Monday, February 29, 2016

व्यंग -- सियारों और लोमड़ियों की सरकार

              बहुत दिनों से जंगल में शेर का राज था। शेर का झूठा भोजन खाते खाते सियारों और लोमड़ियों को लगा की राज पर कब्जा किया जाये। उन्होंने जंगल के सारे जानवरों को भड़का कर और बड़े बड़े वायदे करके अपने साथ मिला लिया। सरकार बदल गयी। सियारों और लोमड़ियों ने बहुत सा समय दूसरे जंगलों की सैर करने में बिता दिया। जिनको अब तक दूसरे जानवर नीची निगाह से देखते थे उनकी इज्जत होने लगी। जीवन में बहार आ गयी। लेकिन एक समस्या खड़ी हो गयी। जानवर उन्हें किये गए वायदों की याद दिलाने लगे। इसलिए उन्होंने एक सभा की। उस सभा में उन्होंने जंगल की समस्यायें हल करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण घोषणाएं की।
               उन्होंने शेर पर अन्धाधुन्ध शिकार करने का आरोप लगाया। इसलिए उन्होंने ये तय किया की या तो शेर घास खाए , या फिर जंगल छोड़कर चला जाये।
                दुसरे जानवरों ने कहा की अगर शेर जंगल छोड़कर चला गया तो शिकारी जंगल में घुस जायेंगे। और समस्या खड़ी हो जाएगी।
                इस पर सियारों ने कहा की उन्होंने शिकारियों के साथ एक समझौता कर लिया है। इसके अनुसार शिकारी एक निश्चित इलाके के अंदर ही शिकार करेंगे। और वो अपने शिकार का एक हिस्सा सरकार को भी देंगे। जिसे सरकार में बैठे सियार और लोमड़ी खाएंगे।
                 लेकिन शिकारियों का क्या भरोसा की वो उतना ही शिकार करेंगे जितना कहा गया है ? जानवरों ने सवाल उठाया।
               उसके लिए एक आयोग बनाया जायेगा जो इस पर निगाह रखेगा। और इस आयोग की अध्यक्षता कव्वा महाराज करेंगे। सरकार ने घोषणा की।
               लेकिन कव्वा तो खुद शिकारी है। जानवरों ने सवाल उठाया।
              तुम्हे सरकार पर भरोसा करना चाहिए। एक लोमड़ी चिल्लाई।
               सरकार की तरफ से सियार ने बात आगे बढ़ाई, सरकार ने ये वादा किया था की अजगरों ने इस दौरान क्या क्या निगला है उसे बाहर निकाला जायेगा। इसके लिए सरकार ने फैसला किया है की अजगर खुद बता दें की उन्होंने क्या क्या निगला है तो उन्हें थोड़ा सा जुरमाना लगा कर माफ़ी दे दी जाएगी।
                 लेकिन वादा तो निगला हुआ वापिस उगलवाने का था ? जानवरों ने कहा।
                सरकार को जंगल की अर्थव्यवस्था को भी देखना है। जो लोग ऐसा सवाल उठा रहे हैं वो विपक्ष से मिले हुए हैं। जब ये अजगर सामान निगल रहे थे तब ये लोग कहाँ थे। एक सियार चिल्लाया।
                  सरकार जंगल में घास उगाने के लिए कुछ नही कर रही है। जिसकी कमी के कारण पशुओं को पेड़ों की पत्तियां खानी पड़ती हैं। एक हाथी ने कहा।
               तुम तो बोलो ही मत, गद्दार कहीं के। जब जिराफ पेड़ की पत्तियां खाता था तब तुम उसके साथ खड़े थे। तब तुमने एक बार भी उसका विरोध नही किया। एक साथ कई सियार और लोमड़ियाँ चिल्लाये।
                लेकिन जिराफ तो हमेशा से पत्ते ही खाता है। हाथी ने आश्चर्य प्रकट किया।
