Monday, February 29, 2016

व्यंग -- सियारों और लोमड़ियों की सरकार

              बहुत दिनों से जंगल में शेर का राज था। शेर का झूठा भोजन खाते खाते सियारों और लोमड़ियों को लगा की राज पर कब्जा किया जाये। उन्होंने जंगल के सारे जानवरों को भड़का कर और बड़े बड़े वायदे करके अपने साथ मिला लिया। सरकार बदल गयी। सियारों और लोमड़ियों ने बहुत सा समय दूसरे जंगलों की सैर करने में बिता दिया। जिनको अब तक दूसरे जानवर नीची निगाह से देखते थे उनकी इज्जत होने लगी। जीवन में बहार आ गयी। लेकिन एक समस्या खड़ी हो गयी। जानवर उन्हें किये गए वायदों की याद दिलाने लगे। इसलिए उन्होंने एक सभा की। उस सभा में उन्होंने जंगल की समस्यायें हल करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण घोषणाएं की।
               उन्होंने शेर पर अन्धाधुन्ध शिकार करने का आरोप लगाया। इसलिए उन्होंने ये तय किया की या तो शेर घास खाए , या फिर जंगल छोड़कर चला जाये।
                दुसरे जानवरों ने कहा की अगर शेर जंगल छोड़कर चला गया तो शिकारी जंगल में घुस जायेंगे। और समस्या खड़ी हो जाएगी।
                इस पर सियारों ने कहा की उन्होंने शिकारियों के साथ एक समझौता कर लिया है। इसके अनुसार शिकारी एक निश्चित इलाके के अंदर ही शिकार करेंगे। और वो अपने शिकार का एक हिस्सा सरकार को भी देंगे। जिसे सरकार में बैठे सियार और लोमड़ी खाएंगे।
                 लेकिन शिकारियों का क्या भरोसा की वो उतना ही शिकार करेंगे जितना कहा गया है ? जानवरों ने सवाल उठाया।
               उसके लिए एक आयोग बनाया जायेगा जो इस पर निगाह रखेगा। और इस आयोग की अध्यक्षता कव्वा महाराज करेंगे। सरकार ने घोषणा की।
               लेकिन कव्वा तो खुद शिकारी है। जानवरों ने सवाल उठाया।
              तुम्हे सरकार पर भरोसा करना चाहिए। एक लोमड़ी चिल्लाई।
               सरकार की तरफ से सियार ने बात आगे बढ़ाई, सरकार ने ये वादा किया था की अजगरों ने इस दौरान क्या क्या निगला है उसे बाहर निकाला जायेगा। इसके लिए सरकार ने फैसला किया है की अजगर खुद बता दें की उन्होंने क्या क्या निगला है तो उन्हें थोड़ा सा जुरमाना लगा कर माफ़ी दे दी जाएगी।
                 लेकिन वादा तो निगला हुआ वापिस उगलवाने का था ? जानवरों ने कहा।
                सरकार को जंगल की अर्थव्यवस्था को भी देखना है। जो लोग ऐसा सवाल उठा रहे हैं वो विपक्ष से मिले हुए हैं। जब ये अजगर सामान निगल रहे थे तब ये लोग कहाँ थे। एक सियार चिल्लाया।
                  सरकार जंगल में घास उगाने के लिए कुछ नही कर रही है। जिसकी कमी के कारण पशुओं को पेड़ों की पत्तियां खानी पड़ती हैं। एक हाथी ने कहा।
               तुम तो बोलो ही मत, गद्दार कहीं के। जब जिराफ पेड़ की पत्तियां खाता था तब तुम उसके साथ खड़े थे। तब तुमने एक बार भी उसका विरोध नही किया। एक साथ कई सियार और लोमड़ियाँ चिल्लाये।
                लेकिन जिराफ तो हमेशा से पत्ते ही खाता है। हाथी ने आश्चर्य प्रकट किया।
  क्या एक जंगल में दो तरह के कानून हो सकते हैं? कुछ जानवर घास खाएं और कुछ जानवर पेड़ों के पत्ते खाँयें। ये विशेषाधिकार नही चलेगा। एक जंगल में दो कानूनो का समर्थन करने वाले गद्दार हैं उन्हें जंगल के जानवरों से माफ़ी मांगनी चाहिए। सियार हाथियों पर जैसे टूट ही पड़े।
                  जंगल की दूसरी तरफ से शिकारियों की घुसपैठ अब भी जारी है। तुमने वादा किया था की घुसपैठ एकदम बंद कर दी जाएगी। कुछ जानवरों ने सवाल उठाया।
                  नही, ये गलत बात है। स्थिति में बहुत सुधार है। अब हम पूरी आवाज में चिल्लाते हैं। पहले शेर उतनी तेज आवाज में नही दहाड़ता था। वैसे भी हमारी उन शिकारियों के साथ बात चल रही है। हम वहां भी मिलकर सरकार बना रहे हैं। उसके बाद उन शिकारियों को जंगलभक्त घोषित कर दिया जायेगा। पहले ये शिकारी जंगलद्रोही थे और इसका जवाब पिछली सरकार को देना होगा। एक पीले कपड़े लपेटे सियार ने कहा।
               अब हम सरकार द्वारा जंगल और जानवरों के हित में उठाये जाने वाले दूसरे कुछ कार्यक्रमों के बारे में आपको बताना चाहते हैं।
         १.  जंगल में गायों की संख्या बढ़ाई जाएगी ताकि उनके गोबर और मुत्र से जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ सके। इस परियोजना का ठेका की नामदेव सियार को दिया गया है।
         २.  सरकार सभी पुराने विश्वविद्यालयों को बंद करके जंगलभारती विद्यालय खोलेगी। इस परियोजना की जिम्मेदारी जंगल सेवक संघ को दी गयी है। इसका पाठ्यक्रम भी वो खुद तय करेंगे। उसके लिए दसवीं तक पढ़े लिखे लोगों की तलाश की जा रही है। जब तक ये कार्यवाही पूरी नही हो जाती तब तक विवाह के अवसर पर पढ़े जाने वाले मंत्र की पाठ्यक्रम माने जायेंगे।
         ३. जगल में जंगलभक्ति की भावना का विकास करने के लिए ये नियम लागु किया जायेगा की सभी पशु पक्षी अपनी अपनी भाषाएँ छोड़कर केवल सियार या लोमड़ी की भाषा का ही इस्तेमाल करेंगे।
         ४. आज के बाद जंगल में केवल एक ही रंग के फूल खिलेंगे। दूसरे सभी फूलों के पौधे उखाड़ दिए जायेंगे। पेड़ों के पत्तो का रंग हरा नही होगा बल्कि वैसा होगा जैसा सूखने के बाद होता है। भले ही इसके लिए सारे जंगल के पत्ते सूखाने पड़ें। ये सरकार जंगलभक्ति पर कोई समझौता नही कर सकती।
                  इस पर बहुत वाढ विवाद हुआ। जानवरों ने इसके विरोध में कहा की सभी फूल और पत्ते एक ही तरह के कैसे हो सकते हैं।
                 इस पर सियारों ने कहा की जो जानवर इस पर सवाल उठा रहे हैं वो जंगलद्रोही हैं। उन्होंने तर्क देते हुए कहा की तुम शिकारियों के खेतों में लगी हुई फसलें देखो। सबके पत्ते एक जैसे होते हैं। एक ही तरह के फूल लगते हैं और एक ही तरह के फल लगते हैं। अगर हमे जानवरों की भलाई करनी है तो हमे भी उनकी तरह ही एकजैसा बनना पड़ेगा।
                सभा समाप्त हो गयी। बहुत से युवा जानवर कन्फ्यूज नजर आये। सब अपनी अपनी राह चल पड़े। एक युवा जानवर ने घर आकर अपने एक बूढ़े रिश्तेदार को ये बात बताई।
               पूरी बात सुनकर बुजुर्ग जानवर ने कहा की बाकि सब तो ठीक है। बस एक ही बात की कमी है। उनको ये नही पता की खेतों में जानवर नही रहते। अगर जंगल को खेत में बदल दिया जायेगा तो जानवर कहाँ जायेंगे।

Friday, February 26, 2016

क्या ये दूसरा शम्बूक वध ( हत्या ) है ?

