Sunday, November 6, 2016

काश ! इस अन्धेर नगरी में भी कोई चौपट राजा होता।

                   बचपन में एक बहुत मशहूर कहानी सुनी थी, अन्धेर नगरी चौपट राजा। वैसे तो ये कहानी बहुत से लोगों ने सुनी है। फिर भी इसका सार संक्षेप इस तरह है, एक नगरी जिसका नाम अन्धेर नगरी था उसमे चौपट नाम का राजा राज करता था। उस नगरी में सभी वस्तुएं चाहे वो सब्जी हो या मिठाई, एक ही भाव पर मिलती थी। इसलिए उसमे ये कहावत थी,
                                      अन्धेर नगरी चौपट राजा,
                                      टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
                   उसमे एक बार एक गुरु शिष्य घूमने के लिए आये। तो गुरु ने वहां की व्यवस्था देख कर शिष्य को वहां से चलने के लिए कहा। परन्तु शिष्य टके सेर की मिठाई खा कर खुश था। आखिर में गुरु वहां से चला गया। उसके बाद की कहानी इस प्रकार है की एक दिवार गिरने से एक बकरी मर जाती है। राजा दिवार के मालिक को गुनाहगार ठहराता है। तो दिवार का मालिक दिवार बनाने वाले कारीगर को गुनाहगार बताता है तो राजा कारीगर को पकड़ने का हुक्म दे देता है और फांसी की सजा सुना देता है। वो कारीगर बहुत पतला होता है और उसकी गरदन फंदे में नही आती है। तो राजा किसी मोटे आदमी को फांसी देने का हुक्म देता है और इस तरह टके सेर की मिठाई खा खा कर मोटे हुए शिष्य की बारी आ जाती है।
                     इस कहानी में दो चीजें मिलती हैं। एक तो सभी चीजों के भाव समान हैं और दूसरी चीज ये है की राजा ये मानता है की अगर गुनाह हुआ है तो किसी न किसी को तो सजा मिलनी ही चाहिए। वो अपराध को बिना सजा सुनाये नही जाने देता।
                   अब आजकल हमारे देश की जो हालत है उसमे मुझे उस चौपट राजा की बहुत कमी महसूस हो रही है। वरना लक्ष्मण पुर बाथे से लेकर शंकर बिगहा हत्याकांड तक में कोई आरोपी सिद्ध नही हुआ। ये मान लिया गया जैसे ये हत्याकांड हुए ही नही थे। गुलमर्ग सोसायटी हत्याकांड में तो जज मरने वाले को ही भीड़ को उकसाने का जिम्मेदार ठहरा देते हैं। जिन लोगों को दंगों के लिए सजा हुई थी वो जमानत पर बाहर घूम रहे हैं और जिन पर अभी अपराध साबित नही हुआ है उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है। जिन लोगों पर अपने ही देश के लोगों को कत्ल करने और घर जलाने के आरोप हैं, उन्हें राष्ट्रपति से सम्मानित करवाया जा रहा है और जिन्होंने सच बोलने की हिम्मत दिखाई उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है। जो अपना फर्ज निभा रहे हैं उनके मुंह पर टेप चिपका दी गयी है और जो चापलूसी पूर्ण भजन गा रहे हैं उन्हें उच्च श्रेणी की सुरक्षा और सम्मान दिया जा रहा है।
                     ऐसे में अगर चौपट राजा होते तो लक्ष्मणपुर बाथे और शंकर बिगहा के लिए शायद जाँच अधिकारी को ही फांसी पर चढ़ा देते। कम से कम इतने बड़े हत्याकांड को बिना जवाबदेही के तो नही जाने देते। वो ऐसी दातुन बेचने वाले को भी फांसी दे देते जिसकी दातुन से जेल का ताला खुल सकता है।

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