Saturday, October 8, 2016

व्यंग -- लोग हमे विकास नही करने दे रहे।

                     मेरे मुहल्ले का करियाने का दुकानदार जो खुद को सरकार का प्रवक्ता मानता है, आज काफी निराश दिखाई दे रहा था। मैंने उससे इसका कारण पूछा तो उसने बताया " देखिये हमने विकास का नारा दिया था। और अब हाल ये है की लोग हमे विकास करने ही नही दे रहे हैं। इस तरह तो हमारी बहुत बदनामी हो जाएगी। "
                    मुझे बड़ी हैरानी हुई। मैंने कहा की भाई किसी को विकास ना होने देने से क्या फायदा है। उल्टा लोग तो सरकार पर आरोप लगा रहे हैं की उसने विकास के नाम पर धोखा किया।
                   " यही तो बात है। एक तरफ हमे विकास नही करने दे रहे और दूसरी तरफ आरोप लगा रहे हैं। " उसने तपाक से जवाब दिया।
                    वैसे कौन है जो आपको विकास नही करने दे रहा। मैंने पूछा।
                   " अब देखिये झारखण्ड में क्या हुआ ? सरकार विकास करने के लिए जमीन ले रही थी तो वहां किसान धरने पर बैठ गए। वो तो सरकार विकास पर अडिग थी सो उसने गोलियां चला कर उन्हें उठा दिया 'लेकिन उनकी कोशिश तो जारी ही है। "
                     " लेकिन किसान तो केवल मुआवजा और नोकरी की मांग कर रहे थे। " मैंने उसे बताया।
                   उसने नाराजगी जाहिर की " मुआवजा कहीं भागा थोड़ा ना जा रहा था। और रही नोकरी की बात, तो नोकरी तो कम्पनी के मालिक अपने हिसाब से देंगे। ये कोई जबरदस्ती थोड़ी है की आपको ही दी जाये। "
                   " लेकिन जिन किसानों की जमीन ली जा रही है उनके गुजारे का ध्यान रखना भी तो सरकार की जिम्मेदारी है। जमीन नही रहने पर वो बेचारे क्या करेंगे ?" मैंने उसे स्थिति समझाने की कोशिश की।
                  " कम्पनी के मालिक इधर उधर से सस्ते मजदूर लाएंगे। इसके लिए उन्होंने ठेकेदार भी रख लिए हैं। अब अगर सरकार किसानों को पक्की नोकरिया दिलवा देगी तो उन्हें ज्यादा तनख्वा देनी पड़ेगी। ज्यादा तनख्वा देंगे तो मुनाफा नही होगा, मुनाफा नही होगा तो कम्पनी बन्द हो जाएगी और कम्पनी बन्द हो गयी तो विकास कैसे होगा ?" उसने पूरा हिसाब बता दिया।
                  " और कौन कौन हैं विकास विरोधी। " मैंने पूछा।
                    " अरे, बहुत लोग हैं। अब छत्तीसगढ़ में ही देख लो। आदिवासियों की हत्या को लेकर रोज जलूस निकाले जा रहे हैं। " उसने कहा।
                   " मतलब आदिवासियों की पुलिस द्वारा की जा रही हत्याओं का विरोध भी विकास का विरोध है ?" मैंने हैरानी से पूछा।
                   " और नही तो क्या। अब आदिवासियों को जमीन खाली करने के लिए कह दिया था तो वो कर नही रहे हैं। इसलिए बेचारी पुलिस को जमीन खाली करवाने के लिए गोलियां चलानी पड़ रही हैं। अब इसके खिलाफ जलूस निकालना तो सरकारी काम में टांग अड़ाना ही माना जायेगा। अगर पुलिस गोली नही चलाएगी तो जमीन खाली नही होगी, जमीन खाली नही होगी तो विकास कैसे होगा? " उसने सहज भाव से जवाब दिया।
                     " इसके अलावा और कौन कौन हैं ?" मुझे अब उसका जवाब पसन्द आने लगा था। कुछ भी हो पट्ठा बात तो वही कह रहा था जो सरकार नही कह पा  रही थी।
                     " वो लोग जो सरकार को बैंकों का डूबा हुआ पैसा वसूल करने को कह रहे हैं। " उसने बात आगे बधाई।
                     " इसमें क्या गलत है ?" मैंने पूछा।
