Friday, March 25, 2016

बीजेपी और पीडीपी की निजी स्वार्थ पूर्ति को छोड़कर सब घाटे में.

                  जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने की कवायद अब लगता है की अपने अंजाम तक पहुंचने वाली है। मुफ़्ती साहब के इंतकाल के बाद महबूबा ने इस तरह से व्यवहार किया जैसे उनके लिए सत्ता कोई मायने नहीं रखती। उसके बाद लगातार तीन  महीने तक ये गतिरोध कायम रहा। उसके बाद बीजेपी के एक बयान ने महबूबा द्वारा बनाई जा रही सारी हवा को बेकार कर दिया। ये असलियत सामने आ गई की महबूबा भी वैसी ही सत्ता की लालची है जैसे बीजेपी है। अपने आप को कश्मीर के लोगों की सबसे बड़ी हितैशी दिखाने के उसके दावे खुल गए।
                    दूसरी तरफ बीजेपी का सत्ता का लालच तो उसी समय सामने आ गया था जब उसने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा की थी। इस घोषणा को कोई भी नाम या बहाना दे दो लेकिन ये केवल सत्ता की मलाई काटने का प्रोग्राम है ये तो कुछ बीजेपी के कार्यकर्ता भी मानते हैं। सारी देशभक्ति सामने आ गई। वैसे बीजेपी का ये पुराना इतिहास रहा है की अगर कुर्सी सामने हो तो उन्हें दूसरा कुछ दिखाई नहीं देता, फिर चाहे मायावती का मामला हो या महबूबा का।
                     इस मामले में भी लोगों का अनुमान है की पर्दे के पीछे बहुत आस्वासन दिए गए हैं। सत्ता प्राप्ति के समझौते को सिरे चढ़ाने के लिए बीजेपी के मंत्री पाकिस्तान दिवस पर अलगाववादी नेताओं के साथ खाना तक खाने की हद तक चले गए। ये वही लोग हैं जो केवल अफजल के कार्यक्रम होने मात्र को देशद्रोह कहते रहे हैं। अब उन्हें महबूबा के अफजल और पाकिस्तान के प्रति जगजाहिर रुख  से कोई एतराज नहीं है।
                        इस तरह के अवसरवादी समझौतों से कुछ नेताओं के निजी स्वार्थ तो पुरे हो सकते हैं जो सत्ता की मलाई को बिल्ली की नजरों से घूर रहे हैं लेकिन इससे लोगों को कुछ हासिल नहीं होगा। कश्मीरी जनता के सवाल वहीं रहेंगे। यहां तक की दोनों पार्टियों के वो कार्यकर्ता जो विचारधारा के सवाल पर उनके साथ थे, उन्हें भी बेहद निराशा हुई है।

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