Tuesday, June 30, 2015

गाय के खेत चर जाने को नुकसान नही मानना चाहिए

गप्पी -- ये बात मैं गाँव में भी सुनता था बचपन में। गाय हमारे देश में बहुत ऊँचा स्थान रखती है। हमारे देश में हजार आदमी मर जाएँ कोई फर्क नही पड़ता, लेकिन एक गाय मर जाये तो दंगे हो जाते है। घर जल जाते हैं। कुछ लोग तो बस यही  काम करते हैं।

                      लेकिन ये ऊपर वाली बात की, गाय अगर खेत चर जाये तो पुण्य ही होता है, ये बात बहुत बार कही और सुनी गयी है। लेकिन मुझे याद नही आता ये बात कहने वालों में एक भी आदमी ऐसा था जिसके पास खेत हो। ये बात कहने वाले बहुत से लोगों के पास अलबत्ता गाय जरूर थी। या फिर वो लोग थे जिनका गाय से रिश्ता बस सुबह सुबह रोटी खिलाने तक सिमित था।

                           अब तीन तरह के लोग हो गए। एक वो जिनके पास गाय थी पर खेत नही थे। दूसरे वो जिनके पास खेत थे भले ही गाय हो ना हो। और तीसरे वो जिनके पास ना गाय थी और ना खेत थे। अब जिन लोगों के पास गाय थी और खेत नही थे वो ये बात बड़ी जोर शोर से कहते थे। वो ये भी कहते थे की गाय तो सबकी माता होती है। लेकिन जब दूध निकालने का समय होता था तो गाय केवल उनकी माता रह जाती थी। कोई दूसरा उसके नजदीक भी नही जा सकता था। और लोगों को अपनी ही माता का दूध खरीदना पड़ता था।

                 अब गाय के साथ बछड़े भी होते हैं। और जाहिर है की जब गाय दूसरे का खेत चरती है तो बछड़े भी उसके साथ चरते हैं। अब माँ वाले रिश्ते से बछड़ा हमारा भाई हुआ। बछड़ा बड़ा होकर बैल बनता है और खेत में काम करता है। लेकिन वो उस खेत में काम नही करता जिसे उसने मुफ्त में चरा होता है बल्कि उस खेत में करता है जिसमे गाय का मालिक करने को कहता है। लेकिन कुछ गाय बड़ी भाग्यशाली होती हैं। उनका बछड़ा बड़ा होकर बैल नही बनता बल्कि सांड बनता है।ये रिश्ते वाला भाई नही बल्कि "भाई " होता है। सांड बनने से एक तो उसे सारी जिंदगी के लिए काम ना करने छूट मिल जाती है और दूसरे उसे किसी का भी खेत चरने का लाइसेंस मिल जाता है।

                     आजकल जो गाय और बछड़े हमारा खेत चर रहे हैं वो कहते हैं की उनके पास खेत चरने का लाइसेंस है। वो ये भी कहते हैं की ये लाइसेंस उन्हें हमने दिया है। इसलिए हमे कम से कम पांच साल तो इस खेत चरने पर एतराज नही करना चाहिए। फिर भी अगर कोई एतराज कर ही देता है तो आसपास से जोर की आवाज आती है अरे अरे क्या कर रहे हो ? गोमाता के ऊपर आरोप लगा रहे हो। शास्त्रों का इतना ज्ञान भी नही हैं। थोड़ी शर्म करो अधर्मिओं। तुम्हारे खेत में गौमाता ने मुंह मार लिया तो समझो तुम तो धन्य हो गए।

                       मैं ध्यान से देख रहा हूँ की इनमे से भी किसी के पास खेत नही है केवल गाय हैं। ये अपनी गाय का दूध निकालते वक़्त सारे दरवाजे बंद कर लेते हैं। ये लोग खुद दूध पीते  है और दूसरों को गाय का पेशाब पीने की सलाह देते हैं। ये लोग गाय के पेशाब में जितने गुण बताते हैं उतने तो दूध में भी नही होते। जो लोग अंदर की बात जानते हैं उनका  कहना है की ये गाय अमेरिकन जर्सी गायों से भी ज्यादा दूध देती हैं। खेत वालों से ये बात छिपाई जाती है।

                           अब हमारी सरकार ने हमारे राजनैतिक जीवन में गाय का कितना महत्त्व है ये साबित करने के लिए गौमांस पर प्रतिबन्ध लगा दिआ। सामाजिक जीवन में गाय का महत्त्व तो सबको मालूम ही था सरकार को छोड़ कर। गाय का कत्ल करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। अलबत्ता कोई गौशाला वाला सारा चंदा खुद खा जाये और गाय भूख से मर जाये उस पर प्रतिबन्ध नही है। उस पर प्रतिबन्ध लगाने से वो लोग भी फंस सकते थे जो केवल दूध पीते है। हमारी सरकार दूरदर्शी है सो इस तरह का फैसला कैसे ले सकती थी। हाँ तो हम गौमांस पर प्रतिबन्ध की बात कर रहे थे। कुछ लोगों  ने इस बात पर एतराज किया की सदियों से गौमांस हमारा भोजन है तो उनको कह दिया गया की वो पाकिस्तान चले जाएँ। हमने गाय के मांस के निर्यात पर प्रतिबन्ध नही लगाया है इसलिए आप कृपया पाकिस्तान चले जाइए हम वहां गौमांस भेज देंगे आप खा लीजिये। ये सलाह देने के लिए सरकार ने कुछ लोगों की टीम बनाई हुई है और उन्हें भगवा ड्रेस कोड दिया गया है। लोगों को आइन्दा ध्यान रखना चाहिए की इस भगवा ड्रेस वाले लोग सरकार के आदमी हैं। लोगों की सुविधा के लिए ये व्यवस्था की गयी है। वैसे दो तीन लोग ऐसे भी हैं जो बिना भगवा कपड़े के भी लगातार रट लगाये रहते हैं की हमने कभी गौमांस नही खाया। कोई उनसे पूछता भी नही है फिर भी वो इस बात रट लगाये हुए है। या की वो असली राष्ट्रवादी हैं। मैंने किसी से पूछा की ये लोग ड्रेस में  क्यों नही हैं तो उसने बताया की इनके जिम्मे कुछ ऐसे काम भी हैं जहां भगवा ड्रेस पहनना मना है जैसे इफ्तार पार्टिओं का आयोजन करना। उसने ये भी बताया की चिन्ता मत करो भगवा कपड़े ये भी पहने हुए हैं लेकिन दूसरे कपड़ों के नीचे।

                           कुछ लोगों ने मांग की है की गाय को हमारा राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाये। अभी हमारा राष्ट्रीय पशु शेर है जो वैसे भी हमारे कर्मों के साथ मेल नही खाता। मैं कहता हूँ की गाय और शेर दोनों को राष्ट्रीय पशु रखा जाए तो क्या परेशानी है। वैसे भी सारे कामों में हमारी नीति दोगली ही होती है। दूसरा इससे हमे हमारी सही पहचान मिलेगी। घर में शेर और बाहर गाय। 

                            एक दूसरी तरह की गाय होती है जिसे नीलगाय कहा जाता है। इनके झुण्ड के झुण्ड होते हैं और पूरे खेत के खेत साफ कर देतें हैं। इनका झुण्ड जब खेत में घुसता है तो एक दो आदमी की तो हिम्मत नही होती इन्हे निकालने की। ये उस पर हमला कर देती हैं। तो लोगों ने तय किया की वो इक्क्ठे होकर इन्हे निकालेंगे। अब गाँव के लोग समूह बनाते हैं और इनके झुण्ड  भगा देते हैं। 

                       इसलिए मैं ये पूछना चाहता हूँ की ये जो पहली किस्म की जो गाय हैं उन्हें भी लोग इक्क्ठे हो कर क्यों नही निकाल देते। 

 

खबरी -- लेकिन इसके लिए उन्हें माँ बेटे की रिश्ते से बाहर आना पड़ेगा।

Monday, June 29, 2015

विज्ञानं का भविष्य बहुत उज्ज्वल है हनुमान जी की कृपा से

गप्पी -- मुझे अपने पड़ौसी के साथ सुबह सुबह बाहर जाना था। मैं उनके घर पहुंचा तो वे घर के बाहर ही मेरा इंतजार कर रहे थे। उनके साथ उनका सुपुत्र भी था जो आठवीं क्लास में पढ़ता है। पड़ौसी ने बताया की आज उसका विज्ञानं का पेपर है सो उसे भी लगे हाथ स्कूल छोड़ देते हैं। अच्छी बात है, मैंने कहा। हम तीनो साथ में चले। थोड़ी दूर चलने पर सड़क के किनारे हनुमान जी का मंदिर आया। मेरे पड़ौसी ने लड़के से कहा की बेटा जाओ मंदिर में जाकर हनुमान जी को प्रणाम करो और प्रशाद  भी ले लो। साथ ही ये भी बोल देना की हनुमान जी अगर नंबर अच्छे आये तो ग्यारह रूपये का प्रशाद भी चढ़ाएंगे। बेटा अंदर चला गया। विज्ञानं के पेपर में लड़का अब हनुमान जी के भरोसे था।

      मैंने पड़ौसी से पूछा," क्या तुम्हे लगता है की हनुमान जी ने विज्ञानं पढ़ा  होगा ?"

     " क्या सुबह सुबह मजाक करते हो भाई साब, भला हनुमान जी को विज्ञानं पढ़ने  की क्या जरूरत है वो तो देवता हैं उन्हें तो सबकुछ मालूम है। "

     " लेकिन उन्हें सीताजी का पता तो नही मालूम था। वो उसे ढूंढने लंका तक गए। सब कुछ मालूम था तो वहीं क्यों बता दिया खड़े खड़े। " मैंने पूछा।

     " देवताओं के बारे में ऐसी बातें नही करते वो नाराज हो जायेंगे। " पड़ौसी के चेहरे पर सचमुच घबराहट के भाव थे।

       तब तक बेटा काम निपटा कर आ गया और हम आगे चल पड़े।

       "बेटा क्या तुम्हे मालूम है की आदमी कैसे बना >"

      " मुझे कैसे मालूम होगा अंकल ! मुझे तो अभी आदमी बनने में देर है। आप पापाजी से पूछ लीजिये। " लड़के ने जवाब दिया।

      देर क्या मुझे तो इस बात में ही शक है की तुम्हारे पापा तुम्हे कभी आदमी बनने देंगे। मैंने मन ही मन सोचा। मैंने दुबारा कोशिश की ," बेटा मेरा मतलब था की पृथ्वी पर मनुष्य कैसे पैदा हुआ ?"

      " अंकल वो तो पापाजी कहते हैं की ब्रह्मा जी ने मनुष्य की रचना की। उधर स्कूल के टीचर कहते हैं की आदमी बन्दर से बना। " लड़के ने जवाब दिया।

         मुझे कुछ आशा बंधी।

    तभी मेरे पड़ौसी बोले ," टीचर और किताबों का क्या है जी  कुछ भी लिख देते है। लेकिन हमने तो अपने लड़के को अच्छे संस्कार दिए हैं। उसे सारी बातें बताते हैं।"

        मुझे लगा मौजूदा शिक्षा मंत्री मेरे पड़ौसी से प्रभावित होकर सारे देश को अच्छे संस्कार देने की कोशिश कर रही हैं।

           " लेकिन बेटा अगर परीक्षा में ये सवाल आया तो तुम क्या लिखोगे ?" मैंने फिर पूछा।

          " अंकल, वो तो पापाजी ने कहा है की जो टीचर ने बताया है वही लिख देना वरना ये अल्पबुद्धि टीचर नंबर नही देंगे। " लड़के ने जवाब दिया।

           " अच्छा बेटा ये बताओ की रॉकेट की खोज सबसे पहले कहाँ हुई थी ?" मैंने दूसरा सवाल पूछा।

           " हमारे यहां हुई थी महाभारत काल में। " बेटे की जगह बाप ने जवाब दिया।

    अब मेरी हिम्मत  जवाब दे चुकी थी।

         मैंने सीधा बाप से सवाल किया। " हमारे देश में विज्ञानं का क्या भविष्य है ?"

      " एकदम उज्ज्वल है हनुमान जी की कृपा से। " बाप ने पूरे इत्मीनान से जवाब दिया।

      मैंने उसे धमकाते हुए गुस्से से कहा," बच्चा स्कूल से कुछ पढ़ कर आता है और तुम दूसरा कुछ पढ़ा देते हो उसे घर पर। "

          " अब शास्त्रों में जो लिखा है वही पढाते है हम तो। स्कूल की किताबों का क्या है जी हर तीन साल में  बदल जाती है। शास्त्र थोड़ा ना बदलते हैं। " बाप पूरी तरह समझा हुआ था।

           "लेकिन शास्त्रों में तो ये भी लिखा है की धरती चपटी है गोल नही है और सूर्य उसके चारों तरफ चककर लगाता है। " मैंने कहा।

           " अब वो तो सबको दीखता है कोई माने या न माने। " उसने जवाब दिया।

         तभी उस लड़के का विज्ञानं का अध्यापक वहां से गुजरा। हमें और लड़के को देखकर रुक गया। बड़ी आत्मीयता से हमारे पास आया। थैले से निकाल कर प्रशाद हमे देता हुआ बोला," शहर के बड़े हनुमान मन्दिर गया था। बस किसी तरह स्कूल का रिजल्ट अच्छा आ जाए। "

           अब मुझे पूरा विश्वास हो गया की हमारे देश में विज्ञानं का भविष्य बहुत अच्छा है हनुमान जी की कृपा से। 

 

खबरी -- ऐसी शिक्षा का कोई मूल्य नही जो आपके विचारों को ऊपर नही उठा सके।

Sunday, June 28, 2015

हम भेड़ बकरियां हैं क्या ?

गप्पी -- मैं ये  सवाल बहुत ही संजीदगी से पूछ रहा था और मेरा पड़ौसी मजाक के मूड में था। उसने तुरंत उत्तर दिया की जब आप दूध नही देते तो भेड बकरी कैसे हो सकते हो। अब मुझे कहना पड़ा की हम यानि आम जनता सदियों से ऊपर के वर्ग के लिए बाकायदा दूध देते रहे हैं। और इतना देते रहे हैं की उनकी सन्ताने इतनी मोटी  हो गयी हैं की उन्हें डाइटिंग करनी पड़ रही है। भेड़ की तरह ही वो हर साल हमे मूँड़ कर ऊन उतार लेते है। और हम सचमुच भेड़ की तरह चुपचाप बिना कोई एतराज किए ऊन उतरवाते रहते हैं।

                लेकिन मैं ये सवाल और भेड़ बकरियों से हमारी तुलना एक मुहावरे के अनुसार कर रहा था। मेरा संदर्भ दूसरा था।

                 आजकल हम कोई सामान लेने जाते हैं या सिनेमा देखने जाते हैं, बिजली का बिल जमा करवाने जाते हैं या राशन लेने जाते हैं तो क्या देखते हैं की भीड़ बहुत होती है। हर आदमी सबसे पहले काम करवाना चाहता है। शोर गुल होता है, कभी कभी गाली गलौच भी होता है। लेकिन हम इन्सानो की तरह लाइन से बारी बारी ये काम नही करते हैं। अचानक एक वाचमैन आता है या सिक्योरिटी गार्ड आता है और डण्डा हिला कर सबको लाइन में कर देता है बिलकुल भेड़ बकरियों की तरह। लाइन हम खुद भी लगा सकते थे लेकिन नही इसके लिए हमे एक गार्ड या पुलिस वाला चाहिए। जिस तरह भेड़ बकरिओं को हांकने के लिए एक रखवाला चाहिए।

                 चौराहे पर ट्रैफिक जाम है। एम्बुलेंस तक फंसी हुई है। चूँकि हर आदमी पहले निकलना चाहता है इसलिए कोई भी नही निकल पा रहा है। तभी एक पुलिस वाला आता है और सब लाइन में हो जाते हैं। हिं हिं करते हैं और चले जाते हैं। मैं इसलिए पूछ रहा था की हम भेड़ बकरियां हैं क्या ?