            
  हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की संस्थाकीय हत्या के बाद JNU की घटनाओं पर बीजेपी और आरएसएस का रुख ठीक उसी तरह है जिस तरह शम्बूक नामक शूद्र की ज्ञान प्राप्ति से घबराये हुए अयोध्या के ब्राह्मणो का था। रामायण में इस बात का जिक्र है की शम्बूक की ज्ञान प्राप्ति को रोकने के लिए उस समय अयोध्या के ब्राह्मणो के पास कोई उचित तर्क नही था। इसलिए उन्होंने एक ब्राह्मण के बालक की असामयिक मृत्यु को उसके साथ जोड़ दिया। और उस समय के राजा राम को उस नितान्त असंगत आधार पर भी शम्बूक की हत्या करने में कोई हिचक नही हुई। समाज में ऊपरी पायदान पर बैठा वर्ग हमेशा अपनी स्थिति के खो जाने की आशंका से भयभीत रहता है। और वो हमेशा इस स्थिति को बनाये रखने में कुतर्को और षड्यंत्रों का सहारा लेता रहा है। चाहे द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य का अंगूठा काटने की घटना हो या मौजूदा समय में उच्च शिक्षा में दलितों के प्रवेश को रोकने के लिए की गयी तिकड़में हों।
                JNU में छात्रवृति बंद करने के पीछे भी यही कारण था। उच्च शिक्षा से छात्रवृति बंद करना सीधे सीधे गरीब छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित किये जाने का मामला है जिनमे से बड़ा हिस्सा दलितों से आता है। इस निर्णय के विरोध में JNU छात्र यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया के नेतृत्व में छात्रों का संघर्ष और OCCUPAI  UGC  जैसे प्रोग्राम सामने आये। इन सब पर सरकार ने जो दमन चक्र चलाया उसके बाद सरकार इस  स्थिति में ही नही है की वो इससे इंकार कर सके।
                 उसके बाद संसद में और टीवी चैनलों पर बीजेपी और आरएसएस के प्रवक्ता इस बहस को दुर्गा और महिसासुर तक ले गए। इसे यहां तक लेकर जाना आरएसएस और बीजेपी के उस प्लान का ही हिस्सा है जो देश में एक साम्प्रदायिक और जातीय विभाजन खड़ा करने की कोशिश करता हैं। संसद की ये परम्परा रही है की किसी भी वर्ग समूह द्वारा किसी भी देवी देवता और ऐतिहासिक महापुरुषों के बारे में की गयी आपत्तिजनक टिप्पणी का मुद्दा यदि उठाया जाता है तो उन शब्दों का प्रयोग ज्यों का त्यों नही किया जाता जिन पर आपत्ति होती है। क्योंकि इससे किसी दूसरे समुदाय की भावनाएं आहत हो सकती हैं। लेकिन बीजेपी ने स्मृति ईरानी के नेतृत्त्व में ठीक उन्ही शब्दों का प्रयोग किया और पहले घटी हुई किसी घटना जिसमे बीजेपी के  मौजूदा सांसद उदित राज मुख्य वक्ता थे, उसके लिए राहुल गांधी को जवाब देने के लिए कहा। बीजेपी एक बार अपने सांसद उदित राज से तो पूछ लेती की उसका इस बारे में क्या विचार है। लेकिन उसने इसका राजनैतिक प्रयोग किया।
                 भारतीय समाज में देवी देवताओं और पूजा पध्दतियों के बारे में इतनी विविधतायें हैं जिनको आरएसएस और बीजेपी एक रूप देने की विफल कोशिश करती रही हैं। कुछ समुदाय महिसासुर और रावण की पूजा करते हैं। बिहार में जरासंध का जन्मदिन मनाया जाता है और उसमे बीजेपी के नेता शामिल होते हैं। धर्म की मान्यताएं हमेशा अकादमिक बहस का मुद्दा रही हैं। जिन्हे हम समाज सुधारक कहते है उन्होंने क्या किया था ? पहले चली आ रही मान्यताओं पर हमला करके उनके जन विरोधी चरित्र को उजागर किया था और उन्हें बदलने के लिए लोगों को तैयार किया था। इस तरह तो सबको देशद्रोही घोषित किया जा सकता है। बीजेपी के प्रवक्ता का ये कहना की हमे महिसासुर की पूजा से एतराज नही है बल्कि दुर्गा के चित्रण में प्रयोग शब्दों पर आपत्ति है। लेकिन ये आपत्ति तो कुछ लोगों द्वारा महिसासुर और रावण के चित्रण में प्रयोग शब्दों पर भी हो सकती है। क्या संबित पात्रा इस बात की गारंटी लेंगे की की आगे से चाहे रामलीला हो या कोई दूसरा प्रवचन, उसमे इनके लिए उस तरह का चित्रण नही किया जायेगा। इसलिए लोगों और विभिन्न समूहों द्वारा सदियों से अपनाये गए रीती रिवाजों पर अकादमिक बहस तो हो सकती है, लेकिन इनका राजनैतिक इस्तेमाल देश को बहुत महंगा पड़ सकता है।
                अब आते हैं रोहित वेमुला की मौत पर। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं की ABVP के कहने पर बीजेपी सरकार के मंत्रियों ने उन पर कार्यवाही के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बनाया और उन्हें विश्वविद्यालय से बाहर निकलवाया। हो सकता है ये चीजें अदालत में साबित ना हों। अदालत में बहुत सी चीजें साबित नही होती, इसका मतलब ये नही होता की सच्चाई बदल जाएगी। रोहित एक होनहार रिसर्च स्कालर था और उस वर्ग से आता था जो रामराज से आज तक शिक्षा का अधिकारी स्वीकार नही किया गया है। ये साफ तोर पर दूसरी बार शम्बूक की हत्या है।

न्याय और व्यवस्था को विफल करने की कोशिश

            
  पिछले लगभग दो सालो से जब से ये सरकार सत्ता में आई है तब से नई तरह बहस, नए तरह के कुतर्क और नए तरह के हथकंडे सामने आ रहे हैं। केवल बहस के स्तर पर ही नही बल्कि कार्यवाही के स्तर पर भी नए हथकंडो का सहारा लिया जा रहा है।
               बीजेपी के लोग चाहे वो सरकार में रहें या विपक्ष में वो हमेशा इन हथकंडों का सहारा लेते है। कुतर्कों से बहस करते हैं और तकनीकी कुप्रयासों से  न्यायायिक और प्रशासनिक व्यवस्था को विफल करते हैं। ये तरीका हमने गुजरात में अच्छी तरह से देखा था। जब 2002 की ट्रेन का डब्बा जलाने की घटना के बाद गुजरात में सरकार प्रायोजित हिंसा का ताण्डव हुआ और उस पर जब बीजेपी नेताओं से सवाल पूछे गए तो उन्होंने उसे उसी तरह की स्वाभाविक पर्तिकिर्या बताया जैसे अब दिल्ली में वकीलों के हमले को बताया। जब दबाव बढ़ता तब बीजेपी के नेता हल्के स्वरों में हिंसा की निंदा करते और जब कार्यवाही की बात आती तो हमलावरों के साथ खड़े हो जाते। हिंसा पर सवाल उठाने वालों पर सामने से सवाल किया जाता की क्या गीधरा की घटना सही थी ? पूरा देश उसकी निंदा करता रहा लेकिन बीजेपी और आरएसएस उसे अपने कुकर्मो और हमलावरों के समर्थन में  इस्तेमाल करती रही। अब जब JNU और हैदराबाद विश्विद्यालय का  सवाल उठाया जाता है तो उसी तरह सामने से सवाल दागा जाता है की क्या देश के खिलाफ नारे लगाना सही है ? आप लाख जवाब देते रहिये और निंदा करते रहिये लेकिन उसे कौन सुनने वाला है।
               दिल्ली पुलिस की कार्यवाही पर जब संसद में पूछा गया तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा की पुलिस ने कानून के अनुसार काम किया है। पुलिस उच्चत्तम न्यायालय के स्पष्ट आदेशों के बावजूद हमलावरों को क्यों सहयोग कर रही थी इसका जवाब उन्होंने नही दिया। बीजेपी के सभी वक्ताओं ने पूरी बहस को तकनीकी मामलों में उलझाने की पूरी कोशिश की। कन्हैया की जमानत के मामले में दिल्ली पुलिस ने जिस तरह सरकार के साथ साथ अपनी पोजीशन बदली उसके लिए उसने कहा की नए तथ्य सामने आये हैं। लेकिन जो लोग मुंह ढंककर नारे लगा रहे थे उन पर पुलिस ने कुछ नही कहा। गोधरा में भी यही हुआ था। असली गुनहगार कभी नही पकड़े जायेंगे। नकली विडिओ फुटेज बनाने वालों पर कार्यवाही पर व्ही जवाब की जाँच चल रही है। वकीलों के असली विडिओ पर कार्यवाही पर व्ही जवाब की जाँच चल रही है।
               लेकिन इस बार एक फर्क है। देश गुजरात से बहुत बड़ा है। पूरा देश हिंदुत्व की प्रयोगशाला में बदल जायेगा ये खुशफहमी ही है। धीरे धीरे बीजेपी और आरएसएस की कार्यप्रणाली और उद्देश्य दोनों सामने आ रही हैं। लोग इसे समझने लगे हैं। भले ही उनकी संख्या अभी कम है और उन्माद का असर है लेकिन पर्दाफाश होकर रहेगा।

