Thursday, March 10, 2016

Vyang -- ( पहला पाठ )-- राजनीती का ब्रह्मास्त्र होता है वायदा।

                 कल हमने जिस आरएसएस राजनैतिक विश्वविद्यालय के बारे में बताया था उसमे अब क्लास शुरू हो गयी हैं। हम आपको इन क्लासों का सीधा प्रसारण बताएंगे। उसकी पहली क़िस्त -
                 अध्यापक ने क्लास में आकर पहला पाठ शुरू किया। जिसका विषय था। वायदे।
                उसने बोलना शुरू किया , " वायदा राजनीती का ब्रह्मास्त्र होता है। सभी विजेता इसी ब्रह्मास्त्र से जनता को पराजित करते हैं। विरोधी तो अपने आप परास्त हो जाते हैं। असली निशाना होती है जनता। चुनाव का पूरा तानाबाना इसी जनता के खिलाफ बुना जाता है। इसमें वायदा सबसे बड़ा अस्त्र है।
                 वायदा करने में किसी भी प्रकार का संकोच नही करना चाहिए। वायदा करने से पहले ये सोचना की उसे पूरा किया जा सकता है या नही, ये मूर्खों का काम है। वायदे का इस बात से कोई संबंध नही होता की उसे पूरा करना है। चुनाव में किये गए वायदों को पूरा करने की बात तो जनता भी नही सोचती फिर नेता को इतना सोचने की क्या जरूरत है। जनता को मालूम होता है की नेता बेवकूफ बना रहा है लेकिन उसके पास कोई ऑप्सन नही होता। अच्छे से अच्छा समझदार व्यक्ति भी वायदे के चककर में फंस जाता है। ये मालूम होते हुए भी की ये चुनाव का वायदा है वो अंदर ही अंदर उस पर विश्वास करता है। उसके मन में एक इच्छा होती है की शायद ये वायदा पूरा हो जाये। ये मनुष्य का स्वभाव है। और इसी बात का फायदा नेता को उठाना चाहिए। अब आप रोज देखते हैं की टीवी पर विज्ञापन आते हैं। लोगों को मालूम होता है की ये विज्ञापन है। इसमें कहि गयी बातों का वस्तु से दूर दूर तक भी संबंध नही होता। हर आदमी इस बात को समझता है। लेकिन जब वो दुकान पर सामान लेने जाता है तो वही वस्तु खरीदता है। उसके मन के किसी कोने में हल्की सी उम्मीद होती है की शायद विज्ञापन में कहि गयी बात का थोड़ा सा ही हिस्सा क्यों न हो लेकिन सच हो सकता है।
                  ठीक यही बात चुनाव में किये जाने वाले वायदों पर लागु होती है। लोग हर बात को समझते हुए भी अपने मन के किसी कोने में ये हल्की सी इच्छा पाल लेते हैं की शायद इसमें कुछ सच हो।
                   इसलिए वायदा करते वक्त कभी भी उसके सम्भव होने या ना होने पर विचार नही करना चाहिए। एक सफल नेता के लिए ये जरूरी है की वो बड़े बड़े वायदे करे।
                   दूसरी बात ये है की आप एक साथ दो विरोधी वायदे भी कर सकते हैं। आप पंजाब में कह सकते हैं की चण्डीगढ़ पंजाब को मिलना चाहिए और उसी दिन हरियाणा में कह सकते हैं की हरियाणा को मिलना चाहिए। इसमें कोई धर्मसंकट नही है। जिस तरह भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है की उसके भक्त को कभी भी संशय का शिकार नही होना चाहिए। उसे अपने सारे कर्म भगवान को अर्पण कर देने चाहियें , ठीक उसी तरह चुनाव में उतरे हुए योद्धा के लिए भी ये जरूरी है की वो इस तरह के संशय से दूर रहे। नेता का काम है चुनाव लड़ना और उसे किसी भी तरह जीतना। इसलिए वायदों का ऐसा चक्रव्यूह रचो की मतदाता उसमे प्रवेश तो कर जाये लेकिन बाहर ना निकल पाये। यही असली योद्धा की पहचान है। " ग़ालिब ने भी कहा है --
                            तेरे वादे पे जिए हम, ये जान की झूठ जाना,
                            के ख़ुशी से मर ना जाते, जो एतबार होता।
                                                       शेष कल।

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