              आदमी घर में बैठा है। टीवी देख रहा है। टीवी पर कार्यक्रम आ रहा है की सरकार सफाई के लिए कुछ नही करती। टीवी में जगह जगह कूड़े कचरे के ढेर दिखाए जा रहे हैं। टीवी देखने वाला पूरी सरकार को गालियां दे रहा है। कोस रहा है सारे अधिकारीयों और नेताओं को। कर्मचारी काम ही नही करना चाहते। कहता है इस देश का चरित्र बिलकुल गिर गया है। यहाँ मिल्ट्री राज की जरूरत है तब सुधरेंगे लोग और तब काम करेंगे कर्मचारी। फिर काम पर जाने के लिए घर से निकलता है। हाथ में कचरे की थैली है जो गली के मोड़ पर रखी कचरापेटी में डालनी है। वह वहां तक जाता है और कचरे की थैली कचरापेटी के अंदर नही डालता उसके पास फेंक कर आगे निकल जाता है। पूरे मुहल्ले का कूड़ा कचरापेटी के पास पड़ा है और पेटी  खाली रखी है।

                 शाम को आदमी घर पर आता है। पार्किंग में गाड़ियाँ इस तरह खड़ी हुई हैं की ना तो दूसरी लगाने की जगह है और ना निकालने की जगह है। वह पूरी सोसाइटी को गालियां देता है। फिर अपनी गाड़ी इस तरह खड़ी कर देता है की चार गाड़ियों का रास्ता बंद हो जाता है। 

                  सार्वजनिक परिवहन की बस  जा रही है। सवारियों से पूरी भरी हुई है। एक आदमी एक लड़की के साथ छेड़खानी करता है। लड़की उसका विरोध करती है। झगड़ा होता है। पूरी बस की सवारियां देख रही हैं। कोई नही बोलता। साठ सवारियों के मुंह में दही जमा हुआ है। घर पर पहुंच कर इस बात पर सरकार को सौ गालियां देते हैं की एक गार्ड नही है बस में। भरी बस में एक लड़की को छेड़खानी से बचाने के लिए गार्ड चाहिए।                    इन सारे किस्सों में सरकार की जिम्मेदारी से कोई इनकार नही करता। लेकिन समाज और व्यक्ति की कोई जिम्मेदारी नही है। हमारी कोई जिम्मेदारी नही है। क्योंकि हम तो घर परिवार वाले शरीफ लोग हैं। तुम घर परिवार वाले शरीफ लोग हो तभी तो तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है की समाज ऐसा रहे जिसमे घर परिवार इज्जत और सम्मान के साथ रह सके। 

                लेकिन नही, हम तो भेड़ बकरियां हैं। कोई हमारा दूध निकाल ले जाये, ऊन उतार ले जाये हम नही रोकेंगे। हमे चलना कैसे है खड़ा कैसे होना है रहना कैसे है, इस सब के लिए हमे एक डण्डे वाला गार्ड चाहिए।

खबरी -- जब तक लोग भेड़ बकरी रहेंगे, सरकारें और बदमाश उन्हें हांकते  रहेंगे ।

Saturday, June 27, 2015

इतना कचरा तो हम खा ही सकते हैं क्या फर्क पड़ता है।

खबरी -- लगातार खबरें आ रही हैं की खाने पीने का सामान बेचने वाली जिस कम्पनी का सैम्पल टेस्ट करो, खराब निकलता है।


गप्पी -- अख़बारों में रोज किसी ना किसी कम्पनी के खाने पीने सामान की क्वॉलिटी घटिया होने की खबरें हैं। रोज कोई न कोई गैर-सरकारी संस्था किसी बड़ी कम्पनी का कोई सैम्पल टेस्ट करती है और पता चलता है की इसमें ऐसी चीजें हैं जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। अख़बार उसे छाप देते हैं और कम्पनी उसका खण्डन कर देती है। कई दिन मामला जब तूल पकड़ लेता है सरकारी विभाग अपने इंस्पैक्टर को कहता है की अब पीछा छूटने वाला नही है इसलिए तुम भी सैम्पल ले ही लो। अब किसी किसी इंस्पैक्टर को तो दस साल की नौकरी के बाद ये भी पता नही होता की सैम्पल लिया कैसे जाता है। वो किसी सीनियर को फोन करके पूछता है फिर सैम्पल लेने का सामान नही मिलता है। वह बाजार से नया सामान खरीदता है और सैम्पल ले लेता है। उसके बाद बड़ा अफसर टीवी में बयान  दे देता है की हमने सैम्पल ले लिया है और अगर खराब निकला तो उसके खिलाफ  कार्यवाही होगी। अब लैब वालों की आफत शुरू होती है। लैब में ना सामान है और ना किसी को ये मालूम है की इसकी जाँच कैसे होगी। हमे इसकी आदत ही नही है।

                 लेकिन बात ये नही है। बात दरअसल ये है की क्या हमे मालूम नही है की ये सामान खाने लायक नही है। मालूम है। हम राशन का अनाज लेते रहे है जो कभी खाने लायक नही होता। जो अनाज गोदाम में खराब हो जाता है वो राशन की दुकानो पर भेज दिया जाता है। जो सही है उसे अगले साल खराब होने के बाद भेजेंगे। सरकार को भी मालूम है की अनाज खाने लायक नही है लेकिन समझती है की सब खा लेंगे। हमे भी मालूम है की खाने लायक नही है लेकिन सोचते हैं की चलो खा लेते है क्या फर्क पड़ता है। असल सवाल यही है की हमे फर्क नही पड़ता।

                   अख़बारों में रोज आता है की सैंकड़ों दवाईया ऐसी हैं जो जहां बनती हैं वहां उसी देश  में उसे बेचने पर पाबन्दी है। लेकिन हमारे यहां बिकती है धड़ल्ले से। सरकार को मालूम है लेकिन क्या फर्क पड़ता है। हमारे देश से बहुत सा सामान बाहर के देशों में बेचने के लिए भेजा जाता है परन्तु फेल हो जाने के कारण वापिस आ जाता है और हमे बेच दिया जाता है। हम खा लेते हैं क्या फर्क पड़ता है।

                      अभी दिल्ली की खबर है की वहां के रेहड़ी पर बिकने वाले खाने के सामान से लेकर कनॉट पैलेस के महंगे रेस्तरां तक सबके खाने में ई-कोली नाम का बैक्टीरिया बहुत बड़ी मात्रा में पाया गया। ये बैक्टीरिया आदमी की विष्ठा ( Human sit ) में पाया जाता है लेकिन हम खा लेते हैं क्या  फर्क पड़ता है। अजीब नजारा है। टीवी चैनल का पत्रकार रेंस्तरां में सवाल पूछ रहा है रिपोर्ट दिखा रहा है। लोग किसी टीवी सीरियल की तरह उत्सुकता से देख रहे हैं लेकिन साथ साथ जो खरीदने आये थे वो खरीद भी रहे हैं। एक भी आदमी सवाल नही करता, खरीदने से इंकार नही करता। उससे पूछो तो कहेगा की क्या फर्क पड़ता है।

                     पहले मुझे लगता था की गरीब लोग इस सामान का इस्तेमाल करते हैं। अपनी रहन-सहन की परिस्थितियों के कारण उनमे इसकी चेतना कम है, इसका विरोध कम है। लेकिन अब तो महंगे से महंगे रेंस्तरां और दुकानो पर बिकने वाले सामान की ये हालत है। इस सामान को खरीदने वाले अपर क्लास कही जाने वाली क्लास के लोग भी बिना किसी एतराज के इसे खरीद रहे हैं और खा रहे हैं।

                        हमारे देश का एक वर्ग दूसरे देशों के लोगों को सफाई के मामले में अपने से निम्न समझता  हैं। उनके  घर की रसोइयों का रख-रखाव मंदिरों की तरह किया जाता है। वे  इस बात का बहुत बखान करते हैं की वे  घर में भी जूते निकाल कर प्रवेश करते हैं। अपने बरतनों को किसी को छूने भी नही देते। कोई दलित समाज का आदमी अगर छू दे तो आग में से निकालते हैं। तीन चार दिन पहले तो ये खबर भी आई थी की एक दलित लडकी को इसलिए पीट दिया गया की उसकी परछाई किसी के टिफिन पर पड़ गयी थी। लेकिन टिफिन के अन्दर क्या  है इससे क्या फर्क पड़ता है।

                       कई माएँ अपने बच्चे की तारीफ करते हुए कहती हैं की इसे तो नास्ते में सिर्फ मैगी चाहिए। वो ये बात इतने गर्व से कहती हैं जैसे उसका बच्चा शिवाजी है और मैगी सिंहगढ़ का दुर्ग है। फ़ास्ट फ़ूड सम्पन्नता का प्रतीक हो गया है। लोग मैकडोनाल्ड, KFC, Dominos का खाना इस तरह कहते हैं जैसे वो इनमे हिस्सेदार हों। फिर सारा दिन मिलने वालों को बताते रहते हैं की आज मैकडोनाल्ड में गए थे। 

                     मुझे नही मालूम इस सबके पीछे हमारा अज्ञान है या अहँकार है लेकिन हमे फर्क नही पड़ता। 

 

                      

आज की ताज़ा खबरों का बुलेटिन

खबरी -- कांग्रेस ने मांग की है की प्रधानमन्त्री मोदी " राजे धर्म " छोड़ें और " राज धर्म " निभाएं। 

गप्पी -- मोदीजी ने " राज धर्म " वाजपेयी जी के कहने से नही निभाया तो कांग्रेस किस खेत की मूली है। 

खबरी -- खबर आई है की वशुन्धरा जी और ललित मोदी में कारोबारी रिश्ते हैं। 

गप्पी -- घोटालेबाजों और राजनेताओं में हमेशा से "कारोबारी" रिश्ते रहे हैं। 

खबरी --  खबर है की आईपीएल (सीजन आठ ) में भी मैच फिक्सिंग के आरोप लगे हैं। 

गप्पी -- मैं तो खामख्वाह परेशान था की ये सर्कस फेल न हो जाये। 

खबरी -- बीजेपी का जो MLA वीडियो में मोदीजी की आलोचना करते हुए पाया गया था उसे नोटिस दे दिया गया है। 

गप्पी -- माना बीजेपी लोकतान्त्रिक पार्टी है, लेकिन ऐसा लोकतन्त्र भी किस काम का की कोई मोदीजी की ही आलोचना करने लगे। 

खबरी -- न्यूजीलैंड से भारतीय उच्चायुक्त को वापिस बुला लिया गया है, उनकी पत्नी पर घरेलू नौकर से बदसलूकी का आरोप है। 

गप्पी -- अब उनसे कहा जायेगा की वो भारत में रहकर नौकरों से बदसलूकी करें।

Friday, June 26, 2015

भगत की पुकार पर दौड़े आये भगवान

गप्पी -- सदियों से तुम्हारे बारे में ये बात फैलाई गयी है की तुम भगत की पुकार पर दौड़े चले आते हो। इस बात से प्रभावित होकर बहुत से लोग फँस जाते हैं। परन्तु तुम किन भगतों की पुकार पर दौड़ते हो यह न उनकी समझ में आता है और न मेरी समझ में आता है। मैं यहां हजारों लोगों को रोज तुम्हे पुकारते हुए देखता हूँ पर कभी तुम्हे आते हुए नही देखा। और लोग हैं की तुम्हे पुकारते ही रहते हैं। 

                 ऐसा भी नही है की तुम कभी आते ही नही हो। पुराणो में एक कथा है की अजामिल नाम के एक डाकू ने मरते समय अपने लड़के को पुकारा। उसके लड़के का नाम नारायण था। लेकिन तुमने सोचा की वो तुम्हे पुकार रहा है और तुम दौड़े चले आये और उसके लिए स्वर्ग के दरवाजे खोल दिए। मुझे समझ नही आता की तुम चोर डाकुओं की पुकार पर तो तुरंत आ जाते हो और कोई शरीफ आदमी जब तुम्हे पुकारता है तो तुम्हारे कान  पर जूँ भी नही रेंगती। इसी अजामिल वाली कथा से प्रभावित हो कर आसाराम बापू ने भी अपने लड़के का नाम नारायण रख लिया ताकि बाद में स्वर्ग के दरवाजे खुलवाने के काम आये। उसने अपने कर्मों का मिलान भी अजामिल के साथ किया था या नही ये नुझे मालूम नही। 

                इधर हमारी सरकार भी तुम्हारे पद चिन्हो पर चल रही है। जब भी उसकी पार्टी के किसी अजामिल का नाम किसी घोटाले में सामने आता है मदद के लिए दौड़ी चली आती है और बाकि सारा देश चिल्ला चिल्ला कर मर जाता है तो उसकी पलक भी नही झपकती। किसी के खिलाफ कोई दस्तावेज सामने आ जाता है तो कह देती है साइन नही है। साइन सामने आ जाते हैं तो कह देती है की नोटरी नही है। 

               इधर हमारे पड़ौस में एक बूढी अम्मा रहती हैं। पिछले कई दिन से रट लगाये हुए  थी चारधाम की यात्रा पर जाना है। बेटा  बहू समझा रहे थे अम्मा रहने दो रास्ता सही नही है। पिछली बार कितनी जाने चली गयी थी। अम्मा कहती हैं की बेटा अब बची ही कितनी है। अगर भगवान के रास्ते में मौत आती है तो स्वर्ग ही मिलेगा, सो मेरा जाने का प्रबन्ध कर दो। बच्चों ने मन मार कर भेज दिया। पहाड़ पर चढ़ते ही बाढ़ में फँस गयी। सैंकड़ों लोग फंसे हुए हैं। लेकिन अम्मा है की रो रोकर बुरा हाल है। हाय अभी तक तो मैंने एक भी पोते की शादी नही देखी। सेना के जवान हेलीकॉप्टर से लोगों को निकाल रहे हैं। अम्मा धक्के मार मार कर सबसे आगे आ रही है। एक नौजवान ने एतराज किया तो बोली तुम्हारा क्या है तुम तो जवान हो। वो जवान इस तरह कह रही थी जैसे कह रही हो उठाईगिरे हो। अब अम्मा की आँखे आसमान पर लगी हैं।  न न न , ज्यादा खुश मत होओ वो आसमान पर तुम्हारा नही हेलीकॉप्टर का इंतजार कर रही है। उसे अब रेस्क्यू टीम पर तुम्हारे से ज्यादा भरोसा है। ये तुम्हारे लिए बुरी खबर है की लोगों का भरोसा आहिस्ता आहिस्ता तुम्हारे से उठ रहा है। 

