Sunday, April 23, 2017

गाय का धंधा ( कहानी )

सुबह के पांच बजे थे। आंगन में बैठे एक अधेड़ उम्र के आदमी की नजरें दरवाजे पर लगी थी। ऐसा लगता था जैसे उसे बेसब्री से किसी के आने का इंतजार था। तभी गली में मोटर साइकिल के रुकने की आवाज आयी। अधेड़ की आँखों में चमक आ गयी। बाहर मोटर साइकिल पर तीन लड़के सवार थे। गले में गेरुआ रंग का दुपट्टा और हाथों में दंगाइयों जैसे हथियार लिए थे। उनमे से पीछे बैठा लड़का उतर कर घर के अंदर दाखिल हुआ। उसके उतरते ही मोटर साइकिल फर्राटे से आगे बढ़ गयी।
               उसके घर में घुसते ही अधेड़ तेजी से उसकी तरफ लपका। युवक ने जेब से एक पांच सौ रूपये का नोट निकाल कर अधेड़ के हाथ पर रख दिया।
               बस, पांच सौ ? अधेड़ ने युवक की तरह अविश्वास से देखा।
                हाँ, बस इतना ही मिला।  युवक ने जवाब दिया।
                क्यों इतना कम ? पहले पांच हजार तक मिलते थे, फिर दो हजार हुए और अब पांच सौ ? अब अधेड़ के चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था।
               पहले हम नाके पर केवल दस लोग बैठते थे। अब बीस हो गए हैं। दूसरा अब हमारा नाका भी शहर के बाहर बाई पास से पहले कर दिया है। अब पशुओं की कुछ गाड़ियां बाई पास होकर निकल जाती हैं जिससे दूसरे नाके वाले उनसे उगाही करते हैं। अब केवल दो गाड़ियां आयी थी। उनसे सात हजार के हिसाब से पैसा लिया, जिसमे से दो हजार के हिसाब से पुलिस को चला गया। बाकि बचा दस हजार, तो बीस लोगों को पांच सौ ही हिस्से में आया।  युवक ने हिसाब समझा दिया।
                दूसरे दस लोगों को तुम्हे अपने साथ बैठाने की क्या जरूरत थी ? अधेड़ ने गुस्से से कहा।
               विधायक जी ने भेजे हैं। बोले अपने ही कार्यकर्ता हैं और आज से तुम्हारे साथ ही बैठेंगे। युवक ने सफाई दी।
                तुमने विधायक जी से कहा नहीं की हमारे हिस्से में क्या आएगा ? अधेड़ का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था।
                  कहा था, लेकिन बोले की एडजेस्ट करो।
              और तुमने ये गाड़ी का रेट घटाकर सात हजार करने की क्या जरूरत थी ? अधेड़ ने पूछा।
              पहले गाड़ी में गाय भी आती थी, तो हम दस हजार लेते थे। कोई मुसलमान होता था तो डरकर दस हजार भी दे देता था। अब मुसलमान गाड़ियां लेकर आने कम हो गए हैं। गाय की गाड़ियां तो सब जगमोहन की होती हैं जो सीधे लाइसेंस वाले बूचड़खाने में चली जाती हैं। पहले जगमोहन भी गाड़ी पर कुछ दे देता था। अब तो पुलिस वाले भी उसकी गाड़ी को नहीं रोकते। कहते हैं उसकी पहुंच ऊपर तक हो गयी है। युवक ने लाचारी दिखाई।
                लेकिन इलाके में आतंक बना कर मुसलमानो से ये काम हमने छुड़वाया। उसका फायदा जगमोहन अकेला कैसे उठा सकता है। मैं आज ही विधायक जी से बात करूंगा। अधेड़ गुस्से में बड़बड़ाता हुआ अंदर चला गया।
                 उसके बाद उसने नहा धोकर ढंग के कपड़े पहने और विधायक निवास पहुंच गया। वहां और भी बहुत से लोग आये हुए थे। लेकिन उसको जल्दी ही अंदर बुला लिया गया।
               आइए महाराज, कैसे आना हुआ। विधायक जी ने पुराने परिचित के हिसाब से उससे हाल पूछा।
                विधायक जी, बात ऐसी है की लड़के सारी रात नाके पर बैठते हैं फिर भी पांच सौ रुपल्ली भी हिस्से में नहीं आती। अधेड़ ने सीधे सीधे समस्या बयान कर दी।
                 अरे महाराज, गौ रक्षा का पुण्य भी तो मिलता है। विधायक जी ने हँसते हुए कहा।
                पुण्य तो हम घर रहकर भी कमा सकते थे। बात धंधे की है। इलाके में आतंक फैलाकर हमने मुसलमानो को पशुओं का व्यापार बंद करने पर मजबूर किया। और आज ये जगमोहन जैसे लोग अकेले उसका फायदा उठा रहे हैं। उसे तो गाय के पैसे भी नहीं देने पड़ते। वो अकेला सारा माल हजम कर रहा है। उससे कहिये की नाके पर भी गाड़ी के हिसाब से कुछ पैसे देना शुरू करे।  अधेड़ ने पूरी बात कह दी।
                देखिये, जगमोहन जी ऊपर बहुत पैसा देते हैं। उसे सारा पैसा नहीं मिलता। उसकी बात जाने दो। विधायक जी ने साफ साफ मना कर दिया।
                 लेकिन केवल पांच सौ रूपये रोज से क्या होता है। आप खुद समझिये। अधेड़ ने एतराज किया।
                 अरे महाराज, याद करो, पिछले साल आप ही इस लड़के के लिए पांच सात हजार की नौकरी मांगने आये थे तब मैंने ही इसे गौ रक्षकों में शामिल करवाया था। अब आपको लालच हो गया है। विधायक जी भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेले थे।
                लेकिन जगमोहन ----
                जगमोहन जी की बात मत करो। विधायक जी ने अधेड़ की बात बीच में ही काटी। फिर कभी मौका आएगा तो किसी दंगे में अच्छा इलाका दिलवा देंगे। पुरे साल का खर्चा निकल जायेगा । अब लड़के को शान्ती से काम करने दो।
                  अधेड़ बड़बड़ाता हुआ बाहर निकल आया। ये साला जगमोहन, साले ने गोशाला के नाम पर सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया। लाखों रूपये चंदा उगाह लेता है और फिर गायों को ट्रक में लदवा देता है। जिन लोगों ने सारे काम में मदद की, उनकी जात भी नहीं पूछता। साला गाय का धंधा करता है। छिः


              

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