Thursday, February 25, 2016

सियाचिन के शहीद हनुमंत्थप्पा की मौत के जिम्मेदार

                  पिछले दिनों सियाचिन में एक भयंकर हिम स्खलन की घटना हुई। इस घटना में वहां सुरक्षा चौकी पर तैनात भारतीय सेना के 10 जवान बर्फ के नीचे दब गए। छह दिन बाद जब हमारे देश की रेस्क्यू टीम वहां पहुंची और उन्हें बर्फ के निचे से निकाला तब तक उनमे से 9 की मौत हो चुकी थी और एक लांस नायक हनुमंत्थप्पा कोमा ही हालत में, लेकिन जीवित थे। उन्हें तुरंत दिल्ली लाया गया जहां डाक्टरों के एक दल ने जो तोड़ कोशिश की लेकिन चूँकि वो एक लम्बे समय तक बर्फ के निचे दबे रहे थे इसलिए उनके शरीर के लगभग सभी अंग काम करना बंद कर चुके थे। पुरे देश के लोगों की दुवाएं और डॉक्टरों के प्रयास उन्हें बचा नही पाये। पूरा देश साँस रोके उनके होश में आने का इंतजार कर रहा था लेकिन वो चले गए। वही यह बात भी चर्चा का विषय रही की अगर उन्हें दो तीन दिन पहले निकल लिया गया होता तो शायद उन्हें बचाया जा सकता था। ये अनुमान भी लगाया गया की हो सकता है कोई और जवान भी जीवित निकल आता। लेकिन सियाचिन की वो जगह जहां ये जवान तैनात थे वो इतने दुर्गम  क्षेत्र में है की सारी कोशिशों के बावजूद भी उससे पहले पहुंचना किसी भी हालत में सम्भव नही था। वरना कोई भी सेना अपने जवानो के लिए कोई कस्र बाकी नही रखती।
                     लेकि कल 24 फ़रवरी को एक ऐसी जानकारी सामने आई जिसे सुनकर लोग दंग रह गए। जब लोकसभा में JNU के मामले पर बहस चल रही थी तब उस पर बोलते हुए बीजू जनता दल के सदस्य श्री तथागत सतपथी ने एक चौंकाने वाली बात कही। उन्होंने कहा की जब सियाचिन में ये दुर्घटना घटित हुई तब उससे कुछ ही दुरी पर पाकिस्तान की सेना भी तैनात थी। उसने जब देखा की हिम स्खलन की वजह से भारतीय सेना बर्फ के नीचे दब गयी है तो उसने उनकी सहायता करने के लिए भारत सरकार से अनुमति मांगी। पाकिस्तान की सेना उससे कुछ ही दुरी पर थी जो कुछ मिनटों में नही तो एक दो घंटे में दुर्घटना की जगह पर पहुंच सकती थी। लेकिन भारत सरकार ने इसकी इजाजत नही दी। प्राकृतिक आपदाओं के समय दो देशों की आमने सामने तैनात सेनाएं एक दूसरे की मदद करती रही हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आये भयंकर भूकम्प में जब पाकिस्तानी सेना की एक चौकी तबाह हो गयी थी तब भारतीय सेना ने उसे बचाया था। पुरे पाकिस्तानी मीडिया और सरकार से लेकर जनता तक ने भरतीय सेना की इस कार्यवाही के लिए धन्यवाद दिया था। हमने भी अपनी सेना की इस कार्यवाही पर गर्व का अनुभव किया था। तब क्या कारण था की इतने दुर्गम क्षेत्र में जहां हमारी  सहायता पहुंचना मुश्किल था सरकार ने पाकिस्तानी सेना को अपने सैनिकों की जान बचाने की पेशकश को ठुकरा दिया।
                      अगर उस समय भारत सरकार इसकी इजाजत दे देती तो ना केवल लांस नायक हनुमंत्थप्पा, बल्कि शायद एक दो दूसरे सैनिकों की जान भी बच सकती थी। एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री बिना बुलाये नवाज शरीफ के यहां हलवा खाने चले जाते हैं जिसे बीजेपी असामान्य कदम की तरह पेश करते हैं दूसरी तरफ हमारे सैनिकों की जान बचाने का फैसला नही ले पाते।
                       जब लोकसभा में माँननीय सदस्य ने इसका जिक्र किया तो सरकार की तरफ से इसका कोई खंडन नही आया। पूरी बीजेपी को जैसे सांप सूंघ गया।
                     लांस नायक हनुमंत्थप्पा की शहादत के बाद बीजेपी ने अपने आप को सैनिकों और सेना का सबसे बड़ा हितैशी दिखाने की कोशिश की जो वो हमेशा से करते रहे हैं। लेकिन असलियत में उन्हें सेना के जवानो की कितनी फ़िक्र है इस घटना से साफ हो जाता है।

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