               एक आदमी ने मुझसे कहा की तुम बेकार की बात कर रहे हो। भगवान अपने सच्चे भगतों की पुकार जरूर सुनते हैं। अभी खबर आई है की ISIS ने 18 लोगों की हत्या इस लिए कर दी की उन्होंने रमजान के दौरान खाना खा लिया था यानि रोजा नही रक्खा था। इन 18 लोगों में दो बच्चे भी थे जिन्हे तुम्हारे इन भगतों ने फांसी दे दी। मेरा अनुमान है की उन्होंने तुम्हे जरूर पुकारा होगा। आवाज शायद साफ न हो क्योंकि गले में रस्सी लिपटी हुई थी। लेकिन पुकारा तो होगा। लेकिन तुम नही आये। क्या तुम मानते हो की उनकी पुकार सच्चे दिल से नही थी। या फिर मारने वाले बड़े भगत थे। 

                     मैं तुमसे ये विनती नही कर रहा की गरीबों और मजलूमों की पुकार पर तुम जरूर आओ। मुझे मालूम है तुम नही आओगे। मैं तो केवल ये कह रहा हूँ की इन अजामीलों की आवाज पर उन्हें बचाने भी मत आओ। कहीं ऐसा ना हो लोगों की समझ में ये आ जाये की अजामिल, सरकार और तुम, तीनो से एक साथ निपटना पड़ेगा। 

खबरी -- गरीब आदमी को अब भगवान के सहारे से बाहर निकलना होगा। अपने रास्ते निकालने होंगे।

 

Thursday, June 25, 2015

मेरा पड़ौसी और आपातकाल

गप्पी -- मेरा एक पड़ौसी एकदम झल्लाया हुआ मेरे पास आया और बोला, " ये क्या हो रहा है भई , जो भी चैनल लगाओ एक ही रट लगी हुई है, आपातकाल, आपातकाल। मैं पूछना चाहता हूँ की आखिर ये आपातकाल आखिर है क्या बला। इससे ऐसा क्या हो जायेगा जो लोगों को इस तरह डराया  जा रहा है। अच्छा तुम बताओ की आपातकाल से क्या हो जाता है। "

" देखो आपातकाल का मतलब होता है की उसमे  सारे नागरिक अधिकार छीन लिए जाते हैं। " मैंने उसे समझाने का प्रयास किया। 

" क्या अभी आपातकाल है ?" उसने पूछा। 

" कैसी बात करते हो यार। अभी कौन कहता है की आपातकाल है। " मैंने कहा। 

" अच्छा, तो अब तुम्हे कौन सा अधिकार है। " उसने दोनों हाथ कमर पर रख लिए। 

" देखो, नागरिक अधिकारों का मतलब होता है वो बड़े बड़े अधिकार जैसे भाषण देने का अधिकार ओर…… " मैंने बताना शुरू किया तो उसने मुझे बीच में ही रोककर पूछा, " तुमने कभी भाषण दिया है ?"

"नही।"  मैंने कहा . 

" तो इस अधिकार का तुम क्या करोगे। अच्छा ये बताओ की अगर तुम बीमार हो और तुम्हारी जेब में पैसे न हों तो क्या तुम इलाज करवा सकते हो ?" उसने अपनी बात पूरी की। 

" बिना पैसे तो इलाज नही हो सकता। " मैंने कहा। 

" अगर पुलिस तुम्हे पकड़ने आये तो क्या तुम उससे पूछ सकते हो की मेरा वारंट है या नही। "

" वैसे कोई पूछता नही क्योंकि इसमें पिटने का खतरा रहता है। " मैंने कहा। 

" चलो जाने दो, ये बताओ की क्या तुम किसी बड़े आदमी को जिसने तुम्हे मारने की धमकी दी हो, बिना किसी सिफारिश या रिश्वत के उसके खिलाफ FIR दर्ज करवा सकते हो ?" उसने अगला सवाल पूछा। 

" नही करवा सकता। " मैं ढीला हो कर सच पर उत्तर आया। 

" क्या तुम अपने  बच्चो को अपनी मर्जी के स्कूल या विषय में पढ़ा  सकते हो, बिना पैसे। " 

" नही पढ़ा सकता। "

" अच्छा, कुछ बड़े अधिकारों के बारे में पूछता हूँ। क्या तुम बिना पुलिस से इजाजत लिए धरना दे सकते हो ?"

" नही दे सकता। " मैंने कहा। 

" अगर तुम्हारे पास काम नही है तो क्या तुम काम के अधिकार से परिवार का पेट भर सकते हो। "  वो अब हावी होने लगा था। 

" बिना काम परिवार कैसे  पाला जा सकता है। " मैंने जवाब दिया। 

" अगर कारखाने का मालिक नही चाहे तो क्या तुम वहां यूनियन बना सकते हो ?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा। 

" नही, लेबर इन्स्पेक्टर अगले ही दिन मालिक को बता देता है की फलां आदमी ने यूनियन बनाने की दरख्वास्त दी है। " मैंने हकीकत के हिसाब से जवाब दिया। 

" तो तुम ये बताओ की तुम्हारे लिए आपातकाल हटा कब था। फालतू शोर मचा रक्खा है। " उसने कहा और बिना मेरे जवाब का इन्तजार किये चला गया।


खबरी -- लेकिन आपातकाल नही है इसलिए तुम ये सब कह सकते हो।


संविधान में लिखे शब्दों का अर्थ

खबरी -- हमारे संविधान में जो मार्गदर्शक सिद्धान्त दिए गए हैं उनका कोई मतलब है खरा ?

 

गप्पी -- महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने कहा था की " मैंने बेड़े की तरह पार उतरने के लिए विचारों को स्वीकार किया है, उन्हें सिर पर उठाये फिरने के लिए नही। "

इसी तरह हमने कुछ विचारों और सिद्धांतों को हमारे संविधान में भी स्वीकार किया था। मेरा अनुमान है की वे भी पार उतरने के लिए ही स्वीकार किये गए होंगे। सही बात संविधान निर्माता जाने। उन विचारों में एक विचार समाजवाद का भी था। और एक विचार ये भी था की देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास किया जायेगा। परन्तु आजादी से अब तक हमारे नेताओं का जो आचरण रहा है उससे तो लगता है की इन्हे सिर पर उठाये फिरने के लिए ही स्वीकार किया गया है। लेकिन नेताओं के आचरण पर बात करना आाजकल देश विरोधी प्रवृति मानी  जाती है। सो इस पर बात कौन करे। अगर आज के समय में यक्ष युधिष्टर से सवाल पूछते तो एक सवाल का जवाब इस तरह होता।

 " बताओ इस दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है। "

" जनता द्वारा नेताओं के भाषणो और आचरण में समानता की खोज सबसे बड़ा आश्चर्य है। " युधिष्टर का जवाब होता।

उसके बाद यक्ष उससे उसके एक भाई को जिन्दा करने के लिए पूछते।

तो युधिष्टर कहते की " किसी को जिन्दा करने की जरूरत नही है। बस आप मुझसे ये वादा करें की आप ये बात किसी को बताएंगे नही। "

सो इस युग में इस तरह की खोज विशुद्ध मूर्खता मानी जाएगी। आजकल नेता ज्योतिषी से मुहूर्त निकलवा कर उस संविधान की शपथ लेते हैं जिसमे वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की बात कही गयी है। मेरी मति मारी गयी थी की मैंने एक मौजूदा सत्ताधारी नेता से पूछ लिया की मंत्री जी आपका आचरण इस बात के खिलाफ है जो संविधान में लिखा हुआ है की वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जायेगा।

 " संविधान में तो ये भी लिखा है की समाजवाद लाया जायेगा। आ गया समाजवाद? तुमने  कांग्रेस से तो कभी पूछा नही।" मंत्री जी ने मुझे लगभग गले से पकड़ लिया।

" पूछा था, पूछा था।  कांग्रेस से भी पूछा था। बल्कि यों कहो की चिल्ला चिल्ला कर पूछा था लेकिन उसने भी जवाब नही दिया। " मैंने पिटने के डर से जल्दी जल्दी कहा।

" किसी ने नही पूछा। और भले ही पूछा हो उसे चुना तो तुमने ही था। अब भुगतो उसका फल। " नेता जी ने मुझे उलाहना दिया।

" लेकिन चुना तो आपको भी हमने ही है। " मैंने कहा।

" तो उसका फल तुम्हारी आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी। ? नेता जी ने जवाब दिया।

अब आने वाली पीढ़ियों का भविष्य मुझे अपने से भी काला नजर आ रहा था। मैंने सोचा की इससे निपटने के लिए मुझे पावरफुल मीडिया की मदद लेनी चाहिए। मैं एक रिपोर्टर के पास पहुंचा। उसको सारी स्थिति बताई।

     वह मुझे बोला की कौनसे चैनल से मदद लेना चाहोगे।

मैं विचार करने लगा। सामने टीवी था मैंने सोचा की टीवी चालू कर लेता हूँ। इससे सारे चैनलों के नाम याद आ जायेंगे  पहला चैनल लगाया , यहां एक बाबा काले कपड़े पहने शनि से बचने का उपाय बता रहा था। दूसरा चैनल लगाया, यहां एक महिला अजीब सा मेकअप किये बैठी थी और ताश के पत्तों से देश का भविष्य बता रही थी। मैंने  तीसरा चैनल लगाया,यहां एक बाबा जी ग्रहयोग से बिमारियों का इलाज बता रहा था। मैंने एक-एक करके सारे  न्यूज़ चैनल लगा कर देखे। सब पर कोई ना कोई बाबा या साध्वी ग्रहयोग से लोगों की समस्याओं का हल बता रही थी।

            मुझे जोर की हंसी आई, खूब हँसी आई, बहुत हँसी आई, इतनी हंसी आई की आँखों में आँसूं आ गए।

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Monday, June 22, 2015

हरी अनन्त, हरी कथा अनन्ता - आधुनिक महाभारत की कथा

गप्पी -- जिस तरह हरी ने इस संसार की रचना की, समय समय पर अवतार लेकर धर्म की रक्षा की, असंख्य लीलाएँ की और लोगों को संदेश दिए, उससे हरी कथा अनन्त हो गयी है। उसी तरह एक संसार की रचना और की गयी जिसे आईपीएल का संसार कहा जाता है। इस संसार के रचयिता ललित प्रभु हैं। इनकी कथा भी उतनी ही अनन्त है। जैसे जैसे इसका संसार लोगो के सामने दृष्टिगोचर हो रहा है इसका अनन्त स्वरूप सामने आ रहा है। कहते हैं की भगवान के हजारों नाम हैं उनमे एक नाम ललित भी है। इसमें एक महाभारत की शुरुआत हो गयी है। परन्तु इसके पात्र बदल गए हैं। किसी को समझ नही आ रहा है की कौन किसकी तरफ है।

                        इस युद्ध के महान धनुर्धर नरेन्द्र युद्ध के मैदान के बीचों बीच खड़े हैं। पहली महाभारत की तरह इस बार वो युद्ध से भागते नही हैं। परन्तु उन्हें समझ नही आ रहा है की वध किसका करना है। दुश्मन के खेमे से आवाज आ रही है की उसे अपने ही पक्ष के योद्धाओं में से कुछ का वध कर देना चाहिए। वो प्रभु  की तरफ देखते हैं। प्रभु  अपना विराट रूप दिखाते हैं। ये रूप इतना विराट है की धरती के दोनों छोरों तक फैला हुआ है। इसमें उन्हें सुषमा स्वराज का सिर दिखाई देता है अपने पूरे परिवार के साथ, वसुन्धरा राजे का सिर भी है अपने पुत्र के साथ, शशि थरूर का सर भी है , शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल का सर भी है। महाराष्ट्र के पुलिस कमिशनर राकेश मरिया का सिर भी है। और भी न जाने कितने सिर हैं जिनकी शक्लें अभी साफ नही हैं। अर्जुन, मेरा मतलब है की नरेन्द्र असमंजस में हैं। प्रभु  धीरे धीरे मुस्कुरा रहे हैं और कह रहे हैं की वत्स," देख लो और पहचान लो, कौन दुश्मन है और कौन साथी ," नरेंद्र हक्के बक्के खड़े हैं। धीरे से पूछते है की प्रभु क्या मुझे भी आपकी तरह रण छोड़ कर भागना पड़ेगा।

                      परन्तु ये आधुनिक युग के प्रभु हैं। इन्हे मालूम था की कानून नाम के जरासंघ से वो हार सकते हैं। इसलिए युद्ध शुरू होने से पहले ही निकल लिए। अब लन्दन नाम की नई द्वारका में बैठकर ताल ठोँक रहे हैं की मैं जरासंघ से डरता नही हूँ। कंस के द्वारपालों को रिश्वत दे कर भाग निकले और अब वेनीश और मलेशिया में गोपियों के साथ रास रचा रहे हैं।

                          प्रभु  उपदेश देते हैं की मित्र अपने पिता देवेन्द्र से बात करके दो एक मेनका मंगवा लो और दुश्मन पक्ष के कुछ योद्धाओं को भेज दो। नरेन्द्र निराशा से कहते हैं की प्रभु सीबीआई नाम की मेनका को दुश्मन के दो बड़े योद्धाओं शंकर सिंह वाघेला और वीरभद्र सिंह के पास भेज चुके हैं। उसने अपने जाल में उनको फंसा भी लिया है परन्तु दुश्मन खेमा फिर भी मजबूत नजर आ रहा है। हमने जिन दो मोर्चो पर महिला योद्धाओं को लगा रक्खा है उनके बारे में अब कुछ साथी कहते हैं की ये कमजोर कड़ी हैं इन्हे बदल दो, वरना युद्ध हारने  का खतरा है। हमने उनको बदलने का सोचा ही था की उन्होंने संदेश भेज दिया की अगर उन्हें बदला गया तो वो अपनी सेना साथ में लेकर चली जाएँगी।

                       इसलिए हे प्रभु बहुत कन्फ्यूजन है , उचित मार्गदर्शन दीजिये।

प्रभु फिर मुस्कुराते हैं और कहते हैं की," हे संघेय ! तुमने मेरे साथ ठीक नही किया। तुम्हारे नियुक्त किये हुए पुजारी मेरा सारा चढ़ावा खा गए। जबकि तुमने वादा  किया था की न खाऊंगा और न खाने दूंगा।"

