Monday, March 21, 2016

व्यंग -- ( राजनीती का तीसरा पाठ )- केवल कुतर्क पर भरोसा करो।

                   संघ के राजनीती के विद्यालय में आज तीसरा पाठ था। एक बहुत ही जोरदार अध्यापक आज की क्लास ले रहे थे। इन्होने कई बार संघ और बीजेपी की तरफ से टीवी चैनल में प्रवक्ता की जिम्मेदारी निभाई थी। सो लोगों ( मेरा मतलब छात्रों से है ) में बहुत उत्साह था। अध्यापक ने अपनी क्लास संस्कृत के श्लोक से शुरू की। एक छात्र ने श्लोक का अर्थ पूछा तो शरमा गए और बोले मंत्रों का अर्थ पूछना अश्रद्धा होती है। इसलिए भविष्य में इस बात का ख्याल रखा जाये। उसके बाद उन्होंने आगे बोलना शुरू किया।
                     " आज का विषय ये है की राजनैतिक बहसों में हमे किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। विरोधी को कैसे चारों खाने चित किया जाये। सो सभी लोग ध्यान  सुनेंगे। इसमें सबसे पहला फार्मूला ये है की तर्कों की बजाय हमेशा कुतर्कों पर भरोसा करो। तर्क आपको कभी भी उलझा सकते हैं खासकर उस समय जब हमारे पास कहने को कुछ नही होता। हमे ये भी ध्यान रखना चाहिए की चाहे हमारा अतीत हो या वर्तमान, हमारे काम ऐसे नही हैं जिन्हे हम बीच बाजार खड़े होकर कह सकें। अगर हमने ऐसा  दुस्साहस किया तो लोग हमारी हंसी उड़ा सकते हैं। इसलिए हमेशा कुतर्क पर भरोसा करो। इसके साथ ही दूसरा नियम ये है सामने वाले की बात सुनो ही मत। वो क्या कह रहा है, क्या पूछ रहा है इसका कोई मतलब नही होता। केवल अपनी कहते रहो। जो बात तुम कह रहे हो उसका कोई भी संबंध बहस की विषय वस्तु के साथ होना कतई जरूरी नही होता। अगर बहस टीवी चैनल में हो रही है तो उसका पहला नियम ये है की विरोधी के बोलने के समय को भी अपना समझो। जब तक विरोधी बोलता रहे तुम भी बोलते रहो। उससे ऊँची आवाज में बोलते रहो ताकि उसकी बात कोई सुन ना पाये। वैसे तो कई टीवी चैनल और उनके एंकर अपने ही लोग हैं जो तुम्हारी सहायता करेंगे, लेकिन अगर ऐसा नही  है तो एंकर पर पक्षपात का आरोप लगाना शुरू  कर दो। इससे बहस में सहायता मिलती है। क्योंकि आधा समय पक्षपात पर बहस में निकल जाता है। बाद में ये कहकर बात समाप्त कर दो की मेरा मतलब किसी पर आरोप लगाना नही था। " क्लास में सन्नाटा छाया हुआ था। उन लोगों ने इतना प्रेरणादायक और विद्वता पूर्ण भाषण पहले कभी नही सुना था।
               " श्रीमान, इसका कोई प्रक्टिकल उदाहरण देकर समझाइये। " एक छात्र ने कहा।
                " देखिये, वैसे तो तुम मेरा कोई भी टीवी बहस का कार्यक्रम देख सकते हो। फिर भी तुम मुझसे सवाल करो मैं उत्तर दूंगा। "
                " श्री मान, कन्हैया और JNU पर आपका क्या कहना है ?"  छात्र ने शुरुआत की।
                " तुमने कन्हैया को श्रीमान कैसे कहा ?" अध्यापक बोखलाए।
                " मैंने आपको श्रीमान कहा। " छात्र ने सफाई दी।
                " कन्हैया देशद्रोही है। उसने भारत की बर्बादी के नारे लगाये। पूरा JNU देशद्रोहियों का गढ़ बन चूका है। "
               " लेकिन श्रीमान अब तो पुलिस से लेकर यूनिवर्सिटी तक सभी मान चुके हैं की कन्हैया ने नारे नही लगाये। " छात्र ने सवाल किया।
               " JNU और वामपंथियों की सच्चाई देश के सामने आ चुकी है और देश इन देशद्रोहियों को बर्दाश्त नही करेगा। "
                  "  लेकिन श्रीमान उन्होंने देशद्रोही  नारे नही लगाये ये साबित हो चूका है। " छात्र ने कहा।
                  " मैं  पूछना चाहता हूँ की भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी ये नारा देशद्रोही है  या नही। अब इन वामपंथियों की पोल खुल चुकी है और देश ये बर्दाश्त नही करेगा। "
                  " लेकिन श्रीमान ये नारा तो कुछ बाहर वालों ने लगाया था ऐसी रिपोर्ट आ चुकी है। " छात्र ने फिर कहा।
                 " देखिये हमारे जो सैनिक  सीमा पर जान दे रहे हैं उनके परिवार वाले जब पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे सुनते हैं तो उन पर क्या बीतती है। क्या उन सैनिकों के बलिदान का कोई मोल नही है। इसलिए  राहुल गांधी को इसका जवाब देना होगा। "
                 " लेकिन वहां पाकिस्तान जिन्दाबाद का नारा नही लगा। "  छात्र ने जोर देकर कहा।
                 " जो लोग इस देश का नमक खाकर पाकिस्तान का नारा लगाते हैं वो गद्दार है। और जो गद्दारों के साथ है वो भी गद्दार है। इसका जवाब राहुल गांधी को देना होगा। सोनिया को अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए। "
                      अब छात्र के होंसले जवाब दे चुके थे। अध्यापक मुस्कुराये। क्लास में जोर से तालियां बजी। छात्र बधाई दे रहे थे। मान गए सर, क्या खिंचाई की है। पूरी JNU और कन्हैया को बेनकाब कर दिया। और साथ में कांग्रेस को भी।
                              अब अगली क्लास कल।
               

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