Monday, January 9, 2017

आंकड़ों की कलाबाजी से देश को गुमराह कर रहे हैं अरुण जेटली।

             
  नोटबन्दी के फैसले के बाद सरकार की साँस फूली हुई है। सरकार को अच्छी तरह मालूम है की नोटबन्दी अपने घोषित उद्देश्यों में पूरी तरह फेल हो चुकी है। उल्टा इसके कारण लोगों और अर्थव्यवस्था को जो नुकशान हुआ है वो बहुत बड़ा है। लेकिन चूँकि ये बीजेपी की सरकार है जिसने कभी भी अपनी गलती स्वीकार नही की, चाहे कुछ भी हो जाये। ठीक उसी तरह जैसे भृष्टाचार के किसी भी आरोप की जाँच की मांग को नही मानकर ये रट लगाए रखना की सरकार पर एक भी भृष्टाचार का आरोप नही है।  इसलिए पूरी पार्टी और सरकार, मीडिया का इस्तेमाल करके इस तरह का सन्देश देने की कोशिश कर रही हैं जैसे नोटबन्दी से फायदा हुआ हो। इसके लिए पूरी सरकार को इस काम पर लगा दिया गया है की किसी भी तरह आंकड़ों को तोड़ मरोड़ कर ये सिद्ध किया जाये की नोटबन्दी से फायदा हुआ है।
                 इसी क्रम में वित्तमंत्री अरुण जेटली हररोज आंकड़ों की कलाबाजी से देश को गुमराह करने की कोशिश करते हैं। मीडिया में दाऊद की सम्पत्ति जब्त करने जैसी झूठी खबरें प्लांट की जा रही हैं। अरुण जेटली जिस तरह से अर्थव्यवस्था के आंकड़ों की कलाबाजी कर रहे हैं उसे अगर ठीक तरह से समझ जाये तो वो इस तरह से है।
                 एक आदमी अपने बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास गया और कहा की बच्चे की ग्रोथ नही हो रही है। डॉक्टर ने उसे दो महीने में सब कुछ ठीक करने का भरोसा देकर मोटी फ़ीस ऐंठ ली। दो महीने के बाद बच्चे का वजन और कम हो गया। बच्चे के बाप और डॉक्टर का झगड़ा हुआ। लोग जमा हो गए। डॉक्टर कह रहा था की बच्चे का विकास हुआ है और उसका वजन बढ़ गया है। इसके तर्क में डॉक्टर ने लोगों को बताया की बच्चे का वजन पिछली नवम्बर में 8 किलो था जो अब 9 किलो हो गया है, तो बताओ वजन बढा है की नही ? बच्चे का बाप कह रहा है की अक्टूबर में जब मैं बच्चे को डॉक्टर के पास लेकर आया था तब उसका वजन 10 किलो था जो अब घटकर 9 किलो रह गया है।
                  अरुण जेटली ठीक उस डॉक्टर की तरह बात कर रहे हैं। वो नवम्बर के टैक्स और जीडीपी के आंकड़ों की तुलना पिछले साल से कर रहे हैं जबकि असलियत ये है की सितम्बर और अक्टूबर के मुकाबले नवम्बर  दिसम्बर में टैक्स और जीडीपी में कमी आयी है और अर्थव्यवस्था में मंदी साफ दिखाई दे रही है। लेकिन अरुण जेटली इनकी तुलना करना ही नही चाहते।
                   नोटबन्दी के बाद सरकार कोई भी आंकड़ा सार्वजनिक नही करना चाहती। ना तो रिजर्व बैंक के गवर्नर और ना ही वित्त मंत्री, ये बताने को तैयार हैं की कितने नोट वापिस जमा हो गए। और ना ही ये बताने को तैयार हैं की कितना कालाधन पकड़ा गया। इसको छिपाने के लिए इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं की इनकम टैक्स, बैंको में जमा हुए 4 लाख करोड़ रुपयों की छानबीन कर रहा है। ताकि लोगों को ऐसा लगे की कुछ तो हाथ लगा है। जबकि असलियत ये है की इनकम टैक्स के नोटिस देने भर से या छानबीन करने से कोई धन काला नही हो जाता। इससे पहले इनकम टैक्स ने जिन लोगों की छानबीन करके जिन लोगों को टैक्स भरने के लिए कहा था, वो सारे केस कोर्ट में पैंडिंग हैं और अब सरकार उसके निपटारे के लिए रोज नई स्कीमो की घोषणा करती है। अगर इनकम टैक्स इतना सक्षम है तो उनकी उगाही क्यों नही कर लेता। और दूसरा इनकम टैक्स अगर किसी के खिलाफ टैक्स चोरी का मामला बनाता भी है और वो कोई देशी विदेशी बड़ी कम्पनी होती है तो सरकार खुद इनकम टैक्स के खिलाफ खड़ी हो जाती है, जैसे वोडाफोन के केस में हुआ।
                  इसलिए आंकड़ों की बाजीगरी से देश को गुमराह करना बन्द कीजिये और सीधे सीधे ये बताइये की नोटबन्दी से पहले महीने, यानि अकटूबर के मुकाबले क्या पोजिशन है।

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