Thursday, March 17, 2016

Vyang -- राजनीती का दूसरा पाठ -- गंगा गए तो गंगाराम, जमना गए तो जमनादास।

                 भक्तो- आज राजनीती का दूसरा पाठ सिखाया जायेगा। वैसे तो तुम इतने काबिल हो की बिना सिखाये भी तुम ऐसा ही करते हो। वरना संघ की पाठशाला में दाखिला ही नही मिलता। भक्तो, राजनीती में कभी भी अपनी जबान पर स्थिर नही होना चाहिए। ये मुहावरा याद रखो की जुबान तो होती ही पलटी मारने के लिए है। जो व्यक्ति जुबान नही बदल सकता वह राजनीती के काबिल नही है। और बाकि किसी राजनीती के काबिल हो या ना हो, संघ की राजनीती के तो बिलकुल काबिल नही है। इसलिए हमेशा एक बात याद रखो की गंगा गए तो गंगाराम और जमना गए तो जमनादास। जगह और लोग देखकर अपने सुर बदल दो। जैसे-
                 अभी केंद्र में हमारी सरकार है , पंजाब में भी हमारी सरकार है और हरियाणा में भी हमारी सरकार है। हरियाणा और पंजाब का पानी पर विवाद है। लेकिन एक अच्छे नेता की तरह जब हम पंजाब में जाते हैं तो कहते हैं की हरियाणा को एक बून्द पानी नही देंगे। जब हम हरियाणा में जाते हैं तो कहते हैं की पानी पर हरियाणा का हक है और लेकर रहेंगे। हमने पंजाब के लोगों को दिखाने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पास करवा दिया और अब हरियाणा की हमारी सरकार को कहा है की वो कोर्ट में जाये। मामला केंद्र में पहुंचेगा तो हम कहेंगे की ये संवेदनशील मुद्दा है और इस पर दोनों पक्षों को सयम बरतना चाहिए। साथ ही ये भी कहेंगे की ये विवाद कांग्रेस की देंन है। अगर उसने ये विवाद पहले ही निपटा दिया होता तो हमे ये झंझट नही झेलना पड़ता।
              दूसरा उदाहरण देखो। हमने हरियाणा में जाटों को आरक्षण देने का वायदा किया। उसके बाद हमेशा की तरह मुंहढ़ँककर सो गए। जब वहां आंदोलन शुरू हुआ तो सारे प्रशासन और पुलिस  लेकर गंगास्नान को निकल गए। पीछे से हमारे नेता  कार्यकर्ता जाटों को सहयोग करते रहे आरक्षण के लिए। और दूसरे नेता कार्यकर्ता गैर जाटों को भड़काते रहे आरक्षण के खिलाफ। जब हालात ज्यादा खराब हो गए तो इसे विपक्ष की साजिश करार दे दिया। अब भी हम जाटों को पुरे आरक्षण का वादा कर रहे हैं और गैर जाटों को पूरा मुआवजा देने का वादा कर रहे हैं। आहिस्ता आहिस्ता दोनों हमे अपने अपने पक्ष में समझेंगे।
                इसलिए मौका देखकर रंग बदलने की आदत डालो। इसके लिए गिरगिट के मांस के लड्डू खाए जा सकते हैं उससे रंग बदलने की गति बढ़ेगी।
                 इस पर एक छात्र ने पूछा , " गुरूजी, गिरगिट तो जहां जाता है, वहां जाकर रंग बदलता है। लेकिन हमे तो जहां जाना होता है वहां रंग बदलकर जाना होता है। "
                  " अति उत्तम ! वत्स, क्या काम करते हो। " गुरूजी प्रभावित हुए।
                  " जी गुरूजी , मेरी चाय की दुकान है। " शिष्य ने कहा।
                  " तुम में प्रधानमंत्री के पद तक जाने की योग्यता दिखाई दे रही है। " इसी तरह मेहनत करते रहो।
                 अब मैं इस बात को और सरल करूंगा ताकि मंदबुद्धि विद्यार्थी भी इसे समझ सकें। हम JNU में जिन चीजों को देशद्रोह बता रहे हैं उन्हें कश्मीर में नही बता रहे। बल्कि वहां तो हम उन्हें देशहित में बता रहे हैं। जिन चीजों को हम विपक्ष में रहते हुए लोकतंत्र का हिस्सा बताते थे उन्हें सरकार में आने के बाद देश और विकास विरोधी बता रहे हैं। ऐसे असंख्य उदाहरण हैं। तेजस्वी विद्यार्थी उन्हें देख पाएंगे।
                     ये राजनीती का बेशकीमती गुण है। इसे पहले बताये गए वायदा करके भूल जाने के गुण के साथ  मिलाकर प्रयोग किया जाये तो ये रामबाण है। दुनिया का कोई भी मतदाता इसके प्रहार से बच नही सकता। ये जी जनता होती है, ये बड़ी ही वाहियात किस्म की चीज होती है। इस पर बिलकुल भरोसा मत करो। उसे हमेशा उसके अनुरूप रंग दिखलाते रहो। यही एक कामयाब राजनेता की पहचान है। ऐसा कोनसा काम ( पाप ) है जिसका हम विपक्ष में रहते विरोध करते थे और सत्ता में आने के बाद हमने नही किया ? कुछ लोग इसे धोखाधड़ी और वादा खिलाफी कहते हैं लेकिन हम इसे राजनीती कहते हैं।
                             अगला पाठ  कल।

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