             नरेंद्र मुश्किल की मुद्रा में कहते हैं की हे प्रभु, आपने वचन के अनुसार अपनी पूरी यादव सेना तो दुश्मन को दे दी और खुद मेरी तरफ आने की बजाए द्वारका निकल गए। अब मेरे रथ का सारथी नही मिल रहा है। हमारे पक्ष में जिस एकमात्र योद्धा को रथयात्रा का अनुभव था हमने बब्रुवाहन की तरह उनका सिर युद्ध की शुरुआत में  उनके ही हाथों कटवा दिया था कुल की रक्षा के लिए। अब उनका कटा हुआ सिर भी अंट शंट बोलता रहता है। हमारे मराठा नरेश शल्य की भूमिका में आ गए हैं। लड़ भी हमारी तरफ से रहे हैं और गालियां भी हमे ही दे रहे हैं। अभिमन्यु अब दूध पिता बच्चा नही रहा। वो अब मगध नरेश है। हमने जिस चक्रव्यूह का निर्माण उसको  मारने  के लिए किया था उसमे वो भीम को साथ में लेकर घुस गए हैं। हमने दुशासन और जयद्रथ को भेजा तो है परन्तु वहां से खबर आ रही है की वो आपस में लड़ रहे हैं। इसलिए बहुत मुश्किल समय है प्रभु, अगर इस समय में उचित मार्गदर्शन नही मिला तो आपका ये मित्र और भक्त युद्ध हार सकता है। ऊपर  से आप अपने विराट रूप में जब राजीव शुक्ला का चेहरा दिखाते हैं तो साथ में अरुण जेटली का भी दिखा देतें हैं। अब हमारे पास कोई शकुनि भी नही है और हम केवल सुब्रमणियम स्वामी के भरोसे हैं। इसलिए हे माधव हमारी गलतियों को क्षमा करके इस मुसीबत से निकालिये।

           लड़ाई जारी है। भगवान के विराट रूप में और किस किस के सिर लगे हैं ये धीरे धीरे साफ हो रहे हैं। ये युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच नही है। लोगों को लग रहा है की दोनों तरफ कौरव हैं। दोनों खेमे केवल एक दूसरे पर ही हमला नही कर रहे हैं बल्कि अपने पक्ष के योद्धाओं पर भी हमले हो रहे हैं। एक ही चीज एक जैसी है की प्रभु तब भी बिना हथियार उठाये सबको मार रहे थे और अब भी बिना हथियार उठाये संहार कर रहे हैं। हे प्रभु तेरी लीला अनन्त है। 

खबरी -- ये युद्ध भी अट्ठारह दिन में खत्म हो जायेगा क्या ?

Sunday, June 21, 2015

बन गया वर्ल्ड रिकार्ड, चलो अब काम करो।

खबरी -- सुना है योग दिवस पर कई वर्ल्ड रिकार्ड बन गए। 


गप्पी -- इसी लिए तो सारा देश लगा हुआ था। वरना योग की किसको पड़ी है। हम वर्ल्ड रिकार्डों से बहुत प्रेम करते हैं। और जहां भीड़ इक्क्ठी करने से वर्ल्ड रिकार्ड बन सकता हो वहां तो हम टूट पड़ते है। ये हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। हमे महान होने में नही, महान दिखने में बहुत मजा आता है, सन्तोष मिलता है गर्व होता है। लेकिन अगर कोई जरा सा छेड़ दे तो सारी  असलियत सामने आ जाती है। 

                कुछ वर्ल्ड रिकार्ड ऐसे भी हैं जो हमारे नाम पर अपने आप बनते जाते हैं। हम उन पर भी गर्व महसूस करते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चों का रिकार्ड , सबसे ज्यादा भूखों का रिकार्ड, सबसे ज्यादा अनपढ़ों का रिकार्ड और शायद सबसे ज्यादा अनैतिक होने का रिकार्ड भी। कुछ रिकार्ड ऐसे भी हैं जिनको कभी भी कोई चुनौती नही हैं। ये हमेशा हमारे ही नाम पर रहने वाले हैं। जैसे दहेज के लिए बहुओं को जलाने का रिकार्ड, स्त्री भ्रूण हत्या का रिकार्ड। 

                  हम अपनी महानता का ढिंढोरा भी खूब पीटते हैं। हमारी क्रिकेट टीम बंगलादेश गयी तो हमने अपनी महानता के विज्ञापन अख़बारों में दिए। " बाप बाप होता है बेटा बेटा होता है " .क्रिकेट के विशेषज्ञ टीवी चैनलों पर हमारी महानता का प्रचार कर रहे थे। पर बेटा बताई जाने वाली बांग्लादेश की टीम ने हमें ऐन फादर्स डे के दिन पीट दिया। जब हारने  लगे तो हमारी सारी महानता खुल कर सामने आ गयी। मिस्टर कूल कहलाने वाले धोनी को धक्का मारते  हुए सबने देखा। हमारी टीम के सदस्यों को गाली  गलौच करते हुए भी सबने देखा। इसे खेल की भाषा में हारते हुए रोना कहते हैं। हम जीत नही पाये कोई बात नही लेकिन सम्मान से हार भी नही पाये। ये हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। 

                   लेकिन हमने विश्व रिकार्ड तो बना लिया। आगे का क्या होगा। हम इस बात पर गर्व करते हुए की हमने विश्व को जीरो दिया गणित में जीरो हो गए। हम इस बात पर गर्व करते रहे की हमने दुनिया को सभ्यता सिखाई, सारी असभ्यता के रिकार्ड बनाते चले गए। महिलाओं के खिलाफ हिंसा, दलितों के खिलाफ भेदभाव शायद असभ्यता नही माना जाता। क्योंकि इसके उदाहरण तो राम राज्य में भी मिलते हैं। शम्बूक की हत्या और सीता का त्याग इसके क्लासिक उदाहरण हैं। इस तरह के काम करने के बावजूद अगर राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहला सकते हैं तो हमने क्या गुनाह किया है। हमारी संस्कृति में पूर्ण पुरुषोत्तम होने के लिए चोरी और बेईमानी का शामिल होना पूर्व  शर्त है। इसीलिए कृष्ण को पूर्ण पुरुषोत्तम कहा गया है। हम गुरु हो कर शिष्य का अँगूठा काट सकते है हमारा अधिकार है। हम धर्मराज होते हुए पत्नी को जुए में हार सकते हैं। इन छोटी छोटी घटनाओं से हमारी महानता पर पहले भी फर्क नही पड़ता था अब भी नही पड़ता। 

                       खैर अब हमने विश्व रिकार्ड बना ही लिया है तो अब इस देश का सामान्य जन ये अपेक्षा करता है की अब थोड़ा काम भी कर लिया जाये। उन चीजों पर ध्यान दिया जाये जो महान होने के लिए नही लेकिन जीने के लिए जरूरी होती हैं।

Saturday, June 20, 2015

हम आगे तो बढ़ रहे हैं भले ही पीछे की तरफ

 गप्पी -- मैं शिक्षा के क्षेत्र की बात कर रहा हूँ। इसमें बहुत तेजी से तरक्की हो रही है। जैसा सरकार चाहती थी वैसी ही हो रही है। हमारे प्रधानमन्त्री डिजिटल इंडिया की बात करते थे। अभी अभी जो AIPMT की परीक्षा रद्द की गयी है उसके बारे में कहा गया है की उसमे एक चिप के द्वारा जो परीक्षा देने वाले के अंडरवियर में लगाई गयी थी, के द्वारा नकल की जा रही थी। किसी ने फोन करके इसकी सूचना पुलिस को दे दी और पुलिस ने छापा मारकर इस स्कैंडल को पकड़ लिया। परन्तु इससे ये बात तो साबित होती ही है की हम डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहे हैं। 

                   दूसरी महत्वपूर्ण बात जो शिक्षा के क्षेत्र हो रही है वो सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास हैं जो शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही दूरगामी भूमिका निभा सकते हैं। हम शिक्षा के क्षेत्र में हमारी 5000 साल पुरानी संस्कृति की तरफ बढ़ रहे हैं। इसकी शुरुआत तब हुई जब हमारे प्रधानमन्त्री ने एक बारहवीं पास सांसद को इस क्षेत्र का मंत्री बना दिया। उसको ये जिम्मेदारी दी गयी है की वो विश्वविद्यालयों के कुलपति और उपकुलपति नियुक्त करें। ऐसा करने से पहले वो उनकी योग्यता की जाँच जरूर करेंगी। लेकिन कोई कह रहा था की किसी कुँए की गहराई मापने लिए डंडे की लम्बाई कुँए से ज्यादा होनी चाहिए। खैर ये पुरानी और दकियानूसी बात है। उन्होंने इस क्षेत्र में काम भी करना शुरू कर दिया है। पूना फिल्म इंस्टिट्यूट में गजेन्द्र चौहान को चेयरमैन नियुक्त कर दिया गया है। उनकी कुल योग्यता ये है की वो पिछले बहुत सालों से भाजपा से जुड़े रहे हैं। इस पर वहां हड़ताल हो गयी। वहां के छात्र कह रहे हैं की जिस पद पर कभी गिरीश कर्नाड , श्याम बेनेगल , अडूर गोपालकृष्णन जैसे ख्याति प्राप्त लोग रहे हो वहां सरकार ऐसी नियुक्ति कैसे कर सकती है। सरकार का कहना है की उनका तीस साल का फिल्म इन्डस्ट्री का अनुभव है। अब लोगों को ये बात समझ नही आ रही की क्या तीस साल सब्जी की रेहड़ी लगाने से कोई व्यक्ति बागवानी अनुसंधान का निदेशक होने की योग्यता प्राप्त कर सकता है। उसके बाकी निदेशक भी इसी तरह की योग्यताओं के अनुसार नियुक्त किये गए हैं। 

                     इससे पहले इतिहास अनुसंधान से जुडी एक पत्रिका का निदेशक मण्डल भंग कर दिया गया, जिसमे रोमिला थापर जैसे अंतरराष्ट्रीय श्रेणी के लोग थे। बाकि संस्थाओं के लिए भी योग्य लोगों की तलाश चल रही है। 

                     मैं कल्पना करता हूँ की मान लीजिये किसी विज्ञानं एवं तकनीकी संस्थान के निदेशक के पद के लिए इन्टरव्यू चल रहा हो तो उसका दृश्य कैसा होगा। साक्षात्कार चल रहा है। सामने बैठे उम्मीदवार से प्रसन्न पूछा जाता है, " आपकी विज्ञानं के क्षेत्र की जानकारी को अपडेट करने के लिए आप क्या करते हैं ?"

             " मैं उसके लिए पिछले तीस साल से "कल्याण" पढ़ रहा हूँ। " उम्मीदवार जवाब देता है। 

 " आपके विचारों का श्रोत क्या है और आप विज्ञानं के इतिहास के बारें में क्या जानते हैं ?" दूसरा प्रश्न पूछा जाता है। 

              " मैं मानता हूँ की विज्ञानं का उदय और अन्त हमारे वेदों में ही है। जो तरक्की हमने अस्त्र-शस्त्रों के क्षेेत्र में महाभारत काल में कर ली थी उसके बाद हमे और कुछ करने की जरूरत नही है। जहां तक विचारों का सवाल है तो गुरु जी ने जो "बंच ऑफ़ थॉट्स " लिखा था मैं नही समझता की उससे बाहर विचारों  अस्तित्व है। "

उम्मीदवार ने जवाब दिया। 

              इन्टरव्यू कमेटी के सदस्यों के चेहरे पर सन्तोष के साथ मुस्कान उभरी। उन्होंने बाकि बचे लोगों को वापिस भेज दिया। उपयुक्त उम्मीदवार मिल चूका था। 

 

खबरी -- हे भगवान इस देश का भविष्य अब केवल तुम्हारे हाथों  में है, इसे अपने अनुयायिओं से बचाइये।


एक बार फिर भ्रम आसन को तैयार देश

खबरी -- योग क्या क्या (नही) कर सकता है।


गप्पी -- हमारा देश योगियों का देश है। यहां बड़े बड़े योगी हुए हैं। लोगों ने हजारों साल तपस्याएँ की हैं। हमारे देश में हमेशा योगी और योगिराज बड़ी संख्या में रहे हैं।ये साधु बाबा और योगियों को अगर अलग बसा दिआ जाये तो एक दूसरा आस्ट्रेलिया बस जाये। समाज को गाली देने और उसी समाज पर पलने वाले ये परोपजीवी इतनी बड़ी संख्या में में दुनिया में और कही नही मिलेंगे। लेकिन हमारा देश फिर भी भूखा नंगा ही रहा। सालों पहले भी हमारी समस्या भूख , गरीबी और बेरोजगारी थी और आज भी वही है। आंकड़े कहते हैं की दुनिया के सबसे ज्यादा अन्धे हमारे भारत में हैं। योग दिवस पर हम इसका प्रदर्शन पूरी दुनिया के सामने करेंगे। हम पूरे देश में हर उमर के और हर प्रकार के शरीर के लोगों के लिए एक ही तरह के योगासन करेंगे। एक दोनों पैरों पर भी मुश्किल से खड़ा होने वाला आदमी एक पैर पर खड़ा होने की कोशिश करेगा। जिसे कमर दर्द की शिकायत है और डाक्टर ने बैड पर आराम करने को कहा है वो चक्रासन करेगा। जो आसन कुछ लोग मोटा होने के लिए करेंगे, वही आसन कुछ लोग पतला होने के लिए भी करेंगे। 21 जून को एक ही दिन में हम योग का मजाक बना कर रख देंगे।हमारी जो समस्याएं हैं वो योग दिवस बाद भी रहने वाली हैं। फिर क्यों सारा देश इसके पीछे पागलों की तरह लगा हुआ है। 

                   हमारे देश में झूठी प्रशंसा के भूखों की कमी नही है। कभी नही रही। देवता भी झूठी प्रशंसा से प्रसन्न होते थे।

Thursday, June 18, 2015

लोकतन्त्र की रक्षा के लिए 21 FIR की मन्नत

खबरी -- पुलिस FIR कब दर्ज करती है ?