                      " भई देखो, अगर कारखाना मालिकों पर ये शर्त लगा दी जाएगी की उनको कर्ज जरूर लौटाना पड़ेगा तो वो कर्ज लेंगे ही नही। अगर वो कर्ज नही लेंगे तो कारखाने कैसे लगेंगे ? और अगर कारखाने नही लगेंगे तो विकास कैसे होगा। " उसने फिर बात साफ कर दी।
                      " इस तरह तो बैंक डूब जायेंगे। " मैंने कहा।
                      " डूब जाएँ, एक डूबेगा तो दो नए आएंगे। इसमें घबराने की क्या बात है ? " उसने कहा।
                     " लेकिन पैसा तो आम जनता का ही डूबेगा। " मैंने कहा।
                     " इतना अर्थशास्त्र भी नही समझते। हजारों लोगों का पैसा डूबेगा तो एक दो हाथों मैं जायेगा। उससे पूंजी का निर्माण होगा। पूंजी का निर्माण होगा तो नए कारखाने लगेंगे। नए कारखाने लगेंगे तो विकास होगा। इसलिए विकास के लिए बैंको का डूबना बहुत जरूरी है। सरकार इसके लिए प्रयास भी कर रही है लेकिन लोगों ने फिर विरोध करना शुरू कर दिया।"  उसने पूरा अर्थशास्त्र समझा दिया।
                     " इस तरह तो सारी जमीन, सारा पैसा और सारे संशाधन कुछ लोगों के पास इकट्ठे हो जायेंगे। " मैंने कहा।
                    " तो अच्छा है न। इससे हिसाब रखना आसान हो जायेगा। फैसले लेने आसान हो जायेंगे। " उसने कहा।
                    " तुम्हारी सरकार हररोज तो नया टैक्स या सेस लगा देती है, कभी स्वच्छ भारत के नाम पर, कभी शिक्षा के नाम पर। " मैंने आगे कहा।
                    " अब लोगों के काम सरकार अपने पैसे से क्यों करेगी ? लोगों की गलियों में झाड़ू लगाना सरकार का काम थोड़ा ना है। अब बच्चे लोग पैदा करते हैं और पढ़ाने की जिम्मेदारी सरकार पर डाल दे रहे हैं। ऐसा कभी होता है। " उसने पुरे आत्मसन्तोष से जवाब दिया।
                      " तो सरकार का क्या काम होता है ?  मैंने पूछा।
                     " सरकार का काम है विकास करना। उसके लिए जमीन खाली करवाना , बैंकों से लोन दिलवाना, विदेशों से समझौते करवाना और टैक्स के रूप में पैसा इकट्ठा करके उद्योगपतियों  को छूट देना ताकि उनके पास ज्यादा से ज्यादा पैसा आये और वो कारखाने लगाएं ताकि विकास हो। " उसने फिर अर्थशास्त्र समझा  दिया।
                     " अगर लोगों के पास सामान खरीदने के पैसे ही नही होंगे तो कारखाने कैसे चलेंगे और विकास कैसे होगा। " मैंने पूरा जोर लगाकर तर्क दिया।
                       " ऐसा आपको लगता है , सरकार को नही लगता। विकास के लिए लोगों के पास नही बल्कि उद्योगपतियों के पास पैसा होना जरूरी होता है। जब वो कारखाना लगाता है तो ईंट, लोहा सीमेंट इत्यादि बिकता है, मशीने बिकती हैं, बिजली का सामान बिकता है, इस तरह कारखाना लगते लगते बहुत सा सामान बिक जाता है। " उसने कहा।
                     " लेकिन उसका बनाया हुआ सामान तो लोगों को ही खरीदना है। वो नही खरीद पाएंगे तो चलेगा कैसे ? " मैंने फिर से वही तर्क दिया।
                      " नही बिकेगा तो बन्द रक्खेंगे। जितना बिक गया उतना विकास तो हुआ। बाद में और पैसा आएगा तो दूसरा लगाएंगे।" उसने कहा।
                     " लेकिन ये तो संविधान के खिलाफ होगा। " मैंने कहा।
                     " तो हमने थोड़ा न संविधान लिखा था। सच कहूँ, तो आधे से ज्यादा समस्याएं तो इस संविधान की पैदा की हुई हैं। सरकार को मौका मिलेगा तो इसे भी बदल दिया जायेगा। वैसे बेअसर तो किया ही जा रहा है। और जब तक ऐसा नही होगा, तब तक विकास तो मुश्किल ही है। " उसने अंतिम टिप्पणी की।

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