Wednesday, August 5, 2015

Vyang -- शुषमा जी का नया ज्ञान बोध, कौन ललित मोदी ?

गप्पी -- शुषमा जी अब तक कह रही थी की उन्होंने ललित मोदी की मदद मानवीय आधार पर की थी। उनके इस पर कई ट्वीट हैं। अब उन्होंने संसद में कह दिया है की मैंने ललित मोदी की कोई मदद नही की। मुझे पूरी उम्मीद है की कुछ दिन बाद शुषमा जी ये कह सकती हैं की - ललित मोदी ! कौन ललित मोदी ?

           शुषमा जी को ये ज्ञान बोध अभी अभी हुआ है। जैसे उन्हें ये ज्ञान बोध भी अभी अभी हुआ है की संसद की कार्यवाही को रोकना ठीक नही है। हमे ही नही पूरे देश को याद है जब शुषमा जी संसद में गरज गरज कर कह रही थी की,

                              तू इधर उधर की बात न कर , ये बता काफिला क्यों लुटा ,

                              मुझे रहजनों से गिला नही ,  तेरी रहबरी पर सवाल है। 

                शायद शुषमा जी इसका मतलब भी भूल गयी होंगी। वो एक परफेक्ट भारतीय महिला हैं। उन्होंने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए अपने बाल कटवाने की घोषणा की थी। एक विदेशी महिला को रोकने के लिए। परन्तु देश ने सोनियाजी को जीता दिया उनके मुकाबले में। ये तो भला हो खुद सोनियाजी का जिन्होंने प्रधानमंत्री ना बनने की घोषणा कर दी और शुषमा जी के बाल, बाल-बाल बच गए। 

                      लेकिन देश को शुषमा जी का नया बयान रास नही आ रहा है। अभी थोड़े दिन हुए हैं ना इसलिए, कुछ दिन बाद लोग ये भूल जायेंगे। शुषमा जी ने शुरू दिन से ललित मोदी प्रकरण पर जो सफाई दी है उस पर मुझे एक कहावत याद आ रही है। 

                      एक आदमी पर अदालत में किसी से मारपीट का मुकदमा चल रहा था।  जज ने उससे पूछा की उसे अपनी सफाई में क्या कहना है।  उस आदमी ने कहा की उसे अपनी सफाई में तीन बातें कहनी हैं। 

              पहली - ये  की वो उस दिन घटनास्थल पर था ही नही। 

               दूसरी -- अगर अदालत चाहे तो वो अपनी कलकत्ता वाली मौसी या चेन्नई वाले मामा को अदालत में पेश कर सकता है जो इस बात की गवाही देंगे की वो उसदिन उनके पास था। 

               और तीसरी -- ये की पहले थप्पड़ उसने मारा था। 

        शुषमा जी कह सकती हैं की ये कहावत सिर के बल खड़ी थी और उसने उसे सीधा खड़ा कर दिया। 

       शुषमा जी और उनके सहयोगियों को ये भी नया नया ज्ञान बोध हुआ है की सरकार के कामकाज में केवल कानून को देखा जाता है नैतिकता को नही। वरना पिछले दस साल के उनके भाषण निकाल कर देख लो उनमे नैतिकता पर इतना जोर दिया गया है जितना किताबों में भी नही मिलता। 

               मैं तो कहता हूँ शुषमा जी, अगर संसद में इस मामले पर चर्चा हो और उसमे स्वराज कौशल या बांसुरी कौशल का नाम आये तो कह देना की कौन स्वराज कौशल, कौन बांसुरी कौशल। बाद में इस पर कह देना की जब वो संसद में आती हैं तो सारे रिश्ते-नाते बाहर छोड़ कर आती हैं। और उन्हें देश सेवा में ये छोटी छोटी बातें याद नही रहती। इस पर तालियां बजाने के लिए आपके साथी संसद सदस्य और सोशल मीडिया में बैठे भाड़े के लोग तो हैं ही। 

                      वैसे एक लिस्ट बना लीजिये की आपको क्या-क्या याद रखना है और क्या-क्या भूलना है। वरना कुछ लोगों की बुरी आदत है की पहले कहि गयी बातों को नई बातों को मिला कर देखते हैं। और उनमे ऐसा बहुत कुछ है जो आपने उस समय की सरकार को शर्मिन्दा करने के लिए कहा था। और उन्ही बातों को लोग आपको शर्मिन्दा करने के लिए इस्तेमाल कर सकते  हैं। वैसे मैं तो कहता हूँ की इतने झगड़े में पड़ने की क्या जरूरत है ? साफ साफ कह दीजिये की हमने करना था कर दिया। कर लो जो करना है। साथ में वाजपेयी जी की तरह कह दीजिये की अगर विपक्ष को एतराज है तो अविश्वास प्रस्ताव लाये। जाहिर है की बहुमत के आगे अविश्वास प्रस्ताव की क्या ओकात है। बस आप तो एक चीज का ध्यान रखिये, ये बात गलती से लोगों को मत कह देना। वरना इस देश की जनता ऐसा हांल कर सकती है की खुद आपको भी विश्वास ना हो। 

 

खबरी -- सही बात है। विपक्ष की सौ सुनार की के सामने एक लुहार वाली कर देनी चाहिए।

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