Friday, February 26, 2016

न्याय और व्यवस्था को विफल करने की कोशिश

            
  पिछले लगभग दो सालो से जब से ये सरकार सत्ता में आई है तब से नई तरह बहस, नए तरह के कुतर्क और नए तरह के हथकंडे सामने आ रहे हैं। केवल बहस के स्तर पर ही नही बल्कि कार्यवाही के स्तर पर भी नए हथकंडो का सहारा लिया जा रहा है।
               बीजेपी के लोग चाहे वो सरकार में रहें या विपक्ष में वो हमेशा इन हथकंडों का सहारा लेते है। कुतर्कों से बहस करते हैं और तकनीकी कुप्रयासों से  न्यायायिक और प्रशासनिक व्यवस्था को विफल करते हैं। ये तरीका हमने गुजरात में अच्छी तरह से देखा था। जब 2002 की ट्रेन का डब्बा जलाने की घटना के बाद गुजरात में सरकार प्रायोजित हिंसा का ताण्डव हुआ और उस पर जब बीजेपी नेताओं से सवाल पूछे गए तो उन्होंने उसे उसी तरह की स्वाभाविक पर्तिकिर्या बताया जैसे अब दिल्ली में वकीलों के हमले को बताया। जब दबाव बढ़ता तब बीजेपी के नेता हल्के स्वरों में हिंसा की निंदा करते और जब कार्यवाही की बात आती तो हमलावरों के साथ खड़े हो जाते। हिंसा पर सवाल उठाने वालों पर सामने से सवाल किया जाता की क्या गीधरा की घटना सही थी ? पूरा देश उसकी निंदा करता रहा लेकिन बीजेपी और आरएसएस उसे अपने कुकर्मो और हमलावरों के समर्थन में  इस्तेमाल करती रही। अब जब JNU और हैदराबाद विश्विद्यालय का  सवाल उठाया जाता है तो उसी तरह सामने से सवाल दागा जाता है की क्या देश के खिलाफ नारे लगाना सही है ? आप लाख जवाब देते रहिये और निंदा करते रहिये लेकिन उसे कौन सुनने वाला है।
               दिल्ली पुलिस की कार्यवाही पर जब संसद में पूछा गया तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा की पुलिस ने कानून के अनुसार काम किया है। पुलिस उच्चत्तम न्यायालय के स्पष्ट आदेशों के बावजूद हमलावरों को क्यों सहयोग कर रही थी इसका जवाब उन्होंने नही दिया। बीजेपी के सभी वक्ताओं ने पूरी बहस को तकनीकी मामलों में उलझाने की पूरी कोशिश की। कन्हैया की जमानत के मामले में दिल्ली पुलिस ने जिस तरह सरकार के साथ साथ अपनी पोजीशन बदली उसके लिए उसने कहा की नए तथ्य सामने आये हैं। लेकिन जो लोग मुंह ढंककर नारे लगा रहे थे उन पर पुलिस ने कुछ नही कहा। गोधरा में भी यही हुआ था। असली गुनहगार कभी नही पकड़े जायेंगे। नकली विडिओ फुटेज बनाने वालों पर कार्यवाही पर व्ही जवाब की जाँच चल रही है। वकीलों के असली विडिओ पर कार्यवाही पर व्ही जवाब की जाँच चल रही है।
               लेकिन इस बार एक फर्क है। देश गुजरात से बहुत बड़ा है। पूरा देश हिंदुत्व की प्रयोगशाला में बदल जायेगा ये खुशफहमी ही है। धीरे धीरे बीजेपी और आरएसएस की कार्यप्रणाली और उद्देश्य दोनों सामने आ रही हैं। लोग इसे समझने लगे हैं। भले ही उनकी संख्या अभी कम है और उन्माद का असर है लेकिन पर्दाफाश होकर रहेगा।

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