। 

                       सो इस देश के भोले मतदाताओ, अब ये कानून बन गया की वोट तो तुम्हे देना ही पड़ेगा। दूसरा ये तरीका बन गया और स्थिति पैदा कर दी की कोई भला मनुष्य चुनाव नही लड़ सकता क्योंकि उसके पास इतना पैसा ही नही होगा खर्च करने को। टीवी चैनल पैसा लेकर एक पार्टी की हवा होने के ओपिनियन पोल पेश करेंगे। लाखों के खर्च से खबरों से ज्यादा के विज्ञापन दिखाए जायेंगे। पैसा लेकर खबरें दिखाई जाएँगी। इवेंट मैनेजमेंट कम्पनियां चुनाव प्रचार और प्रबंध करेंगी। सोशल मीडिया पर पैसे लेकर बैठे हुए लोग लगातार झूठ और गालियों का दौर चलाएंगे। सभी छोटी और सही आवाजें नक्कारखाने में खो जाएँगी। और ऐसे माहोल में अगर कोई मतदाता कानो पर हाथ रखकर घर के अंदर बैठना चाहेगा तो उसे सजा हो जाएगी। धन्य है हमारा लोकतंत्र, जो लगभग लोक के खिलाफ हो गया है। आखिर लोग कब इस तानाशाही के खिलाफ वोट देंगे। 


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