Thursday, February 25, 2016

सियाचिन के शहीद हनुमंत्थप्पा की मौत के जिम्मेदार

                  पिछले दिनों सियाचिन में एक भयंकर हिम स्खलन की घटना हुई। इस घटना में वहां सुरक्षा चौकी पर तैनात भारतीय सेना के 10 जवान बर्फ के नीचे दब गए। छह दिन बाद जब हमारे देश की रेस्क्यू टीम वहां पहुंची और उन्हें बर्फ के निचे से निकाला तब तक उनमे से 9 की मौत हो चुकी थी और एक लांस नायक हनुमंत्थप्पा कोमा ही हालत में, लेकिन जीवित थे। उन्हें तुरंत दिल्ली लाया गया जहां डाक्टरों के एक दल ने जो तोड़ कोशिश की लेकिन चूँकि वो एक लम्बे समय तक बर्फ के निचे दबे रहे थे इसलिए उनके शरीर के लगभग सभी अंग काम करना बंद कर चुके थे। पुरे देश के लोगों की दुवाएं और डॉक्टरों के प्रयास उन्हें बचा नही पाये। पूरा देश साँस रोके उनके होश में आने का इंतजार कर रहा था लेकिन वो चले गए। वही यह बात भी चर्चा का विषय रही की अगर उन्हें दो तीन दिन पहले निकल लिया गया होता तो शायद उन्हें बचाया जा सकता था। ये अनुमान भी लगाया गया की हो सकता है कोई और जवान भी जीवित निकल आता। लेकिन सियाचिन की वो जगह जहां ये जवान तैनात थे वो इतने दुर्गम  क्षेत्र में है की सारी कोशिशों के बावजूद भी उससे पहले पहुंचना किसी भी हालत में सम्भव नही था। वरना कोई भी सेना अपने जवानो के लिए कोई कस्र बाकी नही रखती।
                     लेकि कल 24 फ़रवरी को एक ऐसी जानकारी सामने आई जिसे सुनकर लोग दंग रह गए। जब लोकसभा में JNU के मामले पर बहस चल रही थी तब उस पर बोलते हुए बीजू जनता दल के सदस्य श्री तथागत सतपथी ने एक चौंकाने वाली बात कही। उन्होंने कहा की जब सियाचिन में ये दुर्घटना घटित हुई तब उससे कुछ ही दुरी पर पाकिस्तान की सेना भी तैनात थी। उसने जब देखा की हिम स्खलन की वजह से भारतीय सेना बर्फ के नीचे दब गयी है तो उसने उनकी सहायता करने के लिए भारत सरकार से अनुमति मांगी। पाकिस्तान की सेना उससे कुछ ही दुरी पर थी जो कुछ मिनटों में नही तो एक दो घंटे में दुर्घटना की जगह पर पहुंच सकती थी। लेकिन भारत सरकार ने इसकी इजाजत नही दी। प्राकृतिक आपदाओं के समय दो देशों की आमने सामने तैनात सेनाएं एक दूसरे की मदद करती रही हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आये भयंकर भूकम्प में जब पाकिस्तानी सेना की एक चौकी तबाह हो गयी थी तब भारतीय सेना ने उसे बचाया था। पुरे पाकिस्तानी मीडिया और सरकार से लेकर जनता तक ने भरतीय सेना की इस कार्यवाही के लिए धन्यवाद दिया था। हमने भी अपनी सेना की इस कार्यवाही पर गर्व का अनुभव किया था। तब क्या कारण था की इतने दुर्गम क्षेत्र में जहां हमारी  सहायता पहुंचना मुश्किल था सरकार ने पाकिस्तानी सेना को अपने सैनिकों की जान बचाने की पेशकश को ठुकरा दिया।
                      अगर उस समय भारत सरकार इसकी इजाजत दे देती तो ना केवल लांस नायक हनुमंत्थप्पा, बल्कि शायद एक दो दूसरे सैनिकों की जान भी बच सकती थी। एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री बिना बुलाये नवाज शरीफ के यहां हलवा खाने चले जाते हैं जिसे बीजेपी असामान्य कदम की तरह पेश करते हैं दूसरी तरफ हमारे सैनिकों की जान बचाने का फैसला नही ले पाते।
                       जब लोकसभा में माँननीय सदस्य ने इसका जिक्र किया तो सरकार की तरफ से इसका कोई खंडन नही आया। पूरी बीजेपी को जैसे सांप सूंघ गया।
                     लांस नायक हनुमंत्थप्पा की शहादत के बाद बीजेपी ने अपने आप को सैनिकों और सेना का सबसे बड़ा हितैशी दिखाने की कोशिश की जो वो हमेशा से करते रहे हैं। लेकिन असलियत में उन्हें सेना के जवानो की कितनी फ़िक्र है इस घटना से साफ हो जाता है।

Tuesday, February 23, 2016

राष्ट्रवादी हमला -- अदालत सुरक्षित जगह ढूंढ रही है।

              JNU अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के बाद पटियाला हॉउस कोर्ट में हुई हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस को उच्चत्तम न्यायालय ने पूरी सुरक्षा के आदेश दिए। उसके बाद कन्हैया कुमार को कोर्ट में पेश करते वक्त जिस तरह तथाकथित राष्ट्रवादी वकीलों के एक गिरोह ने कन्हैया और प्रैस के लोगों पर हमला किया और उनकी पिटाई की उस पर पुलिस कमिशनर के उस वक्त के लंगड़े बचाव के बाद ये बात भी सामने आ गयी की ये हमला बाकायदा पुलिस के सहयोग से किया गया था। उसके बाद कई सवाल उठे। लेकिन सरकार और पुलिस के प्रवक्ताओं ने इसे बहुत ही मामूली सी घटना बताया। उसके बाद कई दिनों तक उन वकीलों की गिरफ्तारी ना होना और बाद में गिरफ्तारी के तुरंत बाद पुलिस द्वारा ठाणे में ही उनको जमानत दे दिया जाना दिखाता है की पुलिस और सरकार की मिलीभगत अब भी जारी है।
              इससे पहले गुजरात दंगो के बाद भी ये बात सामने आई थी की गुजरात में इन दंगों के मामले पर निष्पक्ष सुनवाई सम्भव नही है। तब उच्चत्तम न्यायालय ने उन केसों की सुनवाई गुजरात से बाहर करवाने का फैसला किया। जिन केसों को पुलिस ने बंद कर दिया था उन्हें SIT और सीबीआई ने दुबारा खोला और उनमे सजा हुई। ये बात सामने आ गयी की सारी पुलिस कार्यवाही और सरकार के बयान फर्जी थे। लेकिन उसके लिए ना तो सरकार और ना ही पुलिस के किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई। न्याय व्यवस्था को विफल करने के दोषी मजे से अपना काम करते रहे।
              उसी तरह का माहौल अब पटियाला हाउस कोर्ट के मामले में है। ऐसा कहा जा रहा है की उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के मामले में जज अदालत की बजाय पुलिस स्टेशन में आकर सुनवाई कर  सकता है। यानि ये मान लिया गया है की पटियाला हाउस कोर्ट में अदालती कार्यवाही की सुरक्षा की कोई गारंटी नही है। और ये हालात किसने पैदा किये है ? उन्ही लोगों ने जिनको गिरफ्तार करने की पुलिस को कोई जरूरत महसूस नही हुई और सरकार जिसे मामूली घटना बता रही है। अदालत का कामकाज हिंसा के द्वारा रोक दिया गया और अदालत खुद के लिए सुरक्षित जगह ढूंढ रही है और ये मामूली  घटना है।
               इन राष्ट्रवादी हमलों का अगला दौर संसद और विधानसभाओं की कार्यवाहियों को जबरदस्ती अंदर घुस कर रोक देने का होगा। क्योंकि संविधान में अदालत और विधायिका को समान दरजा है। हो सकता है एक राष्ट्रवादी आतंकवादियों का एक गुट कल दिल्ली विधानसभा में घुस जाये और केजरीवाल से कहे की बाकि बातें छोडो और भारत माता की जय बोलो।
               जो लोग घटनाओं की गंभीरता को नही समझ रहे हैं और इन लोकतंत्र विरोधी राष्ट्रवादियों की हाँ में हाँ मिला रहे हैं उन्हें जब तक इसकी गंभीरता समझ में आएगी तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी। वो अलग बात है की उनको कोई फर्क नही पड़ता। क्योंकि वो और उनके ये राष्ट्रवादी गुंडे तो अंग्रेजी राज में भी कुशल पूर्वक थे , आजादी के लिए मरने वाले तो दूसरे ही थे।