गप्पी -- हमारे मुहल्ले में एक नेता रहते हैं। सरकारी पार्टी के बड़े नेता हैं। पूरे मुहल्ले में  उनकी दादागिरी चलती है। यहां एक दूसरी छोटी पार्टी के नेता भी रहते हैं। ये आदमी थोड़ा सनकी है और संविधान और कानून में बहुत विश्वास रखता है। जब लगभग सारा देश कानून और संविधान में विश्वास रखना बंद कर चुका है ये तब भी उस पर अड़ा हुआ है। लोगों की मदद करता है इसलिए लोगों की इसके साथ सहानुभूति  है। 

                   अब हुआ ये की दोनों नेताओं का झगड़ा हो  गया। बड़े नेता को यह बात पसन्द नही आई की उसके ही मुहल्ले में कोई उसको चुनौती दे। उसने पुलिस कमिशनर को बुला कर उसे सीधा करने की  सुपारी दे दी। अब सवाल ये खड़ा हुआ की इस पर मुकदमा किस अपराध में बनाया जाये। एक पुलिस वाले की ड्यूटी इसके घर के बाहर लगा दी गयी की एक-एक पल की खबर कमिशनर को दे। सुबह-सुबह ये नेता काम पर जाने के लिए घर से निकला तो देखा की एक आवारा कुत्ता पार्किंग में गंदगी कर  रहा है। उसने एक पत्थर उठा कर उस पर फेंका। पत्थर कुत्ते को लगा और वो चीखता हुआ भाग गया। 

                      पुलिस कमिशनर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया की छोटे नेता के खिलाफ जानवरों पर अत्याचार करने और सोसाइटी की सुरक्षा को खतरे में डालने का मुकदमा दर्ज किया गया है। पत्रकारों ने जब घटना के बारे में जानकारी मांगी तो कमिशनर ने कह  दिया की मामला संवेदनशील है इसलिए जाँच पूरी होने तक और जानकारी नही दी जा सकती। उसे गिरफ्तार कर लिया गया। 

                        शाम को उसके पिताजी घर से बाहर निकले। उन्होंने सिगरेट का आखरी कश लिया और सिगरेट फेंक कर आगे निकल गए। 

                        पुलिस कमिश्नर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया की उसके खिलाफ सार्वजनिक जगह पर धूम्रपान करने और सोसायटी में गन्दगी फ़ैलाने के लिए मुकदमा दर्ज किया गया है। उसे गिरफ्तार कर लिया गया। 

                     अब घर के दोनों पुरुष सदस्य जेल में थे। घरवाली बेचारी परेशान थी। दो साल का छोटा बच्चा उसे परेशान कर रहा था। उसने झुँझला कर उसे एक चांटा जड़ दिया। बच्चा रोता हुआ बाहर निकल गया। 

                      पुलिस कमिशनर ने प्रेस कांफ्रेन्स की और बताया की उसकी पत्नी के खिलाफ बच्चों पर अत्याचार करने का मुकदमा दर्ज किया गया गया है। बड़े नेता की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उसके खिलाफ प्रदर्शन किया। महिला और बाल कल्याण मंत्री ने इसकी सख्त शब्दों में निन्दा की। बच्चो से संबन्धित आयोग ने उसे नोटिस भेजा। पुलिस गिरफ्तार करने उसके घर पहुंची ,उसकी बूढ़ी माँ ने इसका विरोध किया परन्तु पुलिस उसे गिरफ्तार करके जेल ले गयी। 

                         पुलिस कमिशनर ने फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया की उसकी माँ के खिलाफ सरकारी कर्मचारियों के काम में बाधा डालने का मुकदमा दर्ज किया गया है। सरकारी पार्टी के नेताओं ने इस बात की निंदा की कि कम से कम कानून को तो अपना काम करने देना चाहिए। उनके कार्यकर्ताओं ने उसके खिलाफ प्रदर्शन किया और  गिरफ्तारी की मांग की। बुढ़िया की लड़की और जमाई आये और उसे अकेली देखकर अपने साथ ले गए। पुलिस ने घर पर छापा मारा। वहां कोई नही मिला। बुढ़िया को फरार घोषित कर दिया गया। अगले दिन पुलिस ने बुढ़िया को उसकी बेटी के घर से गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी बेटी और दामाद को कानून से भागे हुए अपराधी को शरण देने के अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया। 

                      पुलिस कमिशनर ने फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और विश्वास दिलाया की पुलिस इस पूरे रैकेट का भंडाफोड़ करेगी और कानून अपना काम पूरी ईमानदारी से करेगा। कानून की  ये ईमानदारी सरकारी नेता के प्रति है इसका खुलासा करने की उसने जरूरत महसूस नही की क्योंकि 65 साल के लोकतंत्र में जनता इतना तो समझ  ही चुकि होगी। सरकारी पार्टी के नेताओं ने टीवी चैनलों पर इसकी निन्दा की। 

                      घर के सामने ड्यूटी पर तैनात किये गए पुलिस वाले ने कमिशनर को फोन करके कहा की अब यहां तो कोई है नही तो उसके लिए अगला आदेश क्या है। कमिशनर ने उसे डांटते हुए कहा  की उसके दूसरे रिश्तेदारों का पता लगाये और मुहल्ले में  कौन-कौन उसके समर्थक हैं इसका पता लगाये। सरकार ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए 21 FIR की मन्नत मांगी है और जब तक ये पूरी नही हो जाती लगे रहो। 


Wednesday, June 17, 2015

संविधान का दम घुट रहा है

खबरी -- संविधान को लागु करने और हिफाजत करने वाली संस्थाओं पर सवाल उठ रहे हैं। 


गप्पी -- देखिये हमारे देश का संविधान लगभग 65 साल पहले बना। अब इस बात पर सवाल किये जा रहे हैं की क्या पिछले 65 सालों में देश का कामकाज संविधान  के अनुसार चला। लेकिन देश में एक चीज और है जो संविधान से पहले बनी, वह है पुलिस। उम्र के लिहाज से वह संविधान को अपने से छोटी चीज मानती है। इसलिए जब पुलिस को कहा जाता है की वह संविधान के अनुसार काम करे उसे ये बात हजम नही होती। दूसरी जो जमात जिसे संविधान से सबसे ज्यादा एतराज है वह है नेता। अब सरकार नेता चलाते हैं। संविधान की एक गंदी आदत थी की वो बार बार सरकार के सामने आ कर खड़ा हो जाता था। नेता के काम में रोड़ा अटकता था। इसलिए सरकार ने पूरा विचार-विमर्श करके संविधान को पुलिस थाने  में रखवा दिआ। पुलिस कमिशनर को  हिदायत दी गयी की इसकी इस तरह देखभाल करनी है की ये हिल न सके। अब पुलिस ने विचार किया और उसने संविधान को उठा कर सीट की जगह कुर्सी पर रख लिया और उसके ऊपर बैठ गयी। संविधान का दम  घुटने लगा। लोगों ने शिकायत की कि संविधान का दम घुट रहा है। सरकार ने कहा कानून अपना काम करेगा। किसी को दम घुट कर मरने नही दिया जायेगा। 

                       लोग अदालत के पास गए और कहा की संविधान का दम घुट रहा है। अदालत संजीदा हुई और थाने पहुंच गयी। पुलिस अफसर ने अदालत को थाने में देखा तो तुरन्त उठ कर सैल्यूट किया। संविधान को थोड़ा सा साँस आया और उसने चिल्लाना शुरू किया। अदालत ने कहा की तुम संविधान का दम नही घोंट सकते। अदालत ने सरकार से पूछा की उसने संविधान को पुलिस थाने में क्यों रखवाया। सरकार ने कहा की संविधान बहुत महत्वपूर्ण चीज है और उसकी सुरक्षा के लिए उसे पुलिस थाने  में रक्खा गया है। और ये सरकार का विशेषाधिकार है की वो संविधान को अपनी मर्जी से कहीं भी रख सकती है। अदालत ने कहा चलो हम इसको देखेंगे की संविधान को कोई तकलीफ न हो। उसके बाद अदालत वक़्त-बेवक़्त थाने पहुंच जाती। पुलिस उठ कर सैल्यूट करती और संविधान चिल्लाने लगता। अदालत पुलिस को डांट पिलाती। 

                    स्थिति बहुत विकट हो गयी। सरकार ने नया आदेश  जारी किया की अदालत को पहले नोटिस देना पड़ेगा की वो कब पुलिस थाने जा रही है। उसके बाद पुलिस ने संविधान के ऊपर दूसरा अफसर बिठा दिया और सैल्यूट करने के लिए दूसरा अफसर रख लिया। अब जब भी अदालत पुलिस थाने जाती है उसे संविधान के चिल्लाने की आवाज सुनाई नही देती। इस तरह सब ठीक ठाक चल रहा है। 

                     अब संविधान को दम घुटने से बचाने का केवल एक ही रास्ता बचा है की लोग थाने में घुसकर संविधान को पुलिस के नीचे से निकाल लें और उसे उसकी सही जगह पर रख दें। देंखे ये कब होता है।

 

माया का मोह कैसे छोड़ूँ

खबरी -- क्या कभी सतसंग में गए हो ?


गप्पी -- कई बार गया हूँ। लेकिन मुझे सतसंग करने वालों और सुनने वालों दोनों में कोई दिलचस्पी नही है। मेरे सारे मित्र  भी इस बात को जानते हैं इसलिए मुझे चलने के लिए कोई जोर नही देता। लेकिन एक दिन एक ऐसी घटना हुई जिसे मैं जरूर बताना चाहूंगा। 

                         मेरे एक मित्र मेरे पास बैठे थे। उनकी सतसंग में बहुत श्रद्धा थी। वो कई  बार अपने गुरु के गुणगान कर चुका था परन्तु हमारी तरफ से कोई उत्सुकता न दिखाने  के कारण निराश हो जाता था। नौकरी से रिटायर हो चुका था और लड़के अच्छे पदों पर थे। कोई काम उनके जिम्मे नही था यानि सतसंग का पूरा योग बनता था। तभी वहां हमारे एक दूसरे मित्र का आगमन हुआ। ये बेचारा स्वभाव से थोड़ा भोला था और काम धन्धे के बारे में  हमेशा परेशान रहता था। इसी वजह से घर में थोड़ी बहुत कहा सुनी भी हो जाती थी। वह परेशान हाल हमारे पास आता और हम उसे थोड़ी सांत्वना दे देते और उसका धीरज बंधाते तो वह सामान्य हो जाता। उस दिन भी वह बुरी तरह परेशान था। उसने घर के झगड़े का जिक्र किया ही था की पहला मित्र बोला चलो आज तुम मेरे साथ सतसंग में चलो। वहां गुरु जी की वाणी सुनोगे तो सारे सन्ताप दूर हो जायेंगे। उन्होंने जोर देकर मुझे भी साथ आने को कहा। मैं जाना नही चाहता था क्योंकि दो एक बार मित्रों के साथ गया था तो वहां मैंने एकाध सवाल पूछ लिया और नतीजा ये निकला की दोनों दोस्तों के साथ हमेशा के लिए संबंध समाप्त हो गए। मैं वैसा कोई खतरा उठाना नही चाहता था परन्तु अधिक जोर देने के बाद मुझे साथ जाना पड़ा। परन्तु मैंने तय कर लिया की सवाल पूछना तो दूर, मैं एक शब्द भी नही बोलूंगा। 

                       हम वहां पहुंचे। हमारे से पहले ही वहां 30 -35 लोग बैठे हुए थे। उनके गुरूजी भी बैठे हुए थे। सतसंग थोड़ी देर पहले शुरू हो चुका था। प्रवचन चालू था। गुरूजी ने एक बार रुक कर हमारी तरफ देखा और जब हम बैठ गए तो आगे बोलना शुरू किया। 

                        " आत्मा और शरीर का किराये के मकान जैसा संबंध है। किरायेदार को चले जाना है और मकान को वहीं रह जाना है। शरीर को सुख दुःख का अनुभव होता है, आत्मा को नही होता। इसलिए मनुष्य को शरीर की चिंता नही करनी चाहिए केवल आत्मा की शुद्धि की तरफ ध्यान देना चाहिए। मनुष्य माया के जाल  में जकड़ा हुआ है माया उसे तरह तरह का नाच नचाती है। इसलिए मनुष्य को माया के मोह में नही पड़ना चाहिए। "

                       मैंने देखा की हमारा नया दोस्त कुछ ज्यादा ही सतर्क हो कर सुन रहा है। 

                      गुरु जी ने आगे बोलना शुरू किया। " मनुष्य को चाहिए की वो माया को छोड़ दे और शांति की तलाश करे। मनुष्य का उद्देश्य शांति प्राप्त करना होना चाहिए। "

                   हाल में भीड़ बढ़ गयी थी और पहले ही गर्मी के मौसम के कारण गर्मी और बढ़ गयी। गुरु जी ने  सफेद अँगौछे से पसीना पौंछा और पहली कतार में बैठे एक आदमी को सम्बोधित किया। ये आदमी एक मिल मालिक था जो आधे शहर का पैसा खा जाने के कारण बदनाम था। 

                   " विकट गर्मी है। साधकों की आत्मा को बहुत कष्ट होता है। एकाध वातानुकूलित यंत्र का प्रबंध हो जाता तो अच्छा रहता। "

                  क्यों नही गुरूजी , कल ही करवा देता हूँ। मिल मालिक ने जवाब दिआ। 

                   दोनों के चेहरे पर संतुष्टि  भाव उभर आये। मैंने अपने आप को बड़ी मुश्किल से ये पूछने से रोका की अभी तो आप कह रहे थे आत्मा को कष्ट नही होता। परन्तु मुझे मेरे मित्र पर दया आई और मैंने नही पूछा। परन्तु मुझे मालूम पड़ गया था की अब सतसंग ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे और चलेगा क्योंकि उसके बाद गुरूजी को अपनी आत्मा को ठंडी बियर में डुबोने की जरूरत पड़ेगी वरना वो इस नश्वर शरीर को छोड़ जाने की कोशिश कर सकती है। वही हुआ , गुरूजी ने सतसंग समाप्त करने की घोषणा कर दी। हम तीनो बाहर आए। हमारे सतसंगी साथी ने नए साथी से पूछा की कुछ समझ में आया की नही। 

                        नया साथी पहली बार सतसंग आया था और स्वभाव से भोला भी था। उसने कहा की गुरूजी तो सचमुच अंतर्यामी हैं। उन्हें मेरी समस्या का बिना बताये ही पता चल गया। ये बात सही है की माया ने मुझ पर अधिकार जमा रक्खा है। और माया के अधिक मोह के कारण ही हमारे पांच बच्चे हो गए जो इस महंगाई के जमाने में ज्यादा ही हैं। लेकिन मुझे गुरूजी की एक बात ठीक नही लगी।  उसने उलाहना देने जैसा मुंह बनाया। 

             मैं अपनी हंसी को मुश्किल से रोके हुए था। 

           क्या पसंद नही आया? सतसंगी ने पूछा। 

  यही की माया को छोड़ दो। ये बात सही है की मैं भी शांति को ज्यादा पसंद करता था परन्तु अब इस उम्र में मैं माया को छोड़ दूँ तो मेरे बच्चों का क्या होगा। उसने भोलेपन में जवाब दिया। 

               मेरे मुंह से ठहाका निकला और हँसते हँसते पेट में बल पड़ गए। मेरे सतसंगी मित्र की हालत ऐसी थी जैसी उस आदमी की होती है जो खजाने की तलाश में बिल में हाथ डालता है और उसे बिच्छू काट लेता है।

Tuesday, June 16, 2015

बिहार चुनाव और चेहरे की जरूरत

खबरी -- अभी-अभी खबर आई है की बिहार में बीजेपी मोदीजी के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। 


