Tuesday, February 23, 2016

कश्मीर और मुस्लिमो के प्रति मीडिया के पूर्वाग्रह

                 पिछले कुछ दिनों से JNU के बहाने कश्मीर के मामले पर बहस शुरू हो गयी है। कश्मीर के कुछ लोग कश्मीर के भारत में विलय को सही नही मानते और इस पर पुनर्विचार की मांग करते रहे हैं। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्त्व में मुस्लिमों का एक बड़ा हिस्सा कश्मीर को भारत का अंग मानता रहा है लेकिन उस समझौते के अनुसार, जिसका हिस्सा धारा 370 है। ये एक पेचीदा सवाल है और इसमें कई तरह के तर्क हैं। हम इसमें किसी बहस में शामिल होने की बजाय केवल मीडिया की रिपोर्टिंग में शामिल पूर्वाग्रहों तक खुद को सिमित रखेंगे।
                   JNU का मौजूदा विवाद भी इस बात पर शुरू हुआ है की क्या किसी को कश्मीर की आजादी के नारे लगाने का अधिकार है या नही। एक पक्ष हिस्टीरियाई अंदाज में चीख चीख कर इसका विरोध करता है। उसका कहना है की कश्मीर में भारत का विलय अंतिम है और इस पर कोई सवाल नही उठाया जा सकता। उसका कहना है की कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, यहां तक की पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भी। लेकिन जब हम इस बात का व्यवहारिक विश्लेषण करते हैं तो बात उस तरह की नही निकलती है। जो लोग कश्मीर के भारत का अभिन्न हिस्सा होने की बात  करते हैं वो भी दिल से इसे स्वीकार करते नही दिखाई देते। एक दुरी उनके व्यवहार में साफ दिखाई देती है। ये दुरी ना केवल लोगों बल्कि पुरे मीडिया और टीवी चैनलों में भी दिखाई देती है।
                  JNU में देशविरोधी नारे लगाने वाला विडिओ सामने आने के बाद और जो बाद में डॉक्टर्ड पाया गया, बीजेपी, आरएसएस और उनके साथ ही मीडिया का एक हिस्सा भी इस बात की रट  लगाये रहा की वहां देशविरोधी नारे लगाये गए हैं। उनका पूर्वाग्रह और लोगों को गुमराह करने की कोशिश इस बात से साबित होती है की तमाम आरोपी छात्रों में केवल एक मुस्लिम छात्र होने के बावजूद सारा मीडिया इस घटना के लिए उसे मास्टरमाइंड के रूप में पेश करता रहा। और उसे देशविरोधी सिद्ध करने के लिए मीडिया जो गढ़े हुए सबूत पेश कर रहा था उसमे भी ये पूर्वाग्रह शामिल था। मीडिया ने इसके सबूत के तोर पर दिखाया की उसके फोन से कश्मीर में कितनी कॉल की गयी। जैसे कश्मीर कोई दुश्मन देश हो। उसके बाद बताया गया की उसने अरब देशों, पाकिस्तान और कश्मीर की यात्रायें भी की। इसमें भी कश्मीर का जिक्र इस तरह किया गया जैसे वो पाकिस्तान की तरह ही कोई अवांछित प्रदेश है। वो अलग बात है की जब उमर खालिद वापिस JNU कैम्पस में लौटा तो उसने बताया की उसके पास तो पासपोर्ट ही नही है। उसने ये भी बताया की वो केवल एक बार कश्मीर गया है।
                  मीडिया जब भी कश्मीर और मुस्लिमो का जिक्र करता है तो ये पूर्वाग्रह उसमे साफ दिखाई देता है। और इस तरह का पूर्वाग्रह कश्मीर के लोगों को भारत के साथ जोड़ने में बहुत बड़ी बाधा है। बाहें चढ़ा चढ़ा कर देशभक्ति के नारे लगाने वाले ये लोग नही जानते की इस तरह की रिपोर्टिंग से वो देश कितना बड़ा नुकशान कर रहे हैं। इसी तरह की गलत रिपोर्टिंग और बीजेपी आरएसएस ने अपने प्रयासों से JNU के नाम पर दिल्ली के बीचों बीच एक ऐसी जगह बना दी मानो ये भारत का हिस्सा ही नही है।

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