कश्मीर और मुस्लिमो के प्रति मीडिया के पूर्वाग्रह

                 पिछले कुछ दिनों से JNU के बहाने कश्मीर के मामले पर बहस शुरू हो गयी है। कश्मीर के कुछ लोग कश्मीर के भारत में विलय को सही नही मानते और इस पर पुनर्विचार की मांग करते रहे हैं। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्त्व में मुस्लिमों का एक बड़ा हिस्सा कश्मीर को भारत का अंग मानता रहा है लेकिन उस समझौते के अनुसार, जिसका हिस्सा धारा 370 है। ये एक पेचीदा सवाल है और इसमें कई तरह के तर्क हैं। हम इसमें किसी बहस में शामिल होने की बजाय केवल मीडिया की रिपोर्टिंग में शामिल पूर्वाग्रहों तक खुद को सिमित रखेंगे।
                   JNU का मौजूदा विवाद भी इस बात पर शुरू हुआ है की क्या किसी को कश्मीर की आजादी के नारे लगाने का अधिकार है या नही। एक पक्ष हिस्टीरियाई अंदाज में चीख चीख कर इसका विरोध करता है। उसका कहना है की कश्मीर में भारत का विलय अंतिम है और इस पर कोई सवाल नही उठाया जा सकता। उसका कहना है की कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, यहां तक की पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भी। लेकिन जब हम इस बात का व्यवहारिक विश्लेषण करते हैं तो बात उस तरह की नही निकलती है। जो लोग कश्मीर के भारत का अभिन्न हिस्सा होने की बात  करते हैं वो भी दिल से इसे स्वीकार करते नही दिखाई देते। एक दुरी उनके व्यवहार में साफ दिखाई देती है। ये दुरी ना केवल लोगों बल्कि पुरे मीडिया और टीवी चैनलों में भी दिखाई देती है।
                  JNU में देशविरोधी नारे लगाने वाला विडिओ सामने आने के बाद और जो बाद में डॉक्टर्ड पाया गया, बीजेपी, आरएसएस और उनके साथ ही मीडिया का एक हिस्सा भी इस बात की रट  लगाये रहा की वहां देशविरोधी नारे लगाये गए हैं। उनका पूर्वाग्रह और लोगों को गुमराह करने की कोशिश इस बात से साबित होती है की तमाम आरोपी छात्रों में केवल एक मुस्लिम छात्र होने के बावजूद सारा मीडिया इस घटना के लिए उसे मास्टरमाइंड के रूप में पेश करता रहा। और उसे देशविरोधी सिद्ध करने के लिए मीडिया जो गढ़े हुए सबूत पेश कर रहा था उसमे भी ये पूर्वाग्रह शामिल था। मीडिया ने इसके सबूत के तोर पर दिखाया की उसके फोन से कश्मीर में कितनी कॉल की गयी। जैसे कश्मीर कोई दुश्मन देश हो। उसके बाद बताया गया की उसने अरब देशों, पाकिस्तान और कश्मीर की यात्रायें भी की। इसमें भी कश्मीर का जिक्र इस तरह किया गया जैसे वो पाकिस्तान की तरह ही कोई अवांछित प्रदेश है। वो अलग बात है की जब उमर खालिद वापिस JNU कैम्पस में लौटा तो उसने बताया की उसके पास तो पासपोर्ट ही नही है। उसने ये भी बताया की वो केवल एक बार कश्मीर गया है।
                  मीडिया जब भी कश्मीर और मुस्लिमो का जिक्र करता है तो ये पूर्वाग्रह उसमे साफ दिखाई देता है। और इस तरह का पूर्वाग्रह कश्मीर के लोगों को भारत के साथ जोड़ने में बहुत बड़ी बाधा है। बाहें चढ़ा चढ़ा कर देशभक्ति के नारे लगाने वाले ये लोग नही जानते की इस तरह की रिपोर्टिंग से वो देश कितना बड़ा नुकशान कर रहे हैं। इसी तरह की गलत रिपोर्टिंग और बीजेपी आरएसएस ने अपने प्रयासों से JNU के नाम पर दिल्ली के बीचों बीच एक ऐसी जगह बना दी मानो ये भारत का हिस्सा ही नही है।

Monday, February 22, 2016

रोहित वेमुला केस में दलित पार्टियों की ख़ामोशी

             कल 23 फ़रवरी है। कल ही हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने रोहित वेमुला की संस्थाकीय हत्या मामले में न्याय की मांग करते हुए दिल्ली चलो का नारा दिया है। इस नारे पर कल दिल्ली में एक बड़ा छात्र प्रदर्शन होने की उम्मीद है। बीजेपी के छात्र संगठन ABVP के रोहित का विरोध करने के बाद केंद्र सरकार के दो मंत्रियों बंडारु दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी ने रोहित की गतिविधियों को राष्ट्र विरोधी बताते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन को उन्हें विश्वविद्यालय से बाहर करने को मजबूर किया, जिसके चलते रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली। इसलिए पुरे देश के छात्र इसे संस्थाकीय हत्या कह रहे हैं।
             लेकिन इसमें एक बहुत ही अजीब सी लगने वाली चीज भी सामने आई है। दलितों के नाम पर राजनीती करने वाली पार्टियां इस पर आश्चर्यजनक रूप से खामोश हैं। जो पार्टियां बहुत ही छोटी छोटी बातों को भी दलित उत्पीड़न का मामला बता कर राजनीती करती रही हैं, वो इस सवाल पर चुप्पी साध गयी। आखिर इसका क्या कारण है ?
             रोहित वेमुला पहले वामपंथी छात्र संगठन SFI के साथ जुड़ा हुआ था और बाद में उसने अम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन ज्वाइन कर ली। रोहित विश्वविद्यालय की राजनीती में दलित छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव के साथ बहुत ही बुनियादी सवाल उठा रहा था जो व्यवस्था के साथ जुड़े हुए थे। ये वो सवाल थे जिनसेदलित राजनीती का स्वरूप बदल सकता था। वह परिवारों के नाम पर या खोखले नारों के नाम पर बनी राजनितिक पार्टियों का विरोध करता था और दलितों के लिए बुनियादी सुधारों की मांग करता था। वह अम्बेडकर की राजनितिक लाइन को समझता था और इसे केवल जातिवादी नारों से वोट बटोरने तक घटाने का विरोधी था। इसीलिए एक तरफ जहां ABVP जैसे साम्प्रदायिक छात्र संगठन उससे डरते थे तो दूसरी तरफ अम्बेडकर के नाम पर सत्ता की मलाई खाने वालों को भी उससे परेशानी होती थी। रोहित वेमुला छात्र राजनीती में और दलित राजनीती में एक क्रन्तिकारी लेकिन कम पहचानी हुई धारा की अगुवाई कर रहा था। जिस तरह भगत सिंह आजादी की लड़ाई में एक छोटी लेकिन समानान्तर विचारधारात्मक लड़ाई का नेतृत्त्व करते थे। जिस तरह भगत सिंह की शहादत ने देश के नौजवानो को उन विचारों को जानने और समझने के लिए प्रेरित किया था, उसी तरह रोहित वेमुला की शहादत ने भी दलित छात्रों और नौजवानो को उस बुनियादी लड़ाई को समझने के लिए प्रेरित किया है। और यही कारण है की दलित राजनैतिक पार्टियां उससे खतरा महसूस करती हैं। उन्हें लगता है की अगर ये बुनियादी सवाल उठाये गए तो इनमे से एक का भी जवाब उनके पास नही है।
             लेकिन क्या ये ख़ामोशी रोहित के विचारों को छात्रों और नौजवानो तक पहुंचने से रोक पायेगी। क्योंकि पुरे हिंदुस्तान में सदियों से इस उत्पीड़न के शिकार दलित और अल्पसंख्यक नौजवान प्रगतिशील वामपंथी ताकतों के साथ मिलकर एक मोर्चा बना रहे हैं। पूरी खलबली और JNU जैसे हमले इसी मोर्चे से घबराहट का नतीजा हैं। रोहित के साथ भी वही होने वाला है जो अफ़्रीकी नेता लुमुम्बा की हत्या  जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में है। उन्होंने  कहा था की ," एक मरा हुआ लुमुम्बा, एक जिन्दा लुमुम्बा से ज्यादा खतरनाक होता है। "

Sunday, February 21, 2016

बीजेपी पूर्व सैनिकों के नाम पर फासिज्म को बढ़ावा दे रही है।

खबरी -- बीजेपी JNU के मामले को सैनिकों से क्यों जोड़ रही है ?