  क्या एक जंगल में दो तरह के कानून हो सकते हैं? कुछ जानवर घास खाएं और कुछ जानवर पेड़ों के पत्ते खाँयें। ये विशेषाधिकार नही चलेगा। एक जंगल में दो कानूनो का समर्थन करने वाले गद्दार हैं उन्हें जंगल के जानवरों से माफ़ी मांगनी चाहिए। सियार हाथियों पर जैसे टूट ही पड़े।
                  जंगल की दूसरी तरफ से शिकारियों की घुसपैठ अब भी जारी है। तुमने वादा किया था की घुसपैठ एकदम बंद कर दी जाएगी। कुछ जानवरों ने सवाल उठाया।
                  नही, ये गलत बात है। स्थिति में बहुत सुधार है। अब हम पूरी आवाज में चिल्लाते हैं। पहले शेर उतनी तेज आवाज में नही दहाड़ता था। वैसे भी हमारी उन शिकारियों के साथ बात चल रही है। हम वहां भी मिलकर सरकार बना रहे हैं। उसके बाद उन शिकारियों को जंगलभक्त घोषित कर दिया जायेगा। पहले ये शिकारी जंगलद्रोही थे और इसका जवाब पिछली सरकार को देना होगा। एक पीले कपड़े लपेटे सियार ने कहा।
               अब हम सरकार द्वारा जंगल और जानवरों के हित में उठाये जाने वाले दूसरे कुछ कार्यक्रमों के बारे में आपको बताना चाहते हैं।
         १.  जंगल में गायों की संख्या बढ़ाई जाएगी ताकि उनके गोबर और मुत्र से जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ सके। इस परियोजना का ठेका की नामदेव सियार को दिया गया है।
         २.  सरकार सभी पुराने विश्वविद्यालयों को बंद करके जंगलभारती विद्यालय खोलेगी। इस परियोजना की जिम्मेदारी जंगल सेवक संघ को दी गयी है। इसका पाठ्यक्रम भी वो खुद तय करेंगे। उसके लिए दसवीं तक पढ़े लिखे लोगों की तलाश की जा रही है। जब तक ये कार्यवाही पूरी नही हो जाती तब तक विवाह के अवसर पर पढ़े जाने वाले मंत्र की पाठ्यक्रम माने जायेंगे।
         ३. जगल में जंगलभक्ति की भावना का विकास करने के लिए ये नियम लागु किया जायेगा की सभी पशु पक्षी अपनी अपनी भाषाएँ छोड़कर केवल सियार या लोमड़ी की भाषा का ही इस्तेमाल करेंगे।
         ४. आज के बाद जंगल में केवल एक ही रंग के फूल खिलेंगे। दूसरे सभी फूलों के पौधे उखाड़ दिए जायेंगे। पेड़ों के पत्तो का रंग हरा नही होगा बल्कि वैसा होगा जैसा सूखने के बाद होता है। भले ही इसके लिए सारे जंगल के पत्ते सूखाने पड़ें। ये सरकार जंगलभक्ति पर कोई समझौता नही कर सकती।
                  इस पर बहुत वाढ विवाद हुआ। जानवरों ने इसके विरोध में कहा की सभी फूल और पत्ते एक ही तरह के कैसे हो सकते हैं।
                 इस पर सियारों ने कहा की जो जानवर इस पर सवाल उठा रहे हैं वो जंगलद्रोही हैं। उन्होंने तर्क देते हुए कहा की तुम शिकारियों के खेतों में लगी हुई फसलें देखो। सबके पत्ते एक जैसे होते हैं। एक ही तरह के फूल लगते हैं और एक ही तरह के फल लगते हैं। अगर हमे जानवरों की भलाई करनी है तो हमे भी उनकी तरह ही एकजैसा बनना पड़ेगा।
                सभा समाप्त हो गयी। बहुत से युवा जानवर कन्फ्यूज नजर आये। सब अपनी अपनी राह चल पड़े। एक युवा जानवर ने घर आकर अपने एक बूढ़े रिश्तेदार को ये बात बताई।
               पूरी बात सुनकर बुजुर्ग जानवर ने कहा की बाकि सब तो ठीक है। बस एक ही बात की कमी है। उनको ये नही पता की खेतों में जानवर नही रहते। अगर जंगल को खेत में बदल दिया जायेगा तो जानवर कहाँ जायेंगे।

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