गप्पी -- खबर तो सही है। अभी-अभी कोई मुझसे पूछ रहा था की कोनसे मोदी के चेहरे पर , ललित मोदी या नरेंद्र मोदी। मैंने उसे समझाया की बेवकूफ आदमी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ेगी न। क्योंकि बिहार में उसके पास दूसरा कोई चेहरा नही है। 

                  उसने मुझसे पूछा की पूरे बिहार में एक भी आदमी बीजेपी के पास ऐसा नही है जिसे लोग एक ठीक- ठाक मुख्यमंत्री मान लें। और जिस तरह मोदी जी चेहरे की लाली उत्तर रही है उससे तो ये भी हो सकता है की बिहार चुनाव तक ये चेहरा रंगहीन हो जाए। और फिर ललित मोदी को जनता मानवीय आधार पर जीता भी सकती है। कम से कम बीजेपी ने ये तो कह ही दिया है की ललित मोदी पर कोई ऐसे गंभीर आरोप नही हैं। दूसरा ललित मोदी चुनाव में पैसा भी खूब खर्च कर सकते हैं। पहले पीछे से करते रहे होंगे अब सामने से करेंगे। और इसका सबसे बड़ा फायदा तो ये होगा की फिर बिहार में बीजेपी के पास तीन मोदी हो जाएंगे। नरेंद्र मोदी, सुशील मोदी और ललित मोदी। तीन मोदी तो मिलकर चुनाव जीत ही सकते हैं। 

                   मैंने उसे समझाया की मोदीजी का चेहरा आगे रखने के कई फायदे हैं। आरएसएस की यह पुरानी नीति रही है की वो हजार मुँह से बोलती है और अलग अलग बोलती है। लोग मजाक में ये भी कहते हैं की आरएसएस हजार मुंह वाला साँप है। खैर मैं ये तो नही कहता परन्तु अलग अलग मुँह से बोलने के फायदे तुम्हे बता देता हूँ। 

                     आरएसएस का एक नेता मुसलमानो के खिलाफ जहर उगलता है तो दूसरा उसका खंडन कर देता है। इससे ये फायदा होता है की मंदिर आंदोलन के कार्यकर्ताओं की मीटिंग होती है तो संघ पहले बयान को अपनी आधिकारिक लाइन बता देता है और जब बाकि देश को या कानून को जवाब देना होता है तो दूसरे बयान को आगे कर देता है पहले बयान को निजी राय बता देता है। 

                       उसी तरह बीजेपी बिहार में जब ठाकुरों के बीच में जाएगी तो किसी ठाकुरों के नेता के कंधे पर हाथ रखकर जाएगी। उसे मंच पर प्रधानमंत्री के बगल वाली सीट पर बिठाया जायेगा। ठकुरों को लगेगा की ही मुख्यमंत्री बनने वाला है। इसी तरह यादवों के बीच में यादव नेता को लेकर, पिछड़ों के बीच में पिछड़े नेता को लेकर, दलितों के बीच में दलित नेता को लेकर, इस तरह हर जाती और वर्ग को विश्वास दिल दिया जायेगा की मुख्यमंत्री तो उनमे से ही बनने वाला है। अगर चुनाव से पहले नेता घोषित कर दिया जायेगा तो ये सुविधा खत्म हो जाएगी। और अगर जनता का ज्यादा ही दबाव पड़ा तो तब तक किरण बेदी की तरह कोई चेहरा ढूंढ लिया जायेगा। 

                      
                     

बीजेपी की छवि और योगासन

खबरी -- क्या योग में ऐसा भी कोई आसन है जो बीजेपी की गिरती हुई छवि को बचा सके ?

गुप्पी -- हाँ , एक आसन है लेकिन वो उसे जनता के सामने करना पड़ेगा। उसकी फोटो नीचे  दी जा रही है



Monday, June 15, 2015

यमन में युद्ध विराम की अपील

खबरी -- बान -की -मून ने कहा है की यमन में लड़ाई तुरंत बंद होनी चाहिए . 


गप्पी -- ये कौन हैं ?

सरकार की बकरी अण्डा देती है।

खबरी -- आखिर बकरी अंडा कैसे दे सकती है ?


गप्पी -- इसका अनुभव मुझे अभी हाल  ही में हुआ। मेरे एक मित्र मेरे पास बैठे थे। उसने कहा की सरकार श्रम कानूनो में सुधार करने जा रही है, इस पर तुम्हारा क्या विचार है ? मैंने कहा ये तो अच्छी बात है। भारत का मजदूर बेचारा बहुत बुरी स्थितियों में काम करता है। उसे सरकार द्वारा तय वेतन तक नही मिलता। उसकी हाजरी का भी रिकार्ड नही होता। बुढ़ापे में जब वो मजदूरी करने लायक नही रहता उसकी हालत बहुत दयनीय हो जाती है। उसे न पेन्शन मिलती है ना ईलाज की कोई सुविधा है। उसे बारह -बारह घंटे काम करना पड़ता है। बोनस वगैरा का तो उसने कभी नाम भी नही सुना होगा। अगर देर से ही सही सरकार श्रम कानूनो में सुधार करना चाहती है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। 

                     मेरे मित्र ने मुझे इस तरह देखा जैसे मेरे सर पर कौवा बैठा हो। तुम्हारा तो दिमाग खराब है। श्रम सुधारों का मतलब है की जो थोड़े बहुत भी कानून हैं या तो उन्हें समाप्त कर दिया जाये या उनमे इस तरह फेरबदल कर दिया जाये की उनका कोई मतलब ही नही बचे। 

                    लेकिन तुम तो कह रहे थे की सुधार कर रहे हैं। मैं हैरान हुआ। 

                     बेवकूफ इसे ही सुधार कहते हैं। पब्लिक सैक्टर में सुधार का मतलब है उसे बेच देना। करों में सुधार का मतलब है अमीरों पर टैक्स कम करना और गरीबों पर बढ़ाना। आर्थिक सुधारों का मतलब होता है जो कुछ भी आम जनता के लिए है चाहे वह राशन के अनाज पर सब्सिडी ही क्यों न हो, उसे खत्म कर देना और उन लोगों को बेलआउट पैकेज देना जो बेचारे लाख दो लाख रूपये रोज किराये के होटल में ठहरते हैं। सरकार कह रही है की वो आर्थिक सुधारों की गति को और तेज करेगी क्योंकि उसके बिना कॉर्पोरेट को उद्योग चलाने  मुश्किल हो रहे है। 

                           धन्य है हमारा कॉर्पोरेट जो बैंक कर्जा वापिस मांग ले तो दिवालिया हो जाता है, मजदूरों को वेतन देना पड़ जाये तो वायबल नही रहता और टैक्स देना पड़ जाये लुट जाता है। बाकि सब तो ठीक है पर सरकार इस बर्बादी को सुधार क्यों कहती है कम से कम शब्दों का तो सही इस्तेमाल करे। मैंने कहा। 

                          मेरे मित्र ने मुस्कुराते हुए मुझे एक किस्सा सुनाया। एक बार कुछ लोग गांव के चबूतरे पर बैठे थे। एक आदमी बोला की उसकी बकरी रोज एक अंडा देती है। लोगों को  बड़ा अजीब लगा। उन्होंने कहा भले आदमी कभी बकरी भी अंडा देती है ? वह आदमी बोला की उसकी बकरी रोज एक अंडा देती है अगर किसी को यकीन नही होता है तो सुबह मेरे घर आकर देख ले। हैरान हुए लोगों ने सुबह उसके घर जाने की ठानी।  सभी लोग इक्क्ठे हो कर सुबह उसके घर पहुंचे। वह आदमी उन्हें एक कोने में ले गया और बोला की देख लो। वहां एक मुर्गी अंडे के साथ बैठी थी। लोगों ने कहा की ये तो मुर्गी है। 

               तो वह आदमी बोला की हाँ , हमने अपनी मुर्गी का नाम बकरी रक्खा हुआ है। 

         मेरे मित्र ने एक जोर का ठहाका लगाया और मुझसे बोला की आया कुछ समझ में। अब बताओ की सरकार की बकरी अंडा दे सकती है की नही। 

                     मैंने सहमति में सर हिलाया।

Sunday, June 14, 2015

मानवीय आधार के बदलते तर्क

खबरी -- विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है की उन्होंने ललित मोदी की मदद मानवीय आधार पर की थी। 


गप्पी --  बीजेपी और आरएसएस के मानवीय आधार के तर्क सुविधा के अनुसार बदल जाते हैं। जब कोई मानव अधिकार संगठन किसी झूठी मुठभेड़ का मामला उठाता है भले ही उसमे मरने वालों में सारे निर्दोष लोग हों तो ये लोग हल्ला मचाते हैं की इन संगठनो को केवल उग्रवादियों के मानव अधिकार क्यों दिखाई देते हैं। क्या अब ये लोग बताएंगे की बीजेपी के नेताओं को मानवीय आधार पर मदद करने के लिए सारे घोटालेबाज ही क्यों मिलते हैं। 

               क्या ये सही नही है की श्रीमती सुषमा स्वराज की बेटी ललित मोदी की वकील हैं। सारे घोटालेबाजों को नेताओं के रिश्तेदार वकील ही क्यों मिलते हैं। क्या ये भी सही नही है की सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल ने अपनी भतीजी का दाखिला ब्रिटेन के कालेज में करवाने के लिए ललित मोदी की सहायता ली थी। इस पर सुषमा स्वराज ने कहा है की उसका दाखिला 2013 में हुआ था और उस समय वो मंत्री नही थी। जब नरेंद्र तोमर ने जाली डिग्री ली थी क्या वो मंत्री थे। 

                 आपकी बेटी ललित मोदी की वकील हैं और आपकी भतीजी का दाखिला ललित मोदी करवाते हैं क्या अब भी इसे "लाभों की अदला बदली - Conflict Of Interest " का मामला न माना जाये।

                  या फिर आप मनुस्मृति (स्मृति ईरानी नही ) के हिसाब से न्याय में विश्वास रखते हैं की अगर कोई अछूत ब्राह्मण को गाली  दे तो उसकी जुबान काट दी जाय और अगर कोई ब्राह्मण अछूत की हत्या कर दे तो उसे कुत्ते की हत्या के बराबर दण्ड दिया जाये। कोई दूसरी पार्टी का नेता अगर भ्रष्टाचार  करे तो फांसी चढ़ा दो और बीजेपी का कोई नेता भ्रष्टाचार करे तो उसे देश हित  में माना जाये।

Saturday, June 13, 2015

मुफ्त का दूध और नटखट बच्चा

 खबरी -- सरकार की PPP प्रोजेक्ट की नीतियां कामयाब क्यों नही हो रही हैं ?

 

गप्पी -- आजकल ये नजारा आम है की बच्चों की माताएँ हाथ में दूध की कटोरी लेकर दौड़ती रहती हैं और बच्चा है की दूध से बचने के लिए इधर उधर दौड़ता रहता है। माएँ मनुहार करती रहती हैं और बच्चा है की दूध पीने से बचता रहता है। कुछ बच्चे छोटे होते हैं परन्तु दूध पीने की समस्या यहां भी वैसी ही है। माँ गोद में लेकर बोतल उसके मुंह से लगाती है और वो वापिस निकाल  देता है। माँ चम्मच से दूध डालती है और बच्चा वापिस निकाल देता है। 

                और ये हालत तब है जब बच्चे को दूध का बिल नही देना पड़ता। उसे ये दूध बिलकुल मुफ्त मिलता है तब भी वो नखरे करता है। ऐसा ही बच्चा हमारे देश का कॉर्पोरेट है जो सरकार कटोरा लेकर पीछे पड़ी है और नखरे कर रहा है। सरकार बिलकुल लाड़ली माँ की तरह PPP प्रोजेक्ट का कटोरा लिए उसके पीछे घूम रही है और कह रही है पी पी पी , परन्तु बच्चा है की पी नही रहा है। ये भी बिलकुल मुफ्त का दूध है। अगर प्रोजेक्ट में मुनाफा होता है तो कॉर्पोरेट उसे घर ले जा सकता है और अगर नुकशान होता है तो बैंको द्वारा बेलआउट पैकेज देकर हमारे देश का गरीब आदमी उसे भुगतता है। 

                  लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो बगैर माँ के कहे रसोई में रक्खा दूध भी पी जाते हैं। परन्तु मैं उनकी बात नही कर रहा हूँ , वरना लोग कहेंगे की मैं अडानी और अम्बानी की बात कर रहा हूँ। 

                   मैं केवल उन बच्चों की बात कर रहा हूँ जो दूध नही पी रहे हैं। कभी कभी जीडीपी के आँकड़े आते हैं तो लगता है की शायद हालत सुधर रही है बच्चा दूध पी रहा है परन्तु अगली बार फिर वही घटते हुए आंकड़े आ जाते हैं। माँ चम्मच से दूध डाल  रही है लगता है पी रहा है , दो तीन चम्मच डाल देती है और बाद में बच्चा बुर्र्ररर करके वापिस निकल देता है। पता चलता है की दूध उसने मुंह में ही इक्क्ठा कर रक्खा था और गले से नीचे नही उतारा था। जब ये मालूम है की दूध बिलकुल मुफ्त मिल रहा है तो भी उसे पीने में क्या परेशानी है। मुझे इस बात का पता तब चला जब मैं एक ऐसे ही घर में बैठा हुआ था जहां बच्चा दूध नही पी रहा था। उसकी शिकायत थी की इसमें बोर्नवीटा नही डाला है। मुझे पूरी बात समझ में आ गयी। कॉर्पोरेट का बच्चा दूध पीना तो चाहता है लेकिन वो करों में छूट, श्रम कानूनो में छूट और ब्याज में छूट जैसा बोर्नवीटा डलवाना चाहता है।

Anti-Globalism mood in America and democratic Revolt -- अमेरिका में वैश्वीकरण के खिलाफ वोट और उसका मतलब

खबरी -- क्या तुम बता सकते हो की अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने वैश्वीकरण के खिलाफ वोट क्यों दिया ?