गप्पी -- फासिज्म की पहचान ही यही है की वो देशभक्ति का चोला ओढ़कर आता है। पूरा विश्व इतिहास इसका गवाह है। आरएसएस भारत में भी फासिज्म को तिरंगे में लपेट रही है। उस तिरंगे में, जिसको खुद उसने कभी अपने कार्यालयों पर नही फहराया। JNU की घटना का सैनिकों से या तिरंगे से कोई लेना देना नही है, लेकिन चूँकि पूरा देश सेना और सैनिकों का सम्मान करता है इसलिए आरएसएस इसे घुमा फ़िरा कर सेना से जोड़ने की कोशिश कर रही है। वरना पूरा देश जानता है की सेना के जवान जिन किसानो और मजदूरों के घरों से आते हैं उनके लिए बीजेपी सरकार ने क्या किया है। देश में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बीजेपी के राज में दो गुनी हो गई है। जितना बदहाल किसान आज है उतना इससे पहले कभी नही था। यही किसान अपने एक बेटे को सरहद पर भेजता है। इसी सैनिक का उपयोग बीजेपी किसान के उस बेटे के खिलाफ करने की कोशिश कर रही है जो कालेज में पढ़ता है और सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत करता है।
               पहले एक मजाक बहुत प्रचलित था जिसमे एक छात्र जवाहरलाल पर निबंध याद करता है। उसके बाद परीक्षा में चाहे गुलाब पर निबंध लिखना हो या कोट पर, संसद पर लिखना हो या संविधान पर, वो उसे घुमा फ़िर कर जवाहरलाल पर ले आता है और हर बार वही लिख देता है। आरएसएस और बीजेपी का भी वही हाल है। मामला चाहे आदिवासियों का हो, छात्रों का हो, हथियारों में दलाली का हो या दिल्ली के वकीलों का हो, वो उसे घुमा फ़िर कर सैनिकों और शहीदों पर ले आती है और हल्ला कर देती है की देखो ये सब देशद्रोही हैं और शहीदों का अपमान कर रहे हैं।

Saturday, February 20, 2016

राष्ट्रवादी बीजेपी और डेविड कोलमैन हेडली

खबरी -- बीजेपी के हेडली के बारे में फैसले से उठते सवाल।

गप्पी -- पिछले दिनों जब याकूब मेनन को फांसी की सजा दी गयी तो देश के करीब 100 प्रमुख व्यक्तियों ने राष्ट्रपति से उसे एक हफ्ता आगे सरकाने की अपील की थी। तब बीजेपी और उसके भक्तों ने आसमान सिर पर उठा लिया था और सबको देशद्रोही घोषित कर दिया था। अब 26 /11 का अभियुक्त डेविड हेडली को उसी राष्ट्रवादी सरकार ने माफ़ करने की घोषणा कर दी है। अब राष्ट्रवाद और देशद्रोह जैसे शब्दों का क्या हुआ। अब इन कथित देशभक्तों को सांप क्यों सूंघ गया जो इनके मुंह से एक शब्द नही निकलता। दिल्ली पटियाला हाउस कोर्ट और मुंबई कोर्ट के राष्ट्रवादी वकील तब कहां थे , उन्होंने इसके विरोध में एक शब्द नही बोला। ये सब नकली देशभक्त हैं, जिन्हे अगर अमेरिका का वीजा मिल जाये तो ये शाम होने से पहले देश छोड़ने को तैयार बैठे हैं। क्या ये लोग मांग करेंगे --
1.    डेविड हेडली को फांसी दो। उसे माफ़ी देने वाले गद्दार हैं।
2.    जब तक पाकिस्तान हाफिज सईद, मसूद अजहर और दाऊद इब्राहिम को भारत को नही सौंपता तब तक उसके साथ कोई बातचीत नही। और जो इस बीच उसे मिलेगा वो गद्दार है।

कश्मीर में अलगाववाद और बीजेपी का राष्ट्रवाद

खबरी -- सड़कों पर तिरंगा और राष्ट्रवादी नारे।

गप्पी -- जो लोग हाथों में तिरंगा लेकर और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए दिल्ली में और पुरे देश में हुड़दंग मचा रहे हैं उनसे एक निवेदन है -
            वो आरएसएस के नागपुर और दिल्ली स्थित संघ मुख्यालय पर तिरंगा फहराने की मांग करें।
            वो अपने घर  से एक सदस्य को सियाचिन जैसी जगहों पर सेना की नौकरी में भेंजे। देश के
            लिए जान देने का काम केवल किसानो और मजदूरों के बेटों का नही है।
            कश्मीर में पिछले साल से बीजेपी और पीडीपी  की सरकार थी। और अब वहां सीधे रूप में केंद्र
            यानि बीजेपी का शासन है तो वहां हररोज लगने वाले पाकिस्तान समर्थक नारों और ISIS के
             झंडे लहराने वालों पर पिछले एक साल में कोई भी कार्यवाही क्यों नही हुई।

Thursday, February 18, 2016

संघ और बीजेपी कबसे देशभक्त हो गए ?

              नई खबर आई है की आरएसएस और बीजेपी देश भक्त हो गए हैं। वरना अब तक तो लोगों को ये पता है की इन्होने आजादी की लड़ाई का विरोध किया था। लेकिन कुछ और भी तथ्य हैं जिनको जानना जरूरी है। इन तथ्यों से ये साफ हो जायेगा की बीजेपी और आरएसएस की देशभक्ति केवल सत्ता प्राप्त करने का हथियार है। जैसे --
१.   आजादी से पहले  तरफ संघ के संचालक गोलवरकर हिन्दुओं को आजादी की लड़ाई से दूर रहने का आह्वान कर रहे थे और अंग्रेजों के साथ सहयोग कर रहे थे तब इनका राजनितिक दल था हिन्दू महासभा। इसके अध्यक्ष थे वीर सावरकर ( वीर शब्द वीरता के लिए बल्कि उनका नाम वीर था ) और इसके दूसरे प्रमुख नेता थे श्यामा प्रशाद मुखर्जी। जब मोहम्मद अली जिन्ना अलग पाकिस्तान के लिए सीधी कार्यवाही का नारा दे रहे थे और जो भारत के विभाजन और 20 लाख लोगों की मौत का कारण बना, उस समय ये जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर कांग्रेस के विरोध में तीन प्रांतों, सिंध, उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त और बंगाल में साझा सरकार चला रहे थे।
2.    जब पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद अपने चरम पर था और उसके बाद अकाली दल ने संसद के मुख्य द्वार पर भारत के संविधान की प्रति जलाई थी तब से ही अकाली इनके सहयोगी हैं। उसके बाद अब तक पंजाब में उग्रवाद और नेताओं की हत्या में सजा प्राप्त उग्रवादियों की अकाली दल तरफदारी करता रहा है और उसे बीजेपी का समर्थन प्राप्त है। बीजेपी ने इन मौत की सजा प्राप्त आतंकवादियों को कभी देश द्रोही नही कहा।
3.      तमिलनाडु में लिट्टे का खुलेआम समर्थन करने वाले, प्रभाकरन को हीरो बताने वाले MDMK के साथ इन्होने पिछला लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था और वो NDA का हिस्सा थी जो बाद में श्रीलंका के मामले पर खुद अलग हो गयी। बीजेपी ने राजीव गांधी की हत्या करने वाले और फांसी की सजा प्राप्त लोगों को कभी देश द्रोही नही कहा।
4.        कश्मीर के मामले पर पीडीपी का रुख और अफजल गुरु को शहीद मानने का उसका एलान सबको मालूम है। लेकिन जब बीजेपी को ऐसा लगा की वहां सत्ता की मलाई में हिस्सा हो सकता है तो उसने एक मिनट नही लगाई उसके साथ समझौता करने में। उसके बाद कश्मीर में अफजल गुरु को शहीद बताने वाले बीजेपी की तरह ही देहभक्त हो गए और बाकि देश में देश द्रोही रह गए।
5.          याकूब मेनन की फांसी को 15 दिन रोकने के लिए जिन 100 बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रपति को अपील करते हुए पत्र लिखा था उन सब को बीजेपी ने देशद्रोही करार दे दिया। अब 26 /11 के हमले के आरोपी डेविड हेडली को बीजेपी सरकार ने पूरी माफ़ी देने का समझौता कर लिया उसके बाद भी वो देशभक्त हैं। डेविड हेडली भी सालस्कर जैसे सैनिकों की मौत का जिम्मेदार है और तब बीजेपी को सेना के शहीदों की याद नही आई।
6.          बार बार अपने पक्ष में लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिए बीजेपी हमेशा सेना और शहीदों का नाम लेती रही है। लेकिन OROP के सवाल पर यही सेना के वेटरन 6 महीने धरना देकर बैठे रहे, मैंने रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल सतबीर सिंह की आँखों में आंसू देखे हैं , इन्होने अपने मेडल वापिस कर दिए , लेकिन बीजेपी ने उनकी मांग नही मानी जिसपर सालाना 8000 करोड़ खर्च का अनुमान था। दूसरी तरफ उसने केवल 30 उद्योगपतियों का एक लाख चौदह हजार करोड़ एक झटके में माफ़ कर दिया। इतनी रकम के केवल ब्याज से ही OROP को दो बार लागु किया जा सकता है।
                   इसके साथ ही ये भी एक सवाल है की बीजेपी ने कभी भी असम के उग्रवादियों, बोडो उग्रवादियों, तमिल उग्रवादियों, खालिस्तानी उग्रवादियों और प्रज्ञा ठाकुर जैसे हिन्दू उग्रवादियों के लिए कभी भी देश द्रोही शब्द का इस्तेमाल करना तो दूर उल्टा उनकी मदद ही की है। बीजेपी केवल मुस्लिम और नक्सली उग्रवादियों के लिए ही देशद्रोही शब्द का प्रयोग करती है। इसलिए कम से कम बीजेपी और आरएसएस की देशभक्ति हमेशा सवालों के घेरे में रहेगी।

