Wednesday, April 19, 2017

महिला आरक्षण बिल -- राजनैतिक दोगलेपन का प्रतीक

                 क्या किसी ने पिछले तीन साल में महिला आरक्षण बिल का जिक्र सुना है ? उससे पहले ये लगभग परम्परा सी बन गयी थी की जब भी संसद का कोई सत्र समाप्त होता, श्रीमती सुषमा स्वराज बाकि दलों की महिला सांसदों के साथ फोटों खिंचवाती थी और महिला आरक्षण बिल को पास न करने को लेकर सरकार को कोसती थी। लेकिन जब से बीजेपी की सरकार आयी है और सुषमा जी मंत्री बनी हैं, उन्होंने महिला आरक्षण बिल का नाम भी नहीं लिया।
                 इस बात का जिक्र इसलिए हो रहा है की आजकल बीजेपी के नेताओं का महिलाओं की दुर्दशा को देखकर कलेजा फटा जा रहा है। तीन तलाक का मुद्दा तो ऐसा हो गया है जैसे देश में ये केवल एकमात्र समस्या है। वो अलग बात है की तीन तलाक से परेशान महिलाओं की तादाद वृन्दावन में भीख मांग रही हिन्दू विधवाओं से भी कम होगी, जो तीन तलाक पर छाती पीटने वाले मठाधीशों की विकृत परम्पराओं की वजह से भीख मांग रही हैं। लेकिन जिनके लिए हर मुद्दा लोगों को लड़ाकर राजनीती की रोटियां सेकने के सिवाय कुछ नहीं होता, वो इस पर क्यों बोलेंगे।
                 महिलाओं के अधिकारों पर आंसू बहाने  वाले बीजेपी के नेताओं को और योगीजी को हमारी तरफ से एक चुनौती है की जब उनके पास बीजेपी नेताओं और मंत्रियों सम्पत्ति की लिस्ट आ जाये तो वो उनके परिवार की लिंग अनुपात की लिस्ट भी मांग लें, तो ये भी देश के सामने आ जाये की गर्भ में लड़कियों का कत्ल करने वाले लोगों में कौन कौन शामिल हैं।
                    खैर, मुद्दा महिला आरक्षण बिल का है। ये बिल राज्य सभा में पास हो चुका है। और इसे केवल लोकसभा से पास करवाना बाकी है जहां बीजेपी का बहुमत है। फिर क्या कारण है की बीजेपी सरकार इसे पास नहीं करवा रही। ये बिल बीजेपी के महिलाओं के अधिकारों को लेकर उसके दोगलेपन का बेहतरीन उदाहरण है। जब उसे कोई बिल पास नहीं करवाना होता है तो वो आम सहमति का बहाना करती है और जहां सही में आम सहमति की जरूरत होती है तो उसे जबरदस्ती लागु करने की कोशिश करती है। भूमि अधिग्रहण बिल इसका ताजा उदाहरण है।

1 comment:

  1. यदि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें तो उम्मीद है जल्द ही यह बिल भी पास होगा

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