गप्पी -- असल में ये घटना इस तरह है की अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा 11 एशियाई देशों के साथ एक नया व्यापार  समझौता कर रहे थे जिसे सीनेट पहले ही पास कर चुकी है उसे अमेरिका के प्रतिनिधि सदन में भारी  अंतर 126 - 302 से मात खानी पडी। इसमें सबसे खास बात ये है की ये हार बराक ओबामा की अपनी पार्टी, डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों के विरोधी वोटों के कारण हुई। 

             अमेरिका में पिछले बीस सालों  के दौरान जो वैश्विक व्यापार समझौते हुए और जिनको मानने के लिए अमेरिका ने पूरी दुनिआ को मजबूर किया, उनका एक नतीजा ये भी निकला की चीन , जापान और कोरिया जैसे देशों के सस्ते मालों के कारण बहुत सी अमेरिकी कम्पनियां बंद हो गई। पिछले दस सालों में अमेरिकी मजदूरों के वेतन में कोई बढ़ौतरी नही हुई। एक आम अमेरिकी मजदूर और कम्पनियों के सीईओ के वेतन का फर्क 1 /300 हो गया जो बीस साल पहले 1 /10 था। जिससे जीवन के स्तर और आय के अन्दर बहुत बड़ी खाई पैदा हो गयी। इस सब के कारण आज अमेरिका को लग रहा है की वैश्विक व्यापार समझौते उसके हितों के खिलाफ जा रहे हैं। 

                 इस स्थिति को सबसे पहले भुगता यूरोपीय देशों के मजदूरों ने। इस विश्व व्यवस्था ने वहां के मध्यम वर्ग को लगभग भिखारी बना दिया। इसके इलाज और भुगतान के संकट को हल करने के लिए विश्व बैंक और IMF ने नए कर्ज के साथ जो शर्तें लगाई उनके कारण पहले ही भिखमंगे हो चुके मध्यम वर्ग को मिलने वाली पेन्शन और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं भी बंद कर दी गयी। चारों तरफ से मार खाया हुआ मजदूर और मध्यम वर्ग बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरा और सरकारों को चुनौती देने लगा। अब लगभग वही स्थिति अमेरिका का मजदूर महसूस करने लगा है। एपल जैसी कम्पनियों ने तो इस व्यवस्था के कारण खरबों डॉलर कमाए परन्तु आम आदमी के हाथ कुछ नही आया। इसलिए अब अमेरिका में भी इस व्यवस्था का, जिसमे रोजगार खत्म करके काम ऑउटसोर्सिंग और बाहर से सस्ता मॉल मगवा कर उसे जोड़ कर बेचने का विरोध हो रहा है। एक अनुमान के अनुसार 280000 फैक्ट्री बंद हो चुकी हैं और 47 मिलियन रोजगार खत्म हो चुके हैं 

                  वैश्वीकरण के नाम पर कम्पनिओं को खुली छूट और मजदूरों को मिलने वाले सभी अधिकार श्रम सुधारों के नाम पर खत्म किया जाना किसी भी देश के लिए  यही हालात पैदा करेगा। भारत जैसे देश में जहां पहले ही सुविधाओं और सुरक्षा के नाम पर कुछ नही है ये नीतियां भयंकर परिणाम पैदा करेंगी। कॉर्पोरेट के स्कूलों से पढ़े हुए कुछ युवक जो इसकी गंभीरता को नही समझ रहे है कुछ साल बाद यूरोपीय और अमेरिकी मजदूरों की तरह खुद को चौराहे पर खड़ा पाएंगे। ये नीतियां समाज में भारी असमानता पैदा करेंगी और जो थोड़े बहुत लाभ पहले की पीढ़ियों ने लम्बी लड़ाइयों के बाद हासिल किये हैं , सुधर का नाम लेकर छीन लिए जाएंगे।


Friday, June 12, 2015

राजनीती का न्याय और न्याय की राजनीती

खबरी -- पिछले कई दिनों से अख़बारों और सोशल मीडिया पर लगातार यह बात आ रही है की क्या हमारे देश में बड़े लोगों और आम आदमी के लिए अलग अलग न्याय व्यवस्था है ?


गप्पी -- कई घटनाओं से लोगों के मन में इस तरह की बातें उठ रही हैं। जहां तक हमारे नेताओं का सवाल है तो उनका रवैया कुछ इस तरह है। मैंने एक बीजेपी के समर्थक से पूछा की भाई दिल्ली के मंत्री नरेंदर तोमर के बारे में आपका क्या ख्याल है ?


तोमर जैसे लोगों को तो जेल में होना चाहिए। और तोमर ही क्यों , केजरीवाल को भी इस्तीफा देना चाहिए और दिल्ली की जनता से माफ़ी मांगनी चाहिए। आखिर लोकतंत्र में लोगों की राय ही सबसे ऊपर होती है।  उसने एकदम उत्साह से जवाब दिया। 

 

लेकिन लोग स्मृति ईरानी के मामले पर भी सवाल कर रहे है।  मैंने बात आगे बढ़ाई। 

 

लोगों का क्या है भौंकते रहते है, पता तो कुछ होता नही।  उसने जवाब देकर मुंह फेर लिया।

Thursday, June 11, 2015

प्रचार की सच्चाई

खबरी -- क्या तुम बता सकते हो की प्रचार और सच्चाई के बीच कितना अंतर हो सकता है। 


गप्पी -- अगर बात विज्ञापनों की हो तो ये अंतर शून्य से सौ तक भी हो सकता है। जैसे सरकार  के  सबसे  ज्यादा प्रचारित स्वच्छता अभियान की  सच्चाई  ये है की दिल्ली बीजेपी द्वारा शासित MCD  सफाई कर्मचारियों का वेतन नही दे रही है और राजधानी में सफाई की हड़ताल चल  रही है। अब देखो कौनसा मंत्री झाड़ू लेकर ये सफाई करने आता है।

Wednesday, June 10, 2015

दिल्ली पुलिस की कार्यवाही और भारतीय मीडिया

खबरी -- दिल्ली पुलिस की कार्यवाही पर बहस की बजाय भारतीय मीडिया केजरीवाल की नैतिकता पर बहस कर रहा है। 


गप्पी -- भारतीय मीडिया का तो ये हाल है की अगर जलियांवाला कांड पर बहस हो तो वो सारी बहस को इस बात पर केन्द्रित कर सकता हैं की जनरल डायर का  निशाना कितना सटीक था।

Friday, June 5, 2015

सत्ता के " आम " और जीतनराम मांझी

खबरी -- खबर है की अब बिहार में आमों के लिए झगड़ा शुरू हो गया है। 


गप्पी -- "आम" के लिए झगड़ा कोई केवल बिहार में ही थोड़ा न हो रहा है, पूरी दुनिया में हो रहा है। बिहार में नितीश कुमार ने आम के बगीचे की जिम्मेदारी जीतनराम मांझी को दे दी थी। कुछ दिन ठीक चला। मांझी कुछ आम खुद खाते और बाकी टोकरे भर-भर कर नितीश कुमार को भेज देते। नितीश भी खुश थे की बिना रखवाली किए आम तो खाने को मिल ही रहे हैं। कोई पत्रकार जब मांझी से पूछता की बगीचे का मालिक कौन है तो मांझी विनम्रता से कह देते की बगीचे का मालिक तो नितीश जी हैं और वो तो केवल रखवाले हैं। खबर अख़बार में छपती और नितीश जी सन्तोष की साँस लेते की अभी प्रॉपर्टी पर कब्जा नही हुआ है। एक दिन  पत्रकार ने मांझी से पूछा की आम  का मालिक कौन है तो मांझी ने कह दिया की जब आम मेरे बंगले में लगे हैं तो मालिक भी तो मैं ही हूँगा। खबर अख़बार में छप गयी। नितीश कुमार भौचंके रह गए, किरायेदार ने मकान पर कब्जा कर लिया। छानबीन करवाई गयी तो मालूम पड़ा की आमों के टोकरे भर-भर कर गाड़ियां बीजेपी के दफ्तर जा रही हैं। लालू प्रशाद यादव ने कहा की तुम भी एकदम बौड़म हो, अरे कुछ दिन बाहर जा ही रहे थे तो बंगले में किसी घर के आदमी को छोड़ कर जाना चाहिए न मेरी तरह।  इस बार तो खाली  करवा देता हूँ बाद में ध्यान रखना। समझाने  बुझाने का सिलसिला चला। काम नही बना तो नितीश कुमार ने गांव इक्क्ठा करके किरायेदार को निकाल  बाहर किया। जब लोग मांझी का सामान उठा-उठा कर बाहर फेंक रहे थे तब मांझी बीजेपी का इंतजार कर रहे थे की अभी आए और बचा लेंगे। 

                   बीजेपी ने उनको इलाके के थानेदार की तरह आश्वासन दे रखा था की तुम्हे चिन्ता करने की जरूरत नही है। इलाके में हमारा हुक्म चलता है। अगर फिर भी कोई ऐसी-वैसी बात हुई तो ऊपर कमिशनर से बात करेंगे, वो भी हमारा है। तसल्ली करवाने के लिए दिल्ली ले जाकर कमिशनर से मीटिंग भी करवा दी। कमिशनर ने भी कह दिया की थानेदार के कहे अनुसार काम करो बाकी मैं बैठा हूँ। जब मौका आया तो थानेदार और कमिशनर दोनों ने देखा की सामान फेकने वाले ज्यादा हैं और उनकी पेश नही पड़ेगी तो उन्होंने कहना शुरू कर दिया की हो तो गलत रहा है की एक गरीब किरायेदार को घर से बाहर निकाला जा रहा है लेकिन हम कानून को अपने हाथ में नही लेंगे। मांझी बेचारे देखते-देखते सड़क पर आ गए। लोग कहते हैं की भाजपाई थानेदार  ने मांझी को कहीं का नही छोड़ा। वरना मजे से आम खा रहे थे। 

                  अब मांझी को आम खाने को नही मिल रहे हैं और वो इसकी शिकायत बीजेपी से कर रहे हैं। उनका कहना है की आम के इस मौसम में उनके लिए भी आम का प्रबंध करे। मांझी का इशारा दिल्ली से आने वाले आम के ट्रक की तरफ है जो सारे आम गिरिराज सिंह और राधामोहन सिंह जैसे ठाकुरों के घर उतार जाता है। एकाध टोकरी दलित मुहल्ले में पहुचती भी है तो रामबिलास पासवान के घर उत्तर जाती है। अब बेचारे मांझी का घर एकदम पिछली गली में है। 

                     अब रोज इस बात का शोर होता है की नितीश कुमार आम खा रहे हैं जिन पर असली हक मांझी का था। दूसरा पक्ष भी याद दिला देता है की मांझी केवल किरायदार थे और असली मालिक नितीश कुमार हैं। लेकिन बहुत दिनों से आम खाने के कारण ये सब भूल गए है की असली मालिक वो लोग है जो बंगले से बाहर खड़े हैं।

ये बेलन किसके सिर में लगा ?

खबरी -- दिल्ली सरकार और LG की लड़ाई का नुकसान किसको होगा ? 


गप्पी -- मैंने किसी फिल्म के या सीरियल के एक सीन में देखा था की एक मनुष्य की पत्नी उसे बेलन फेंक कर मारती है।  आदमी खुद को बचाने के लिए सिर नीचे करता है और बेलन पीछे रक्खे कांच के फूलदान से टकराता है। फूलदान टूटने के लिए पत्नी पति को जिम्मेदार ठहराती है। लगभग वैसा ही आरोप केंद्र सरकार और LG मिलकर केजरीवाल पर लगा रहे हैं। 

                 हमारा बाजारू मीडिया इसे केजरीवाल और LG के बीच की लड़ाई दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। पूरी रिपोर्टिंग में सच्चाई को भोंडे तरीके से तोड़मोड़ कर इसी मुद्दे पर लेन की कोशिश होती है। असल में झगड़ा केजरीवाल और LG का है ही नही, झगड़ा है दिल्ली की जनता के अधिकारों का, जो वो केंद्र सरकार से मांग कर रही है। दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग केजरीवाल की नही है , दिल्ली की जनता की है जिसका केजरीवाल समेत सभी राजनैतिक पार्टियों ने समर्थन किया था। इस मुद्दे पर व्यावहारिक अड़चने हो सकती हैं, बहस की गुंजाइश हो सकती है , पुलिस और जमीन के अधिकार दिल्ली सरकार रक्खे या केंद्र रक्खे इस पर विचार हो सकता है , परन्तु दिल्ली की जनता को अपनी सरकार चुनकर रोजमर्रा का काम करने से रोकना कोनसे मतभेद की श्रेणी में आता है। लोकतंत्र का मतलब ये नही होता की आप तकनीकी मुद्दों में उलझा कर चुनी हुई सरकार को काम ही न करने दें। 

                   केंद्र की सरकार दिल्ली की जनता को थप्पड़ मरती है और दिल्ली की जनता का एक हिस्सा ताली पहले बजाता है और गाल बाद में सहलाता है। लोकतंत्र में दूसरों को काम करने देने का मौका देना पहली शर्त होता है, अगर केवल तकनीकी आधार पर चुनी हुई सरकार को काम करने से रोका  जाता है तो इसे राजनीती की भाषा में तानाशाही कहते हैं। केवल तकनीकी आधार पर फैसले लेने के मतलब इस तरह भी हो सकते हैं की विपक्ष को अधिकार है की वो संसद में एक भी बिल पास न होने दे , पुलिस को अधिकार है की वो हर गाड़ी को तरपाल खुलवाकर और माल नीचे उतरवाकर चैक करे भले ही 10 किलोमीटर लम्बी लाइन लग जाये, सेल टैक्स के अधिकारी हर तीसरे दिन आपको पूरी दुकान का स्टॉक मिलवाने को कहे , बैंक के अधिकारी साइन न मिलने का बहाना करके आपके चैक रिटर्न कर दे, अदालते कोई भी फैसला 20 साल से पहले न करे , आपकी सोसायटी का चौकीदार आपको हररोज ये साबित करने को कहे की आप आप ही हो। इसलिए मेहरबानी करके तकनीकी सवाल मत उठाओ। 

                       एक बार महात्मा बुद्ध से उनके शिष्य आनन्द ने पूछा था की मूर्ख की पहचान क्या होती है, तो महात्मा बुद्ध ने कहा था की आनन्द मूर्ख वो है जो दूसरों को मुर्ख बनाते हुए ये समझता है की वो मुर्ख बन भी रहे हैं।  बीजेपी को ये समझ में क्यों नही आता की लोग हर चीज को समझते हैं और केवल टीवी चैनलों के सहारे सारा झूठ लोगों के गले नही उतारा जा सकता।   लोगों ने उसके इसी रुख के कारण तीन सीटों पर पहुंचा दिया और रोज LG के पक्ष में बयान देने वाली कांग्रेस को तो इस लायक भी नही समझा की वो रजिस्टर में साइन कर सके। 

                    लेकिन मुझे एक बात समझ नही आ रही की कुछ लोग अपनी ही पिटाई पर तालों क्यों पीटते हैं। उन्हें ये समझ क्यों नही आता की जब भी LG दिल्ली सरकार के किसी फैसले को ख़ारिज करते हैं वो तुम्हारे सरकार चुनने के अधिकार पर सवालिया निशान लगाते हैं। LG का फेंका हुआ बेलन दरअसल दिल्ली की जनता के सर में लग रहा है।

Thursday, June 4, 2015

और अब सोमनाथ के घेराबंदी

खबरी -- आज की ताजा खबर क्या है ?