Sunday, February 14, 2016

वामपन्थ पर हमला और संघी राष्ट्रवाद

            JNU की घटना और उसके बाद संघ और बीजेपी सहित सरकार समेत उसके सभी अंग वामपंथ पर टूट पड़े हैं। इनमे वामपंथ को देशद्रोही साबित करने की होड़ लग गयी है। JNU की घटना में वामपंथी छात्र संगठनो की भूमिका को एकतरफा तरीके से दिखाने की कोशिशों के बावजूद, इस बात को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है की ये सारी कवायद बीजेपी सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में आरएसएस के एजेंडे के अनुसार भगवाकरण करने के प्रयास और पुरे देश में वामपंथी छात्र संगठनो के नेतृत्त्व में उसके बढ़ते हुए विरोध के बाद शुरू हुए हैं। शिक्षा को आम आदमी की पहुंच से बाहर करने की कोशिश में लगातार बढ़ाई जा रही फ़ीस, शोध के क्षेत्र में स्कॉलरशिप खत्म किये जाने, और तीसरे दर्जे के लोगों को, जो संघ की विचारधारा के नजदीक हैं, उन्हें शिक्षा संस्थानों में नियुक्त किये जाने का इन संगठनो ने भारी विरोध किया था। इस बार इस विरोध में उनके साथ दलित छात्रों के संगठन और अल्पसंख्यकों के छात्र संगठनो का भी समर्थन था और बीजेपी के लिए इसे आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा था।
              लेकिन इस सबके बावजूद राष्ट्रवाद की ठेकेदारी करने वाले इन संघी संगठनो और वामपंथी संगठनो के पिछले रिकार्ड पर भी एक नजर डालना बेहतर  होगा।
                पंजाब में जब आतंकवाद अपने शिखर पर था और देश की एकता और अखण्डता को चुनौती दे रहा था तब उसके विरोध में कौन खड़ा था। वामपंथी पार्टियों के 200 से ज्यादा नेता इसमें शहीद हुए थे लेकिन उन्होंने अंत तक उसका मुकाबला किया था। बीजेपी बताये की उसके कितने और किस किस नेता ने क़ुरबानी दी थी ? उस समय अकाली दल ने संसद भवन के गेट पर भारत के संविधान की प्रति जलाई थी। उसके बाद से ही अकाली दल और बीजेपी सहयोगी दल हैं।
               बीजेपी हमेशा कश्मीर के मुद्दे को उठाती रही है। लेकिन उसका योगदान वहां आतंकवाद से लड़ने में क्या है ? बीजेपी और उसके अनुपम खेर जैसे समर्थक एक नाम नही बता सकते जिसने कश्मीर में आतंकवाद से लड़ते हुए जान दी हो। हाँ, कश्मीर के नाम पर कमाई जरूर की है फिर चाहे वो सरकार में हिस्सेदारी का मामला हो या पद्म पुरस्कारों का। दूसरी तरफ कश्मीर में सीपीएम के राज्य सचिव मोहम्मद युसूफ तारिगामी पर आतंकवादियों के दस से ज्यादा हमले हुए हैं और इन हमलों में उसके 15 से ज्यादा परिवार के सदस्य मारे गए हैं। लेकिन उसने कश्मीर नही छोड़ा और अब भी वहीं है। इस तरह के कई उदाहरण हैं।
                आजादी से पहले तो संघ का रिकार्ड ही अंग्रेजों के सहयोगी का रहा है। लेकिन कुछ तथ्य हैं जिनका आम जनता को नही पता। आजादी से पहले आज की बीजेपी के आराध्य नेता श्यामा प्रशाद मुखर्जी हिन्दू महासभा के नेता होते थे। 1940 में जब जिन्नाह की मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग का प्रस्ताव पास किया, उसके बाद जिन्ना और मुस्लिम लीग का हर कदम पाकिस्तान की तरफ बढ़ रहा था। आजादी से पहले जब अंग्रेज राज के तहत स्थानीय शासन के लिए विधान सभाओं के चुनाव हुए थे उसमे इसी हिन्दू महासभा ने कांग्रेस का विरोध करते हुए मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। हैरत है की इन सारे तथ्यों के बावजूद आज राष्ट्रवाद की ठेकेदारी संघ और बीजेपी कर रही हैं।
                  आज भी मौजूदा समय में संघ और बीजेपी के राष्ट्रवाद और देश प्रेम का एक नमूना मैं यहां देना चाहता हूँ। भारत के लगभग 30 बड़े उद्योगपति, आम जनता के खून पसीने की कमाई का एक लाख चौदह हजार करोड़ रुपया दबा कर बैठ गए। बीजेपी सरकार ने बैंको को इस पैसे की उघराणी करने की बजाए इसे माफ़ कर देने को कहा। बैंको ने ये सारा कर्जा माफ़ कर दिया जबकि इन लोगों के पास लाखों करोड़ की सम्पत्ति है। इसके बाद इन उद्योगपतियों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करने की बजाए, बीजेपी सरकार ने इस साल उनमे से दो लोगों को पदमश्री दे दिया। लोगों की मेहनत की कमाई को चर जाने का इनाम। संघ और बीजेपी के राष्ट्रवाद का यही तरीका है। ये रकम पुरे देश के आदिवासियों को पिछले पांच साल में दिए गए बजट प्रावधान से ज्यादा होती है। अब अगर कोई आदिवासी इस पर सवाल  करेगा तो उसे आराम से नक्सली घोषित करके मारा जा सकता है।
                    सरकार के इस काम में अज्ञानी और धर्मान्ध लोगों का एक तबका सहयोग करता है। साथ में कुछ टीवी चैनल, ( जो या तो सीधे तौर पर इस फायदा प्राप्त उद्योगपतियों के होते हैं या फिर उन्हें विज्ञापन के बड़े लाभ दिए जा रहे होते हैं। राज्य सभा की सीट और पद्म पुरस्कार अलग से ) इसमें लगातार सरकारी प्रचार में लगे रहते हैं।
             सवाल ये है की क्या बीजेपी और संघ, वामपंथ पर हमला करके शिक्षा के भगवाकरण और व्यापारीकरण में कामयाब हो जायेगा। या फिर लोग इसे जनतन्त्र पर हमला मान कर विफल कर देंगे।

Thursday, February 11, 2016

हेडली के बयान के बाद बीजेपी का व्यवहार

खबरी -- हेडली की गवाही के बाद बीजेपी और आरएसएस के सारे समर्थक उन लोगों पर हमला करने निकल पड़े हैं जिन्होंने ईशरत जहाँ के एनकाउंटर पर सवाल उठाये थे।

गप्पी -- पहले जब भी कोई अपराधी पकड़ा जाता था और किसी बीजेपी नेता का नाम लेता था तो बीजेपी का तर्क होता था की किसी अपराधी के बयान पर कैसे भरोषा किया जा सकता है। अब ये हेडली क्या देवलोक से आया है। हेडली के बयान को सही बताना उन सब लोगों को झूठा साबित करना है जो इशरत जहाँ के फर्जी एनकाउंटर की जाँच में शामिल थे। ये न्यायायिक जाँच करने वाले जस्टिस तमांग, सीबीआई और न्यायालय द्वारा बनाई गयी SIT को भी झूठा साबित करने का प्रयास है। आखिर ये हेडली कौन है ? 26/11 के मुंबई हमलों का एक ऐसा मुजरिम, जिससे पूछताछ तक की इजाजत अमेरिका ने भारत को नही दी थी। अमेरिका में हेडली को सजा इसलिए मिली थी, क्योंकि वो एक दोहरा जासूस था। हेडली एक अमेरिकी जासूस था इस बात से तो अमेरिका खुद भी इंकार नही करता। उससे पूछताछ की इजाजत इसलिए भी नही दी गयी हो सकती है की इन घटनाओं में अमेरिकी भागीदारी का पर्दाफाश होने का डर था।
               जो बीजेपी कसाब को बिरयानी खिलाने की हायतौबा मचाती थी वो अब हेडली की तस्वीर पर दूध चढ़ाने निकली है। वाह रे राष्ट्रवाद ! इन नए शासकों का देवता गोडसे है और सिद्धांतकार गोएबल्स, ये आदमी से ज्यादा उसकी जहालत पर भरोसा करते हैं। इनके उद्देश्य संद्धिग्ध हैं और प्रयास विभाजनकारी हैं। लेकिन इनके पास ऐसे कठपुतलों की एक बड़ी फौज है जिसका व्यवहार उस बच्चे की तरह है जो हर उस खिलोने को तोड़ देता है जिसके छीन जाने का डर हो।

Wednesday, February 10, 2016

Vyang -- जरासन्ध का पुनरागमन

खबरी -- बीजेपी ने कहा है की उत्तर प्रदेश में मुगलों का राज है।

गप्पी -- किसी भी चीज की तुलना इतिहास की किसी दूसरी चीज से करना पुरानी परम्परा है। लेकिन उसके लिए कुछ निश्चित मापदण्डों का इस्तेमाल किया जाता है वरना लोग उसे मजाक समझते हैं। इसी आधार पर मैंने सोचा की क्यों ना जम्बु द्वीप के आर्यावर्त के भारत खंड के महान शासक श्री नरेंद्र मोदीजी का कोई उदाहरण इतिहास में ढूंढा जाये। मैंने अपने इतिहास के अल्पज्ञान के बावजूद कई पुरानी पुस्तकों और पुराणो को खोज मारा लेकिन उनके जैसा प्रतापी राजा मुझे इतिहास में नही मिला। आखिर लम्बी शोध के बाद एक राजा मुझे उनके आसपास दिखाई दिया, वो था महाभारत काल का राजा जरासन्ध।
         मैंने दोनों का मिलान करना शुरू किया तो पता चला की पुराने समय में इस जरासन्ध से बचने के लिए यादव शिरोमणि श्री कृष्ण मथुरा छोड़ कर द्वारका भाग गए थे। और इस युग के जरासन्ध तो आये ही द्वारका से हैं। पुराने जरासन्ध मगध के राजा थे और महाबलशाली थे। बलशाली तो ये भी खूब हैं। उन्होंने अपने दामाद कंस की हत्या का बदला लेने के लिए मथुरा पर लगातार हमले किये, और तब तक करते रहे जब तक कृष्ण मथुरा छोड़ कर भाग नही गए। लेकिन इनका दुर्भाग्य देखिये, इन्हे एक यादव ने ( लालू प्रशाद यादव ) ने मगध में ही धूल चटा दी। ऐसा नही है की ये अपने अपमान को भूल जाते हों, नही ये भी उस जरासंध की तरह ही अपमान का सख्त बदला लेने के हिमायती हैं। इसका उदाहरण केजरीवाल हैं। इन्होने अपनी हार का बदला लेने के लिए दिल्ली पर इतने हमले किये हैं, इतने तो जरासंध ने मथुरा पर भी नही किये थे।
          जमाना बदल गया है। वैसे तो मथुरा में अब भी एक यादव ही बैठा है और दोनों एक दूसरे का दुश्मन होने का दावा भी करते हैं, लेकिन लोग हैं की मानने को तैयार ही नही हैं। जब भी ये एक दूसरे के खिलाफ युद्ध की मुद्रा में आते हैं लोग जोर जोर से हंसना शुरू कर देते हैं। इस युग में इन दोनों की सुलह हो गयी है और पुराने जरासंध इनकी सुलह करवाले वाले किसी सीबीआई नाम के कूटनीतिज्ञ को ढूंढ रहे हैं।
          महाभारत काल में जब दुर्योधन ने काशीराज की पुत्री भानुमति से विवाह किया था तो जरासन्ध ने उस पर हमला किया था। तब उसके बचाव में महारथी कर्ण आये थे। तब कर्ण ने जरासंध को हरा दिया था। इस बार ये भूमिका नितीश निभा रहे थे।
            पुराने जरासंध की दो बातें और नए जरासंध से मेल खाती हैं। पहले जरासंध के साथ नरकासुर से लेकर चेदिराज शिशुपाल तक सहयोगियों की एक लम्बी कतार थी। लेकिन कृष्ण ने अपनी कूटनीति के द्वारा उसके सारे सहयोगियों को एक एक कर समाप्त कर दिया। पुराने जरासंध ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए 95 छोटे छोटे राजाओं को कैद किया हुआ था और उनकी संख्या सौ हो जाने पर वो उनकी बलि देना चाहता था। लेकिन इस जरासंध ने ये बेवकूफी नही की। उसने 95 राजाओं को कैद करके नही रखा। उसने समय मिलते ही किसी ना किसी राजा की बलि दे दी। इसमें उसने अपने सहयोगियों का भी ख्याल नही किया। उसने रामबिलास पासवान, जीतनराम मांझी, कुलदीप बिश्नोई आदि जो भी मिला उसकी बलि दे दी। वो तो शुक्र करो की मराठा छत्रपति बाल-बाल बच गए वरना उनका सर भी बलि की वेदी पर तो रख ही दिया था।
            इस तरह की कई समानताएं मुझे दोनों में दिखाई दी। दोनों महान दानवीर हैं। मोदीजी अपनी विदेश यात्राओं में जिस तरह विदेशों में दानराशि बांटते हैं उससे ये समानता साफ झलकती है। दोनों किसी की सुनते नही हैं केवल अपनी कहते हैं। फिर भी कुछ भूल-चूक हो गयी हो तो माफ़ करना।

Tuesday, February 9, 2016

Vyang -- क्या एक ही परिवार काम नही करने दे रहा ?

खबरी -- प्रधानमंत्री मोदी ने कहा  है की एक परिवार सरकार को काम नही करने दे रहा है।