गप्पी -- कल टीवी पर खबर सुनी की सोमनाथ ट्रस्ट ने सोमनाथ मंदिर में गैर हिन्दुओं के प्रवेश पर रोक लगा दी। अब अगर कोई गैर हिन्दू मंदिर में जाना चाहे तो उसे मैनजमेंट से पहले अनुमति लेनी होगी और मंदिर में जाने का मकसद बताना होगा। मान लो कोई आतंकवादी मकसद वाले खाने में ये लिख दे की वो मंदिर को उड़ाना चाहता है तो मैनजमेंट उसको अनुमति नही देगी। लेकिन साहब मुझे ये खबर पढ़कर मजा आ गया अब भगवान सोमनाथ यानि शंकर को किस किस से मिलना है ये ट्रस्ट तय करेगी। बड़ा भगवान बना फिरता था 

              सोमनाथ मंदिर की जो ट्रस्ट है उसमे नरेंद्र मोदी , लाल कृष्ण आडवाणी और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल शामिल हैं। अब केशुभाई और आडवाणी जी का तो बीजेपी में ये हाल है की कोई नेता इनसे मिलना भी चाहे तो उसे पार्टी हाई कमान से पहले अनुमति लेनी होती है और मकसद भी बताना होता है। ये दोनों नेता कहते होंगे देखो सोमनाथ तुमने हमारा ये हाल कर दिया तो हमने भी तुम्हारा यही हाल  कर दिया। अब तुम्हारे जो भूत-प्रेत , राक्षस , चुड़ैल तुमसे मिलने की कोशिश करेंगे उन्हें हिन्दू होने का प्रमाण पत्र साथ में रखना होगा। मुझे तो लगता है की ट्रस्ट ने आपको भी कहा होगा की आप यूँ फालतू में हर आदमी से मिलना बंद कीजिये , आप भगवान हैं और हर भगवान की एक रेपुटेसन होती है। मुझे तो ये भी लगता है की अब गैर हिन्दुओं के बाद अगला नंबर दलितों का आने वाला है। 

               लोग आपको भोले शंकर कहते हैं।  कहते हैं की आपको महादेव इसलिए कहा गया की आपने तपस्या करने वाले को वरदान देते समय उसकी जाती, धर्म नही पूछा और असुरों को भी वरदान दिए।  देवताओं ने कई बार इसकी शिकायत ब्रह्मा जी से की परन्तु ब्रह्मा जी ने कह दिया मामला उनके बस  से बाहर है। लेकिन अब समय बदल गया  है भोलेनाथ, अब यहां ब्रह्मा जी की नही नरेन्द्र मोदी जी की चलती है। इसलिए आप अपनी ओकात में रहेंगे तो अच्छा रहेगा वरना आपको भी मार्गदर्शक मंडल में भेजने में कितनी देर लगती है। वैसे भी आपके ज्योतिर्लिंग की ज्योति अब अपने ही ट्रस्ट के लोगों के दिमाग रौशन करने लायक नही बची।

                  कुछ लोग कह रहे हैं की सोमनाथ का मंदिर सरकार के खर्चे पर बना था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रशाद ने इसका उदघाटन किया था।

डॉ. राजेन्द्र प्रशाद को लगा होगा की वो राष्ट्रीय गौरव और साम्प्रदायिक एकता का पुनर्निर्माण कर रहे है। परन्तु समय के साथ लोग इस निर्माण को भी राष्ट्रीय शर्म में बदल सकते है इसका उन्हें अनुमान नही रहा होगा। 

                   वैसे जब कोई खबर आती है की मुंबई में किसी ने इसलिए मकान भाड़े पर देने से मना कर दिया की सामने वाला मुस्लिम था या नौकरी देने से मना कर दिया ये कहकर की वो केवल हिन्दुओं को नौकरी पर रखते हैं तो सफाई में ये कहा जाता है की ये केवल एक कर्मचरी की भूल थी और  की यह  केवल किरायेदार और दलाल का झगड़ा है तो इनकी मासूमियत पर मर मिटने को जी चाहता है। ये  कोई इक्का दुक्का भूल नही हैं बल्कि हिन्दू राष्ट्र के सपने की बड़ी साजिश का हिस्सा हैं। लेकिन तुम  कितने ही सोमनाथो की घेराबंदी कर लो ये सपना कभी पूरा नही होगा।

मार्च में FDI गिरा

खबरी -- खबर है की मार्च में FDI 40 % तक गिर गया ?


गप्पी -- सब कुछ तो करके देख लिया अब क्या प्रधानमंत्री की जान लोगे।

Wednesday, June 3, 2015

आखिर अम्बेडकर क्या चाहते हैं

खबरी -- इन दिनों डॉ. अम्बेडकर पर कुछ ज्यादा मंथन नही हो रहा है ?


गप्पी -- अरे, इस मंथन पर याद आया।  मैं तुम्हे आज सुबह की बात बताता हूँ।  सुबह-सुबह मुझे ऐसा लगा जैसे मैं दिल्ली के इंडिया गेट पर खड़ा हूँ। वहां बड़ी तादाद में लोग जमा हैं। गेट के बिलकुल सामने एक स्टेज बनी हुई है।  उसके एक सिरे पर एक आदमी खड़ा है हाथ में एक किताब पकड़े, चश्मा लगाये और नीले रंग का कोट पहने। मैंने तुरंत पहचान लिया की ये तो डॉ. भीमराव अम्बेडकर हैं। मैंने इनकी बिलकुल इसी तरह की फोटो हजारों बार किताबों और अख़बारों में देखी है। उनकी आँखों में अजीब किस्म की बेचैनी और गुस्सा था और वो स्टेज के सिरे पर आगे पीछे टहल  रहे थे। स्टेज के दूसरे सिरे पर एक दूसरा आदमी खड़ा था जो पहनावे से तो बड़ा आदमी लग ही रहा था उसके साथ अंगरक्षकों का एक पूरा दस्ता था। लेकिन एक अजीब बात थी की उसकी शक्ल बार बार बदल रही थी। कभी वो इंदिरा गांधी जैसा लगता तो कभी वाजपेयी जैसा, कभी राजीव गांधी जैसा तो कभी नरेंद्र मोदी जैसा।  ओह, अब समझ में आया की ये भारत सरकार थी। दोनों के बीच में किसी मामले पर तीखी बहस चल रही थी। मैंने जिज्ञासावस आगे जा कर सुनने की कोशिश की। 

         मुझे हर दलित के लिए इंसान का दर्जा चाहिए।  अम्बेडकर चिल्लाये। 

         सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है।   सरकार ने थोड़ा झुकते हुए कहा। 

         लेकिन कब तक इंतजार करें, आजादी को 65 साल हो गए। तुमने वादा  किया था।  अम्बेडकर ने  तीखे स्वर में पूछा। 

          जब तक दर्जा  मिल नही जाता तब तक इंतजार कीजिए। सरकार एक बार फिर अपना वादा दोहराती है।   सरकार ने अपने स्वर को थोड़ा और नरम किया। 

        लोग अब भी सिर पर मैला ढो रहे हैं।  अम्बेडकर ने आष्चर्य व्यक्त किया। 

         हम पूरे देश में शौचालयों का निर्माण कर रहे हैं, जैसे ही वो काम पूरा होगा हम इस प्रथा पर रोक लगा देंगे।  सरकार ने आश्वासन दिया। 

        हमे गावों कस्बों में आज भी अछूत माना जाता है।  अम्बेडकर ने शिकायत की। 

        हम इस साल भी देश के दो मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश की योजना बना रहे हैं। सरकार ने पूरे इत्मीनान से कहा। अब सरकार की शक्ल राजीव गांधी जैसी लग रही थी। 

        हमे मंदिरों में प्रवेश नही, पानी के कुओं पर प्रवेश चाहिए।  अम्बेडकर ने एतराज किया।

        उसके लिए समाज में परिवर्तन लाना होगा , लोगों की सोच बदलनी होगी। सरकार ने लगभग असमर्थता दिखाई। 

          लेकिन जो लोग सोच बदलने की कोशिश कर रहे हैं उन पर तुम प्रतिबंध लगा रहे हो।  अम्बेडकर ने अख़बार की प्रति लहराई। 

           उन्हें सरकार की आलोचना नही करनी चाहिए।  सरकार ने सफाई दी। सरकार की शक्ल बदल कर नरेंद्र मोदी जैसी हो गयी। 

           मैंने सविंधान में अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी दी है। अम्बेडकर ने बगल से सविधान की प्रति निकाल कर दिखाई। 

            सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है।  सरकार ने झुक कर कहा। 

            तुमने खेतमजदूरों के रोजगार के कार्यक्रम मनरेगा में कटौती कर दी।  अम्बेडकर ने कहा। 

            नही , ये  बात गलत है, हमने उसके लिए बजट में  प्रावधान किया है। सरकार सही समय पर उसे खर्च करने का फैसला लेगी। सरकार खेतमजदूरों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।  सरकार ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा। 

             तुमने भूमि बिल से मजदूरों पर पड़ने वाले प्रभाव के अध्धयन करने वाले क्लाज को निकाल  दिया।  अम्बेडकर अब बहुत परेशान लग रहे थे। 

               सरकार एक बिल में एक ही वर्ग का ध्यान रख सकती है, वैसे सरकार मजदूरों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।  सरकार ने आश्वासन की मुद्रा बनाई। 

               तुमने राशन में मिलने वाले अनाज तक में कटौती कर दी, तुम ऐसा कैसे कर सकते हो। मालूम है कितने लोग भूख से मर जायेंगे।  अम्बेडकर से बोलना मुश्किल हो रहा था। 

               सरकार देश के गरीबों के सिर से सब्सिडी का बोझ कम करना चाहती है, वरना हम किसी को भी भूख से नही मरने देना चाहते, आप चाहें तो विश्व बैंक से पूछ सकते है।  सरकार ने जवाब दिया।

           सरकार न तो संविधान, न सविधान की भावना और न ही संविधान के निर्माताओं का सम्मान कर रही है।  अम्बेडकर ने फिर एतराज किया। 

             नही ये आरोप गलत है, हम अभी सविधान में कुछ संशोधन ल रहे हैं, अगर वो पास हो जाते हैं तो हम सविधान की भावना को भी संशोधित करने की कोशिश करेंगे। जहां तक सविधान निर्माताओं के सम्मान का सवाल है हमने आपके जन्मदिन पर छुट्टी की घोषणा की है।  सरकार ने भीड़ की तरफ देखते हुए कहा। 

            हमे छुट्टी की नही, बराबरी की जरूरत है।  अम्बेडकर जोर से चिल्लाये। 

            सरकार ने सर्वे करवाया है और हम बराबरी के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए हमने 99 करोड़ की लागत से आपका स्मारक बनाने का फैसला किया है। सरकार ने ये बात अम्बेडकर को नही बल्कि लोगों को सम्बोधित करते हुए कही। तभी भीड़ में से किसी ने नारा लगाया , बाबासाहेब की जय !

              दूसरे  लोगों ने भी जोर से जवाब दिया , बाबासाहेब जिंदाबाद।   उसके बाद बाबासाहेब जिंदाबाद और जय हो के नारों से आसमान गूँजने लगा। मैंने देखा की अम्बेडकर कुछ कहने  कोशिश कर रहे हैं परन्तु जिंदाबाद के शोर में उनकी बात कोई सुन नही रहा है। सरकार स्टेज के बीच में आ गयी है और रहस्यमय ढंग से मुस्कुरा रही है। 


Tuesday, June 2, 2015

कोई मान क्यों नही रहा की अच्छे दिन आ गए

खबरी -- प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं की अच्छे दिन आ चुके हैं। 


गप्पी -- इस देश में हमेशा से यही संकट है की लोग अच्छी बातों को भी मानने में आनाकानी करते हैं। अरे जब खुद प्रधानमंत्री कह रहे हैं की अच्छे दिन आ चुके हैं तो मान लेना चाहिए। लेकिन ये नाशुक्रा देश है इतनी आसानी से नही मानेगा। लेकिन सरकार भी कोई चीज होती है जनाब। प्रधानमंत्री ने कहा है की पूरे देश में 200 रैलियां करेंगे , सारे  मंत्रियों को रोज प्रैस कॉन्फ्रेंस करने को कहेंगे , टीवी चैनलों पर बाकि कार्यक्रम बंद करके केवल अच्छे दिनों का प्रचार करने को कहा गया फिर देखते हैं की लोग कैसे नही मानते। 

                लेकिन मेरे एक मित्र हंसकर कहते हैं की ये सारे काम तो दिल्ली चुनाव में भी किए गए थे लेकिन लोगों को नही मानना था सो नही माने, न केवल खुद नही माने बल्कि बीजेपी को भी मनवा दिया की इससे बुरे दिन कभी नही थे। 

                 लेकिन मुझे समझ नही आता की मान लेने में क्या हर्ज है। 

मेरे मित्र कह रहे हैं की प्रधानमंत्री खुद तो देश में रहते नही हैं और विदेशिओं के अच्छे दिनों को गलती से अपना मान बैठते हैं। चलो मान भी लेते हैं की प्रधानमंत्री विदेश में ज्यादा रहते हैं परन्तु सकारात्मक सोच भी कोई चीज होती है की नही। अब एक बेरोजगार को नौकरी का इन्तजार ही करना है तो वो ये काम खुश रहकर भी कर सकता है। उसके रोने धोने से तो उसके बाप की परेशानी कम होने वाली नही है। अब कोई किसान आत्महत्या कर ही चुका है तो उसके घरवाले उसका श्राद्ध रो रो कर करने की बजाए सकारात्मक सोच के साथ भी कर सकते हैं। 

                     यहां तो परेशानियों की कमी ही नही है।  लोग तो लोग सरकार के विभाग भी नही मान रहे हैं की अच्छे दिन आ चुके हैं। कल रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कह दिया की अच्छे दिन आना तो दूर लोगों इसकी ज्यादा उम्मीद भी नही करनी चाहिए। लोगों को रोना आ गया। और शेयर बाजार तो इतना रोया की 700 प्वायंट नीचे चला गया। अभी ये आंसू बंद भी नही हुए थे की मौसम विभाग ने कह दिया की बरसात सामान्य से बहुत नीचे रहने वाली है।  लोगों का कलेजा मुंह को आ गया। अब तो हालत ये हो गयी की उद्योग संगठनो के लोग भी ये कहने लगे की आँकड़ों की बात को जाने दें, जमीन पर कुछ बदला नही है। यार तुम भी।

                       अब इस हालत में तो कोई भी शरीफ इन्सान डगमगा सकता है। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी तो लौह पुरुष हैं और उन्होंने देश को बताया की 21 जून को पूरी दुनिया योग दिवस मनाएगी। हमारे देश के लिए इससे ज्यादा गौरव की बात क्या  हो सकती है। हमे अपने छोटे मोटे दुखों को भूल जाना चाहिए और इस गौरव को महसूस कर कम से कम 5 साल तो निकाल ही देने चाहियें। हमने एक लम्बा समय इस बात पर गर्वित होते हुए निकाल  दिया की जर्मनी और जापान जैसे देशों में ये जो विज्ञान की प्रगति दिखाई दे रही है दरअसल वो इसलिए है की ये लोग हमारे वेदों को उठा ले गए और उनमे जो विज्ञान था वो सारा निकाल  लिया। दुनिया की सारी वैज्ञानिक तरक्की हमारे वेदों से चोरी की गयी है। केवल हम ही नही निकाल  पाये।