गप्पी -- इससे एक बात तो साफ हो गयी की काम नही हो रहा है। अब तक विपक्ष ये आरोप लगाता था की कुछ काम नही हो रहा है। तब सरकार कहती थी की नही, बहुत काम हो रहा है। उसके बाद धीरे धीरे ऐसा कहने वाले लोगों की तादाद बढ़ती गयी जो कहते हैं की काम नही हो रहा है। आखिर में सरकार ने मान ही लिया की हाँ, काम नही हो रहा है। लेकिन उसने तुरंत ये भी जोड़ दिया की काम इसलिए नही हो रहा है की एक परिवार है जो सरकार को काम नही करने दे रहा है। सरकार तो बहुत काम करना चाहती है लेकिन क्या करे, मजबूर है। नरेंद्र मोदी और बीजेपी अब तक मनमोहन सिंह पर ये आरोप लगाते रहे थे की वो एक परिवार की मर्जी के खिलाफ कुछ भी नही कर सकते। उन्हें रबर स्टाम्प तक कह  दिया जाता था। अब देश को ये मालूम पड़ा की केवल मनमोहन सिंह नही, नरेंद्र मोदी भी उस परिवार की मर्जी के खिलाफ कुछ नही कर सकते, ऐसा खुद मोदी कह रहे हैं। इस परिवार की महिमा तो अपरम्पार है।
                 ऐसा नही है की मोदी जी ने ये बात ऐसे ही कह दी हो। उन्होंने इस बात के सबूत भी दिए हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया की जिस GST बिल को खुद उन्होंने 8 साल तक पास नही होने दिया, उसी बिल को अब ये परिवार पास नही होने दे रहा है। उन्हें इस पर गहरी नाराजगी है की संसद को रोकने का विशेषाधिकार तो केवल उनके पास है, कोई दूसरी पार्टी ऐसा कैसे कर सकती है। मुझे लगता है की अगर इसी तरह चलता रहा तो ऐसा ना हो की जनता उन्हें वापिस उसी भूमिका में  ला दे। तब वो खम ठोककर कह सकते हैं की हाँ, अब हम रोकेंगे संसद और बिलों को।
           क्यों रोकोगे भाई ?
           क्योंकि संसद और बिलों को रोकना लोकतंत्र का हिस्सा है, ये विपक्ष का अधिकार है।
          तो अब जो विपक्ष  कर रहा है वो क्या है ?
           वो देश विरोधी और विकास विरोधी काम है।
खैर, एक दूसरा तबका भी है जो एक दूसरे परिवार पर काम ना करने देने का आरोप  लगा रहा है। ये परिवार है संघ परिवार। सारे देश के लेखक और कलाकार कह रहे हैं की उनके काम करने का माहौल खत्म हो रहा है। दलितों से लेकर छात्रों तक और महिलाओं से लेकर किसानो तक सभी इस पर आरोप लगा रहे हैं। लेकिन बीजेपी और प्रधानमंत्री इसे मानने को तैयार नही हैं। अल्पसंख्यकों की तो ये हालत है की उन्होंने तो  शिकायत तक करना बंद कर दिया है। इस परिवार ने सरकार को कह दिया है की उसके दफ्तर में जो पुरानी, रंग उतरी हुई, खोखले सिर वाली जो मूर्तियां रखी हुई हैं उन्हें शिक्षा संस्थानों में ऊँची जगहों पर रख दिया जाये। अब स्मृति ईरानी जगह ढूंढ ढूंढ कर इन्हे विश्व विद्यालयों के शो केस में सजा रही हैं।
               कुछ परिवार और भी हैं जिनके बारे में लोग जानते हैं की देश में जो भी होता है और जो भी नही होता है, वो सब इनके कारण है। ये देश के शाश्वत परिवार हैं। कौन सरकार है और कौन विपक्ष है, इन्हे कुछ फर्क नही पड़ता है। इनमे अम्बानी परिवार है, अडानी परिवार है, टाटा-बिरला परिवार हैं और भी कई नाम हैं। लेकिन इनकी एक खाशियत है। ये हमेशा देश की गिरती हुई विकास दर को लेकर रोते रहते हैं। शोर मचाते रहते हैं। इनके कारण देश के बैंक डूबने के कगार पर पहुंच गए हैं। इनकी हालत बहुत ही खराब है। नौकरी की इंतजार करता हुआ युवा अपनी चिंता छोड़कर इनके लिए कैंडल मार्च निकालता रहता है। अपने माँ-बाप को गलियां देता रहता है। मुहल्ले के छोटे दुकानदार का लड़का सोशल मीडिया पर लिखता है रिटेल में FDI का विरोध करने वाले दुकानदार गद्दार हैं। मजदूर का लड़का कहता है की अगर श्रम कानूनों को नही बदला गया तो निवेश कैसे आएगा। किसान का लड़का कहता है की अगर खाद की सब्सिडी खत्म नही की गयी राजस्व घाटा कैसे कम होगा। देश का भविष्य इन युवाओं के हाथों में सुरक्षित है। और इस सारे रुदन के बीच इन परिवारों की सम्पत्ति बढ़ती जाती है।
                 इनके अलावा भी कुछ परिवार हैं जो हमारे लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी हैं। जैसे मुलायम सिंह का परिवार, शिवराज सिंह चौहान का परिवार, शुष्मा स्वराज का परिवार, लालू प्रशाद यादव का परिवार, रमन सिंह का परिवार आदि आदि। इनका काम होता रहता है। इनका विकास तेज गति से चलता है भले ही उसके किये संसद ना चले। इनका नाम लेना गुनाह है। आप लेकर देखिये, गेट पर सुब्रमणियम स्वामी डण्डा ( नोटिस ) लेकर बैठे हैं।
              अब कौन परिवार काम नही करने दे रहा इस पर अलग अलग राय हैं। इसलिए एक परिवार का रोना रोना गलत है।

Friday, February 5, 2016

Vyang -- जूलियन असांजे, मानवाधिकार और पश्चिम

खबरी --  सयुंक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार पैनल ने अपनी जाँच के बाद कहा है की विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे की " मनमानी कैद " को न केवल खत्म किया जाना चाहिए बल्कि अब तक इसे बनाये रखने के लिए उसे मुआवजा भी दिया जाना चाहिए।

गप्पी -- मुझे लगता है की सयुंक्त राष्ट्र ने एक बार फिर अपने अधिकार क्षेत्र का उलंघ्घन किया है। सयुंक्त राष्ट्र को इसलिए नही बनाया गया था की वो पश्चिमी देशों के खिलाफ प्रस्ताव पास करे। उसकी स्थापना इसलिए की गयी थी की जब भी जरूरत पड़े, वो पश्चिम की दादागिरी को विश्व शांति के लिए अनिवार्य घोषित करे। उसके हमलों को पूरी दुनिया द्वारा किया गया हमला करार दे। अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों के खिलाफ बोलने वाले देशों को मानवाधिकारों के दुश्मन घोषित करे। लेकिन उसने फिर एकबार बिना सोचे समझे काम किया है।
          जहां तक मानवाधिकारों का सवाल है, अमेरिका और पश्चिमी देशों के रिकार्ड पर कभी सवाल नही उठाया जा सकता। अगर ब्रिटेन जलियांवाला बाग़ करे तब भी वो सभ्य राष्ट्र रहेगा और इराक अपनी सम्प्रभुता की बात करे तब भी दुनिया के लिए खतरा रहेगा। अब सीरिया या यमन में किसकी सरकार हो ये तय करने का अधिकार अगर सयुंक्त राष्ट्र वहां की जनता का घोषित कर दे तो उसे कोई मान थोड़ा ना लेगा। कहां किसकी सरकार होगी ये तय करने का अधिकार तो केवल अमेरिका और पश्चिम को ही है। पिछले सालों में अमेरिका, पश्चिम और सयुंक्त राष्ट्र ने इसे बार बार साबित किया है। इसलिए पश्चिमी देशों के मानवाधिकारों पर सवाल उठाना तो सूरज को दिया दिखाने के बराबर हुआ। अमेरिका भले ही ग्वांटेमाओ जैसी जेल रखे इससे उसके मानवाधिकारों के रिकार्ड पर क्या फर्क पड़ता है। जब अमेरिका ने अपने मूल निवासियों यानि रेड इंडियन्स का सफाया किया तब भी किसी ने उसके मानवाधिकारों पर सवाल उठाने की बजाए उससे प्रेरणा ही ली। आज पूरी दुनिया की पूंजीवादी सरकारें अपने अपने देश के आदिवासियों का उसी तरह सफाया कर रही हैं और मजाल है उसकी कोई चर्चा कर दे। हमारे यहां तो यहां तक सुविधा है की आदिवासियों का सवाल उठाने वालों को आराम से नक्सली घोषित कर दो और उसके साथ फिर जैसा चाहो वैसा सलूक करो, मानवाधिकार गया भाड़ में। और अगर कोई भूल से इस पर सवाल उठा भी दे तो उस पर ये कहकर टूट पड़ो की उस समय आप कहां थे जब --------
               इस रिपोर्ट में जो नाम पहले आता है वो है स्वीडन। आप दुनिया की किसी भी संस्था की रिपोर्ट उठा कर देख लीजिये, मानवाधिकारों और नागरिक अधिकारों के मामले में उसका नंबर ऊपर से पहला या दूसरा होता है। अब अगर वो अमेरिका के किसी दुश्मन को घेरने के लिए प्रयास करता है तो केवल इस बात से उसका रिकार्ड खराब थोड़ा ना हो जायेगा। ये तो सनातन परम्परा है। भगवान राम अगर सीता का त्याग कर दें तो क्या तुम उन्हें महिला विरोधी थोड़ा ना साबित कर दोगे। इस दुनिया को चलाने के लिए ये अति आवश्यक है की एकलव्य बिना कोई सवाल उठाये अपना अँगूठा द्रोणाचार्य को भेंट करता रहे। इसके लिए उसे महान गुरु भक्त और दूसरे अलंकारों से नवाजा जायेगा। लेकिन अगर वो इस पर सवाल उठाता है तो उसे रोहित वेमुला बना दिया जायेगा।
                इसलिए मेरा मानना है की सयुंक्त राष्ट्र को अपनी ये रिपोर्ट वापिस ले लेनी चाहिए और जूलियन असांजे को दुनिया और सभ्यता का दुश्मन कर देना चाहिए। आखिर उसके कामों ने महान अमेरिकी शासन पर ऐसा कलंक लगाया है जिसे उसका पूरा प्रचार तंत्र, सारी सैन्य शक्ति और विश्व संस्थाएं मिल कर भी साफ नही कर पा रही हैं।